सरकार द्वारा गत छः वर्षों से जिस स्वच्छता अभियान का बिगुल बजाया जा रहा था, जिस स्वच्छता अभियान के नाम पर अब तक हज़ारों करोड़ रूपये ख़र्च किये जा चुके, जिस महत्वाकांक्षी योजना के लिए अनेक नामचीन हस्तियों को ब्रांड अम्बेस्डर बनाया गया और देश को यह दिखाने की कोशिश की गयी कि देश में पहली बार इसी सरकार ने सफ़ाई के प्रति गंभीरता दिखाई है, आख़िर आज छः वर्षों बाद वह अभियान कहां तक पहुंचा है ? जिस तरीक़े से स्वच्छता अभियान का ढिंढोरा पीटा जा रहा था उसे देखकर तो ऐसा ही लग रहा था गोया अब हमारा देश विश्व के सबसे स्वच्छ कहे जाने वाले चंद गिने चुने देशों की पंक्ति में जा खड़ा होगा। परन्तु हक़ीक़त तो ठीक इसके विपरीत है। इस ख़र्चीले स्वच्छता अभियान के शुरू होने से पहले सफ़ाई को लेकर शहरों के जो हालात थे आज उससे भी बदतर स्थिति देखी जा रही है।

वास्तव में सफाई अभियान की शुरुआत महात्मा गाँधी ने की थी, और इसके लागू करने में जो शंका जनता के दिमाग में थी, वह आज तक दूर नहीं हो पायी है। कहते हैं गाँधी के कारण "बिना खरक और हिंसा के हमें आज़ादी मिली है", कितना अधिक जनता को भ्रमित किया गया है। यदि यह बात सत्य है, फिर किस आधार पर महंगे से महंगा रक्षा उपकरण ख़रीदा जा रहा है? क्यों नहीं सीमाओं पर चरखा चलाया जाता? जबकि हकीकत यह है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस और अन्य क्रांतिकारियों द्वारा जब संग्राम की लड़ाई तेजी पकड़ती थी, उस स्थिति में जनता का उस तरफ से ध्यान हटाने के लिए गाँधी द्वारा कोई न कोई आंदोलन खड़ा कर दिया जाता था, सफाई आंदोलन भी उसमें से एक है। वरना क्या कारण है, कि जिस पार्टी को देखो गाँधी के नाम पर जनता को भ्रमित कर वोट लेती है, परन्तु भारत में गंदगी का वही आलम है। सडकों पर देखो झाड़ू हाथ में लेकर निकलने वाले अपने घरों में स्वयं एक ग्लास पानी भी नौकर से मांगते होंगे, घरों में बर्तन और झाड़ू-पोछे के लिए नौकरानी रखी होगी। फिर जिस गाँधी के नाम पर यह सब ड्रामा किया जा रहा है, उसी गाँधी ने किस आधार पर ब्रिटिश सरकार से नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विरुद्ध अनुबन्ध किया था कि "जिन्दा या मुर्दा मिलने पर नेताजी को ब्रिटिश सरकार के हवाले किया जाएगा" क्या इसी का नाम राष्ट्र प्रेम है?
उदाहरण के तौर पर केंद्र सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर
चलने वाली हरियाणा सरकार ने भी स्वच्छता अभियान के नाम पर जिस क़द्र ढोल
पीटा था वह आज महज़ तमाशा बन कर रह गया है। पूरे राज्य में कूड़ा रखने के
लिए प्लास्टिक की दो दो बाल्टियां बांटी गयीं थीं। यह निश्चित रूप से जनता
के पैसे की बर्बादी थी। इस ‘सरकारी बाल्टी’ वितरण से पहले भी जनता आख़िर
अपने अपने घरों में कूड़ेदान का इस्तेमाल तो करती ही थी ? परन्तु बिना सोचे
समझे करोड़ों रूपये बाल्टी के मद पर ख़र्च कर दिए गए। शहरों व क़स्बों में
अनेक स्थानों पर स्टील,प्लास्टिक अथवा टीन के कूड़ेदान लगाए गए। आज लगभग
वह सभी कूड़ेदान नदारद हैं। घरों से कूड़ा इकठ्ठा करने के लिए निजी
ठेकेदारों को ठेके दिए गए थे। कुछ ही दिनों तक घरों से कूड़ा उठाने का
सिलसिला चला होगा कि कूड़ा इकठ्ठा करने वाले कर्मचारियों ने आना बंद कर
दिया। पूछने पर पता चला कि उन्हें ठेकेदार पैसे नहीं दे रहा है। ऐसा इसलिए
कि सरकार ठेकेदार को पैसे नहीं दे रही है। बमुश्किल यह योजना कुछ ही समय तक
चली। सरकार ने कूड़ा इकठ्ठा करने के नाम पर जनता से पैसों की वसूली भी
शुरू कर दी जो आज भी जारी है। परन्तु अब जो व्यक्ति कूड़ा इकठ्ठा करने घर
घर जाता है वह पचास रूपये प्रति माह प्रत्येक घरों से वसूल करता है। और
सरकार न जाने किस मद का पैसा इसी कूड़ा संग्रहण के नाम पर ले रही है।
इसी प्रकार जहाँ तक नाली व गली मोहल्ले की सफ़ाई का प्रश्न है तो सरकार इस
मोर्चे पर भी पूरी तरह नाकाम है। नालियों की सफ़ाई करने व कूड़ा उठाने के
लिए जो नगर निगम सफ़ाई कर्मचारी नियमित रूप से प्रतिदिन या एक दो दिन छोड़
कर आया करते थे अब उन्होंने लगभग बिल्कुल ही आना बंद कर दिया है। एक सफ़ाई
निरीक्षक ने बताया कि जहां 50 सफ़ाई कर्मियों की ज़रुरत है वहां मात्र 23
कर्मचारियों से काम चलाया जा रहा है। ऐसा क्यों है ?यह पूछने पर जवाब मिला
की सरकार नए सफ़ाई कर्मियों की भर्ती नहीं कर रही है। यह भी पता चला की
अक्सर इन मेहनतकश सफ़ाई कर्मचारियों की कई कई महीने की तनख़्वाहें भी रुकी
रहती हैं। इस स्थिति में यदि आप अपने गली मोहल्ले की नाली की सफ़ाई कराना
चाहें तो आपको नगर निगम या नगर परिषद् /पालिका को फ़ोन कर अपनी सफ़ाई
संबंधी शिकायत लिखानी पड़ेगी। उसके बाद 2 दिन से लेकर 15 -20 दिनों के बीच
आपकी शिकायत पर अमल होने की संभावना है। यदि कोई सफ़ाई कर्मचारी इतने लंबे
समय बाद आकर नाली का कचरा निकाल कर नाली के बाहर ही छोड़ देगा। इसके बाद
आपको उस निकले हुए कचरे को उठाने के लिए पुनः शिकायत लिखानी पड़ेगी। फिर
इसी तरह दस पंद्रह दिन बाद शायद कोई वाहन आकर कूड़ा उठा ले जाए। पहले
नगरपालिकाओं व निगमों में दो पहिया वाली गाड़ियां होती थीं जो नियमित रूप
से गली मोहल्ले में जाकर कूड़ा उठाने में इस्तेमाल होती थीं। अब वह
गाड़ियां भी समाप्त गयी हैं। जब कर्मर्चारियों से पूछा जाता है कि वे
नियमित रूप से कूड़ा उठाने या नालियां साफ़ करने क्यों नहीं आते तो जवाब
मिलता है कि वे वहीँ जा सकते हैं जहाँ जाने का आदेश होगा। ज़ाहिर है गांव
से लेकर क़स्बे शहरों और महानगरों तक हर जगह चूंकि संपन्न या तथाकथित
विशिष्ट लोगों के मुहल्लों या इलाक़ों की सफ़ाई प्राथमिकता के आधार पर होती
है लिहाज़ा इनकी ड्यूटी भी प्राथमिकता के आधार पर उन्हीं इलाक़ों में
लगती है।
नालों व नालियों की नियमित सफ़ाई न हो पाने का ही नतीजा है कि मामूली
सी बरसात में भी सभी नाले-नाली ओवर फ़्लो हो जाते हैं। परिणामस्वरूप
नालियों का पानी लोगों के घरों में घुस जाता है। केवल नाले नालियां ही नहीं
बल्कि सीवर लाइन भी पूरी तरह जाम पड़ी हुई है। संबंधित अधिकारियों से यदि
आप शिकायत करें तो भी कोई सुनवाई करने वाला नहीं। ज़रा सी बारिश में सीवर
के मेनहोल भी ओवर फ़्लो हो जाते हैं और इनका गन्दा बदबूदार पानी लोगों के
घरों में भी वापस जाता है और इनके मेन होल के ढक्कनों से भी निरंतर निकलता
रहता है। कई सीवर मेनहोल तो ऐसे भी हैं जहाँ बिना बारिश हुए भी गन्दा पानी
हर समय बाहर निकलता रहता है। मगर सरकार है कि उसे अपनी पीठ थपथपाने से ही
फ़ुर्सत नहीं मिलती। सरकार द्वारा स्वच्छता अभियान के नाम पर पूरे देश में
शौचालयों का निर्माण कराया गया था। आज उन शौचालयों की स्थिति कितनी दयनीय
है यह देखा जा सकता है। यह बताने की ज़रुरत नहीं कि ठेके पर निर्मित
शौचालयों के निर्माण में ‘राष्ट्र भक्त ‘ ठेकेदारों द्वारा संबध अधिकारियों
की मिलीभगत से किस तरह की सामग्री का प्रयोग किया जाता है।
आज फिर लगभग सभी शहरों में जगह जगह कूड़े के ढेर दिखाई देने लगे हैं। गोवंश, सूअर व कुत्ते आदि उन कूड़े के ढेरों की न केवल शोभा बढ़ा रहे हैं बल्कि उन्हें चारों ओर बिखेरते भी रहते हैं। एक ओर तो सरकार के पास नए सफ़ाई कर्मचारियों को भर्ती करने के लिए धन की कमी है। यहां तक कि सरकार अपने वर्तमान कर्मचारियों को सही समय पर वेतन भी नहीं दे पाती। इन हालात में बड़े बड़े पार्कों व गोल चक्कर तथा तालाब आदि के जीर्णोद्धार के नाम पर अंधादुंध पैसे ख़र्च करने का आख़िर क्या औचित्य है? और वह भी ऐसे सार्वजनिक स्थलों पर धौलपुरी से लेकर ग्रेनाइट के पत्थरों तक के इस्तेमाल पर सैकड़ों करोड़ रूपये ख़र्च करदेना ? जनता को गंदगी से निजात दिलाना,नए सफ़ाई कर्मियों की भर्ती करना,नगर पालिका व निगमों में कूड़ा उठाने वाली छोटी गाड़ियां ख़रीदना,समय पर सफ़ाई सेनानियों को वेतन देना,नियमित रूप से नालों व गली मोहल्ले की नालियों की सफ़ाई कराना आदि सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। जब तक जनता को अस्वछता के वर्तमान वातावरण से मुक्ति नहीं मिलती तब तक सरकार के स्वच्छता अभियान को धराशाई हुआ ही समझना चाहिए।
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