दिल्ली पुलिस ने ‘द वायर’ को एक फर्जी रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए फटकार लगाई है। दिल्ली दंगों की आरोपित सफूरा जरगर से जुड़ी इस रिपोर्ट में वामपंथी प्रोपेगेंडा पोर्टल ने पुलिस और न्यायपालिका पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कट्टरता का आरोप लगाया था।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ‘द वायर’ के रिपोर्टर ने इस रिपोर्ट में बिना तथ्यों की जाँच के ही लिखा है कि एक हिंदू और एक मुस्लिम व्यक्ति पर एक ही मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था और फिर भी उनके साथ अलग-अलग व्यवहार किया गया।
वास्तव में, दोनों पूरी तरह से अलग-अलग मामले थे और वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ के पत्रकार ने उन्हें मिलाकर वास्तविकता से दूर, अपने अलग, बेबुनियाद निष्कर्ष निकाले। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि पत्रकारिता के सामान्य मापदन्डों में रिपोर्ट बनाने से पहले तथ्यों को जाँच कर लेना भी आवश्यक होता है, जिसका ‘द वायर’ की रिपोर्ट में पालन नहीं किया गया है।
निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि ‘द वायर’ द्वारा किया गया यह काम वास्तव में एक गलती थी और एक जानबूझकर किया गया षड्यंत्र!
दिल्ली पुलिस ने प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ को फटकारते हुए कहा कि रिपोर्टर ने पूर्वाग्रह और भेदभाव की एक परिकल्पना से उन्माद फैलाने के लिए एक ही नंबर वाली दो अलग-अलग एफआईआर मिलाईं।
यानी FIR-59, जो दो अलग-अलग तारीखों में दायर किए गए थे। एक, 6 मार्च 2020 को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा दायर की गई थी। दूसरी, 26 फरवरी 2020 को स्पेशल सेल द्वारा।
पहली FIR दिल्ली दंगों के मामले से संबंधित थी, जो अभी भी भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत जाँच के दायरे में है। दूसरी FIR आर्म्स एक्ट के संबंध में दायर किया गया था। इसमें जाँच पूरी हो चुकी है, चार्जशीट दायर कर दी गई है और मामला अब विचाराधीन है।
दिल्ली पुलिस ने कहा कि दूसरे मामले के अदालती आदेश में, जिसमें कि सह-अभियुक्त एक मुस्लिम व्यक्ति था, सभी विवरण उपलब्ध हैं।
बयान में कहा गया है कि ‘द वायर’ के पत्रकार ने काल्पनिक रूप से मुद्दे को हवा देने का प्रयास किया है। इसमें ‘द वायर’ की रिपोर्ट को ‘पत्रकारीय दुस्साहस’ का काम बताया है और कहा गया है कि रिपोर्टर ने UAPA के एक प्रावधान को एकदम अलग और पूरी तरह से अनसुना बताया।
बयान में कहा गया है, “यह काफी दुखद है कि ‘सिंगल एफआईआर, डबल स्टैंडर्ड’ की एक काल्पनिक कहानी में दो अलग-अलग एफआईआर के दो अलग-अलग मामलों को एक कर के दर्ज करते हुए, लेखक ने एक अधिकृत स्रोत से क्रॉस-चेकिंग और तथ्यों को जाँचने के सामान्य पत्रकारिता मानदंडों का ख्याल नहीं रखा।”
दिल्ली पुलिस ने इस बयान में आगे कहा है, “अनुरोध किया जाता है कि इस जवाब को ध्यान में रखा जाना चाहिए और पत्रकारिता के सर्वश्रेष्ठ पेशेवर नैतिकता के अनुरूप, उसी तरह से प्रमुखता के साथ प्रकाशित और ट्वीट किया जाना चाहिए।”
क्या था मामला
‘द वायर’ ने “दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा: गर्भवती सफूरा को जेल, ‘गन सप्लायर’ सिरोही को बेल” शीर्षक से भ्रामक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
सिमी पाशा द्वारा लिखी गई इस बेहद ‘रचनात्मक’ रिपोर्ट में सवाल पूछा गया था, “दंगा के दौरान अवैध हथियार रखने वाले व्यक्ति को कैसे जमानत दी जा सकती है, जबकि दंगों में जिसके खिलाफ कुछ भी बरामद नहीं किया गया, वह सलाखों के पीछे है?”
यह पहली बार नहीं है जब प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ को झूठ और फर्जी रिपोर्ट्स के लिए जलील होना पड़ा है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसके संस्थापक पर झूठी खबर फ़ैलाने को लेकर FIR दर्ज की जा चुकी है।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ‘द वायर’ के रिपोर्टर ने इस रिपोर्ट में बिना तथ्यों की जाँच के ही लिखा है कि एक हिंदू और एक मुस्लिम व्यक्ति पर एक ही मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था और फिर भी उनके साथ अलग-अलग व्यवहार किया गया।
वास्तव में, दोनों पूरी तरह से अलग-अलग मामले थे और वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ के पत्रकार ने उन्हें मिलाकर वास्तविकता से दूर, अपने अलग, बेबुनियाद निष्कर्ष निकाले। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि पत्रकारिता के सामान्य मापदन्डों में रिपोर्ट बनाने से पहले तथ्यों को जाँच कर लेना भी आवश्यक होता है, जिसका ‘द वायर’ की रिपोर्ट में पालन नहीं किया गया है।
How can a person who was found in possession of illegal arms during a riot be granted bail in a riots case when others from whom nothing was recovered are still behind bars? @seemi_pasha reports. https://t.co/x2yTCgdYaF— The Wire (@thewire_in) May 13, 2020

दिल्ली पुलिस ने प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ को फटकारते हुए कहा कि रिपोर्टर ने पूर्वाग्रह और भेदभाव की एक परिकल्पना से उन्माद फैलाने के लिए एक ही नंबर वाली दो अलग-अलग एफआईआर मिलाईं।
यानी FIR-59, जो दो अलग-अलग तारीखों में दायर किए गए थे। एक, 6 मार्च 2020 को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा दायर की गई थी। दूसरी, 26 फरवरी 2020 को स्पेशल सेल द्वारा।
पहली FIR दिल्ली दंगों के मामले से संबंधित थी, जो अभी भी भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत जाँच के दायरे में है। दूसरी FIR आर्म्स एक्ट के संबंध में दायर किया गया था। इसमें जाँच पूरी हो चुकी है, चार्जशीट दायर कर दी गई है और मामला अब विचाराधीन है।
दिल्ली पुलिस ने कहा कि दूसरे मामले के अदालती आदेश में, जिसमें कि सह-अभियुक्त एक मुस्लिम व्यक्ति था, सभी विवरण उपलब्ध हैं।
बयान में कहा गया है कि ‘द वायर’ के पत्रकार ने काल्पनिक रूप से मुद्दे को हवा देने का प्रयास किया है। इसमें ‘द वायर’ की रिपोर्ट को ‘पत्रकारीय दुस्साहस’ का काम बताया है और कहा गया है कि रिपोर्टर ने UAPA के एक प्रावधान को एकदम अलग और पूरी तरह से अनसुना बताया।
बयान में कहा गया है, “यह काफी दुखद है कि ‘सिंगल एफआईआर, डबल स्टैंडर्ड’ की एक काल्पनिक कहानी में दो अलग-अलग एफआईआर के दो अलग-अलग मामलों को एक कर के दर्ज करते हुए, लेखक ने एक अधिकृत स्रोत से क्रॉस-चेकिंग और तथ्यों को जाँचने के सामान्य पत्रकारिता मानदंडों का ख्याल नहीं रखा।”
दिल्ली पुलिस ने इस बयान में आगे कहा है, “अनुरोध किया जाता है कि इस जवाब को ध्यान में रखा जाना चाहिए और पत्रकारिता के सर्वश्रेष्ठ पेशेवर नैतिकता के अनुरूप, उसी तरह से प्रमुखता के साथ प्रकाशित और ट्वीट किया जाना चाहिए।”
क्या था मामला
‘द वायर’ ने “दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा: गर्भवती सफूरा को जेल, ‘गन सप्लायर’ सिरोही को बेल” शीर्षक से भ्रामक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
सिमी पाशा द्वारा लिखी गई इस बेहद ‘रचनात्मक’ रिपोर्ट में सवाल पूछा गया था, “दंगा के दौरान अवैध हथियार रखने वाले व्यक्ति को कैसे जमानत दी जा सकती है, जबकि दंगों में जिसके खिलाफ कुछ भी बरामद नहीं किया गया, वह सलाखों के पीछे है?”
यह पहली बार नहीं है जब प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ को झूठ और फर्जी रिपोर्ट्स के लिए जलील होना पड़ा है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसके संस्थापक पर झूठी खबर फ़ैलाने को लेकर FIR दर्ज की जा चुकी है।
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