दिल्ली हिन्दू विरोधी दंगा : दिल्ली में रहने वाले विदेशी वामपंथी ने रुकवा दिया पुस्तक ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ का प्रकाशन

विलियम डेलरिम्पल, दिल्ली, ब्लूम्सबरी
प्रकाशन रुकवाने वाला विलियम डेलरिम्पल
आर.बी.एल. निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगे की सच्चाई सामने आने से जितने भी छद्दम धर्म-निरपेक्ष, #not in my name, #freedom of speech, #intolerance और गंगा-जमुनी तहजीब का राग-अलापने आदि गैंग में इतनी अधिक खलबली मची हुई है, जिस कारण इतनी नीचता पर उतर आये हैं कि प्रकाशक पर दबाब बनाकर प्रखर वक्ता और अधिवक्ता श्रीमति मोनिका अरोड़ा की दिल्ली दंगा पर प्रकाशित हो रही पुस्तक को ही रुकवा दिया। 
प्रकाशन को रुकवाना इस बात को प्रमाणित कर रहा है कि नागरिकता संशोधक कानून की आड़ में दिल्ली को जलाने की कितनी गहरी साज़िश थी। मुसलमान को जहर पिलाया जा रहा है कि यह कानून मुस्लिम विरोधी है। कानून बनने पर ही इतनी घबराहट है, लागू होने पर क्या हाल होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। हकीकत यह है कि जिनकी वजह से ये कानून आया है, प्राप्त सूत्रों के अनुसार उन लोगों ने सरकार की कार्यवाही से पहले ही भारत छोड़ना शुरू कर दिया है। उधर दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ताहिर हुसैन पर देशद्रोही मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली पुलिस को इजाजत देने में आनाकानी कर रहे हैं। इन सब को डर सता रहा है कि दंगे की सच्चाई सामने आने पर हिन्दू तो हाथ से निकलेगा, अधिकांश मुस्लिम भी हाथ से निकल जाएंगे। 
श्रीमती मोनिका अपने प्रखर भाषणों एवं हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों से लड़ने में सकुशल हैं। ये वही मोनिका है, जिसने लड़ाई लड़ दिल्ली विश्वविधालय में भगवान राम और माता सीता के विरुद्ध पढाये जा रहे गलत अध्याय को पुस्तक से निकलवाकर ही दम लिया।   
दिल्ली दंगा मामले में अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा की पुस्तक ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ का प्रकाशन ब्लूम्सबरी ने वापस ले लिया है। प्रकाशन संस्थान ने इस्लामी कट्टरपंथियों और वामपंथी लॉबी के दबाव में आकर ऐसा किया। अब इस्लामी कट्टरवादी आतिश तासीर ने खुलासा किया है कि स्कॉटिश इतिहासकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल ही वो व्यक्ति है, जिसने इस पुस्तक के प्रकाशन पर रोक लगवाई है।
आतिश तासीर ने मोनिका अरोड़ा की दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक को सत्ता का प्रोपेगेंडा करार देते हुए कहा कि विलियम डेलरिम्पल ने इसके प्रकाशन पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाई है, जिसके लिए वो उनके आभारी हैं। उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि स्कॉटिश लेखक के बिना ये संभव नहीं हो पाता। मोनिका अरोड़ा की इस पुस्तक में जाँच और इंटरव्यूज के हवाले से दिल्ली दंगों का विश्लेषण किया गया है।
साथ ही उन्होंने (आतिश तासीर) इस पुस्तक के प्रकाशन को वापस लेने के लिए ब्लूम्सबरी इंडिया का धन्यवाद भी किया। उन्होंने कहा कि सत्ताधारी पार्टी और इसके हिंसक लोगों द्वारा इतिहास को बदलने का प्रयास बलपूर्वक किया जा रहा है, इसीलिए इस पुस्तक को वापस लिया ही जाना था। बता दें कि अगस्त 21, 2020 को भी विलियम डेलरिम्पल ने घोषणा की थी कि वो दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक का प्रकाशन रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

इस ट्वीट पर लोगों की प्रक्रियाएं


कांग्रेस ट्रोल साकेत ने स्कॉटिश इतिहासकार से ऐसा करने के लिए निवेदन किया था, जिसके जवाब में उन्होंने कहा था कि वो इस काम में लगे हुए हैं, ठीक उसी तरह जैसे ब्लूम्सबरी के लिए लिखने वाले अन्य लेखक इस काम में लगे हैं। उन्होंने एक अन्य ट्विटर यूजर को भी जवाब दिया था कि वो इस पर प्रयासरत हैं। उन्होंने कई अन्य वामपंथी लेखकों को भी टैग क्या था, ताकि वो सब प्रकाशन संस्था पर दबाव बना कर इसकी पब्लिशिंग पर रोक लगा सकें।
इस पुस्तक की लेखिका मोनिका अरोड़ा, सोनाली चितलकर और प्रेरणा मल्होत्रा हैं। यह फैक्ट्स पर आधारित किताब है। लेखकों ने फील्ड में घूम कर, कई लोगों से इंटरव्यू लेकर और पुलिस जाँच के आधार पर इसे लिखा और संपादित किया गया है। इसे सितम्बर में ही रिलीज किया जाना था। लेखक और अतिथिगण वर्चुअल बैठक के जरिए इसकी रिलीज के लिए बैठक कर रहे थे, बावजूद इसके इस पर रोक लगा दिया गया है।
पुस्तक के प्रकाशन को वापस लेने का निर्णय सोशल मीडिया पर प्रमुख ’बुद्धिजीवियों’ के नेतृत्व वाली वामपंथी उग्र भीड़ के विरोध के बाद आया, जिसने पब्लिकेशन हाउस पर ऐसा निर्णय लेने के लिए पर दबाव डाला था। आक्रोशित वामपंथी भीड़ में विवादास्पद अभिनेत्री स्वरा भास्कर और अन्य प्रख्यात ‘पत्रकारों’ और ‘बुद्धिजीवियों’ जैसे कई व्यक्तित्व शामिल थे। दक्षिण एशिया सॉलिडैरिटी इनिशिएटिव ने भी ब्लूम्सबरी इंडिया को पुस्तक का प्रकाशन वापस लेने के लिए धमकी दी थी।

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