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प्रतीकात्मक |
भारत में नागरिकता संशोधक कानून बनने पर वोट के भूखे नेताओं और पार्टियों ने मुसलमानों को खूब उकसाया, मदारियों की तरह मजमें लगाकर, अराजकता फैलवाई, लेकिन कुवैत में इस तरह कानून बनने पर कोई विरोधी स्वर नहीं उठ रहे, विपरीत इसके सभी समर्थन कर रहे हैं, क्योकि वहां देशहित के नाम भारतीय नेताओं की तरह कोई तमाशा कर अराजकता फैलाकर वोट की सियासत नहीं करते। पार्टी फण्ड से ख़रीदे मकान को बेचकर लंगर लगाने का ड्रामा नहीं करते।
भारत में जिस तरह वोट के भूखे नेताओं और पार्टियों ने उपद्रव मचवाया, सबके सामने है। खूब "हिन्दुत्व तेरी कब्र खुदेगी", "मोदी तेरी कब्र खुदेगी", "योगी तेरी कब्र खुदेगी", "हम कागज नहीं दिखाएंगे", आदि नारेबाजी करने के साथ-साथ उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगा रच दिया गया। जबकि कुवैत में किसी पार्टी में ऐसा करने की सोंच तक नहीं, विपरीत इसके रोहिंग्या के अवैध रूप से आधार कार्ड तक बनवा दिए गए। क्या वोट और सत्ता के भूखे ऐसे नेता कभी देशहित के बारे में कोई काम कर सकते हैं?
तीन चौथाई मुस्लिम जनसंख्या वाले खाड़ी मुल्क कुवैत में अप्रवासियों के लिए एक नया बिल लाया गया है। इसके क़ानून बनने के बाद वहाँ रहने वाले 8 लाख भारतीय नागरिकों को लेकर समस्या खड़ी हो गई है।
कुवैत के नेशनल असेम्ब्ली की क़ानूनी और संसदीय समिति ने अप्रवासी कोटा बिल को मॅंजूरी दे दी है। इसके अनुसार भारतीय नागरिकों को वहाँ की कुल जनसंख्या का 15% से ज्यादा हिस्सा बनने से रोका जाएगा।
इसके लिए एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जानी है, इसीलिए इस बिल को अब सम्बद्ध कमिटी के पास भेजा जाएगा। क़ानूनी एवं संसदीय कमिटी ने पहले ही कह दिया है कि ये बिल संवैधानिक है।
‘गल्फ न्यूज़’ के अनुसार, कुवैत में भारतीय समुदाय की कुल जनसंख्या 14.5 लाख है। नए बिल की वजह से इनमें से क़रीब 8 लाख लोग कुवैत छोड़ने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
अगर कुवैत में कुल अप्रवासियों की बात करें तो उनकी संख्या 43 लाख है। साथ ही इस बिल में इजिप्ट के लोगों को भी निकाल बाहर करने की बात की गई है।
भारत में धन के प्रवाह के मामले में भी कुवैत ऊपर की सूची में है, जहाँ से यहाँ काफी धन भेजा जाता है। भारत में कुवैत से हर साल 5 बिलियन डॉलर के क़रीब धनराशि आती है।
कुवैत के सरकार का कहना है कि वहाँ के अपने ही नागरिक अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन कर रह गए हैं, जिन्हें सुरक्षित माहौल देने के लिए इस बिल का क़ानून में बदलना ज़रूरी है। कुवैत विदेशी कर्मचारियों पर निर्भरता कम करने के प्रयास में लगा हुआ है।
Kuwait's residency law to be amended in bid to cut expat numbers— Gulf Daily News (@GDNonline) July 6, 2020
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कुवैत अब आप्रवासियों को बहुसंख्यक नहीं बने रहने देना चाहता। हालिया कोरोना वायरस संक्रमण आपदा और तेल के दाम में गिरावट को भी इसके पीछे की वजह माना जा रहा है।
कुवैत में जैसे-जैसे कोरोना वायरस संक्रमण का प्रभाव बढ़ा, वहाँ की जनता में अप्रवासियों के ख़िलाफ़ माहौल बनने लगा। वहाँ के नेताओं ने इसी का फायदा उठा कर जनभावनाओं को और हवा दी। अर्द्धलोकतंत्र वाले कुवैत में इसे छोटे नेताओं द्वारा वोट तुष्टिकरण के रूप में भी देखा जा रहा है, जिन्होंने सरकार पर इस क़ानून के लिए दबाव बनाया।
भारत ने अब तक इस विषय पर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन इस क़ानून से सम्बंधित हर एक गतिविधि पर कुवैत स्थित भारतीय दूतावास की नज़र है।
कुवैत के स्पीकर मरज़ूक़ अल घनेम ने कहा कि उनके देश की असली समस्या आप्रवासियों की जनसंख्या का 70% पार करना है। उन्होंने दावा किया कि कुवैत की 33.5 लाख आप्रवासियों में से 13 लाख अशिक्षित हैं या फिर उन्हें ठीक से पढ़ने-लिखने तक में भी समस्या आती है। उन्होंने कहा कि ये वीजा ट्रेडर्स की वजह से हुआ है और इस जनसंख्या की कुवैत को ज़रूरत नहीं है। कुवैत सरकार में फिलहाल 28,000 भारतीय नागरिक कार्यरत हैं।
इनमें से अधिकतर इंजिनियर, डॉक्टर, नर्स, वैज्ञानिक हैं या फिर वहाँ की तेल कंपनियों में काम करते हैं। वहाँ अब तक कोरोना वायरस संक्रमण के 50,000 के क़रीब मामले आ चुके हैं। कुवैत के प्रधानमंत्री शेख सबह अल खालिद का भी कहना है कि आप्रवासियों की जनसंख्या को कुल जनसंख्या का वर्तमान 70% से 30% करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। अब सभी को भारत सरकार के बयान का इन्तजार है।
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