कोरोना एक महामारी या व्यापार ?

जब से देश में कोरोना का पदापर्ण हुआ है, जनता को उन अनदेखी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा, जिस ओर सरकार तो क्या किसी अधिकारी या फिर नेता भी ध्यान नहीं दे रहे। सरकार के कई निर्देशों पर जनता भी हैरान है, जैसे, हाथ धोना या फिर सनेटाइज़ करो; उचित दूरी बनाकर रखो; मास्क का प्रयोग करो आदि आदि। विश्व में अभी तक कोई विकसित देश इसकी कोई दवाई नहीं बना पाया। भारत भी सहर्ष सीना ढोककर विश्व में दवाई उपलब्ध कराने की बात कह रहा है, जबकि भारत में ही कितने अधिक कोरोना पीड़ित हो गए। और न जाने कितने मृत्यु के गाल में समां गए। 
कोरोना के दवा जुलाई 2020 में बन गयी लेकिन मेडिकल माफिया के आगे सरकार भी फ़ैल हो गयी,
लेकिन सरकार कोई कदम नहीं उठा रही जनता मर रही है और इलाज के नाम पर मास्क सेनेटाइजर के नाम पर लूट का बिज़नेस हो रहा है, किसी नहीं मालूम, फिर सभी आंखें मूंदे बैठे हैं।

प्राइवेट हॉस्पिटल के पैकेज किसी से छिपे नहीं। केंद्र से लेकर किसी राज्य सरकार ने इन हॉस्पिटल पर लगाम नहीं लगाई, क्यों? किसी भी बीमारी के लिए जाओ, पहले कोरोना टेस्ट होगा, और उसकी नेगटिव रिपोर्ट आने के बाद ही असली बीमारी का इलाज होगा। मेरे एक परिचित की शुगर बढ़ गयी, हॉस्पिटल में भर्ती होने पर इसकी पुष्टि भी हो गयी, परन्तु जब अगले दिन दोपहर बाद कोरोना की रिपोर्ट नहीं आ गयी, तब तक उस मरीज की वास्तविक बीमारी को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया और मरीज की हालत नाजुक होती गयी, और स्थिति हॉस्पिटल से जबरदस्ती छुट्टी दिलवाने के बाद घर आकर कुछ सामान्य होनी शुरू हुई। मरीज की ऐसी स्थिति कर दी, कभी किसी बीमारी का सन्देह तो कभी किसी बीमारी के सन्देह में मरीज के परिवार वालों की घुन्डे उस्तरे से हजामत बनती रही। इतना ही नहीं डॉक्टर ने ड्यूटी पर आने पर जो किट पहनी है, और उस किट को पहने हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों को देखा, परन्तु मरीज के डिस्चार्ज होने पर किट की भी कीमत वसूली गयी। क्या यह व्यापार नहीं? यह आरोप व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित हैं। 

इतना ही नहीं, कृष्णा नगर दिल्ली के एक हॉस्पिटल में तो चूहों का राज चल रहा है। अगर मरीज ने कोई खाद्य पदार्थ थैली में लटका कर या अपने बिस्तर पर रखकर सो गया है, चूहे महाराज भोग लगा जाते हैं। और इस बात को उस हॉस्पिटल के समस्त कर्मचारी और अधिकारी भी जानते हैं। लेकिन चूहों के आतंक से मरीजों को कोई राहत नहीं। मरीज के परिजनों से 20-20 हज़ार के इंजेक्शन प्रयोगात्मक कह कर मंगवाए जाते हैं, जब मालूम है यह कोरोना मरीज है, और कोरोना की दवाई नहीं है, फिर क्यों महँगी-महँगी दवाइयां और इंजेक्शन मंगवाए जाते हैं?

फिर एक और परिचित का अनुभव, निमोनिया मरीज को कोरोना बता दिया, बेटा डॉक्टर है, कहासुनी कर, माँ को घर ले आया, उपचार करता रहा, 2-4 दिन बाद डॉक्टर बेटे ने पाया कि माँ को निमोनिया है, और माँ को ठीक कर लिया। बेटा डॉक्टर था, किसी तरह से माँ को हॉस्पिटल में भर्ती करवाने की बजाए घर पर ही स्वयं उपचार किया। जिस कारण यह भी संदेह होता है कि क्या निमोनिया, खांसी अथवा जुकाम वाले को कोरोना पीड़ित घोषित कर मोटी रकम वसूल डॉक्टरी व्यवसाय की आमदनी बढ़ाने का जरिया तो नहीं। जैसाकि ठंठ के मौसम में खांसी, जुकाम, नजला आम बात है, लेकिन लोग अब इन बिमारियों के लिए किसी डॉक्टर के पास भी नहीं जा रहे।  

अब थोड़ा बाजार की बात कर ली जाए। आज जिस दुकानदार और व्यापारी को देखो, "अरे भाई कोरोना ने तो कारोबार ही चौपट कर दिया। धंधा ही नहीं है।" जबकि लॉक डाउन में मटन 800 से 900 रूपए किलो, 60/65 रूपए में मिलने वाली चीज 120/140 रूपए में कौन बेच रहा था? ऐसी अनेकों वस्तुएं हैं, एक दूध को छोड़कर, जो महँगी बेची जा रही थी।  

मुफ्तखोर जनता भी कम नहीं, मुफ्त में मिलने वाले राशन की बर्बादी भी जी-भरके हुई। सरकार ने जी-भरकर मुफ्त में राशन बांटा, उसी रफ़्तार से मुफ्तखोरों ने उस राशन भी बर्बादी भी की। 

कोरोना संक्रमण के मामले में राजधानी दिल्ली की हालत चिंताजनक बनी हुई है। 1 नवंबर से 16 नवंबर के बीच राजधानी दिल्ली में कोरोना के एक लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं जबकि 1200 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि इस दौरान करीब 94 हजार लोग कोविड से रिकवर भी हुए है। स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 28 अक्टूबर से दिल्ली में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे है। 12 नवंबर को दिल्ली में 104 लोगों की मौत हुई जो पांच महीने का सबसे बड़ा आंकड़ा है। दिल्ली में हर रोज कोरोना के 20 हजार टेस्ट करने का लक्ष्य रखा गया है।

अगर कोरोना संक्रमित बीमारी है, तो परिंदे और जानवर को अभी तक कैसे नहीं हुआ
यह कैसी बीमारी है जिसमें सरकारी लोग और हीरो ठीक हो जाते हैं और आम जनता मर जाती है

कोई भी घर में या रोड पर तड़प कर नहीं मरता हॉस्पिटल में ही क्यों मौत आती है
यह कैसी बीमारी है, कोई आज पॉजिटिव है तो कल बिना इलाज कराए नेगेटिव हो जाता है
कोरोना संक्रमित बीमारी है:- जो जलसे में / रैली में/ और लाखों के प्रोटेस्ट में नहीं जाता, लेकिन गरीब नॉर्मल खांसी चेक कराने जाए तो 5 दिन बाद लाश बनकर आता है
गजब का कोरोनावायरस है, जिसकी कोई दवा नहीं बनी, फिर भी लोग 99% ठीक हो रहे हैं
यह कौन सी जादुई बीमारी है, जिसके आने से सब बीमारी खत्म हो गई और अब जो भी मर रहा है कोरोना से ही मर रहा है
जरा सोचिये
साबुन और सैनिटाइजर से कोरोना मर जाता है तो इस को मारने की दवाई क्यों नहीं बनाई
यह कैसा कोरोना है? हॉस्पिटल में गरीब आदमी के जिस्म का महंगा पार्ट निकालकर लाश को ताबूत में छुपा कर खोल कर नहीं देखने का हुक्म देकर बॉडी दी जाती है


है कोई जवाब ::????
अगर है जरूर देना, अगर नहीं है तो सोचना कि कोरोना की आड़ में क्या चल रहा है
कुछ हास्पिटल से न्यूज आ रहीं हैं कि सुबह मरीज़ को भर्ती किया जाता है और शाम को न्यूज मिलती है कि मरीज़ की करोना से मौत हो गई! (क्या सुबह से शाम तक करोना की रिपोर्ट भी आ गयी और शाम को करोना से डेथ भी हो गयी, और लाश का अंतिम संस्कार भी हो गया)
इनके हिसाब से तो करोना की कोई स्टेज ही नहीं होती, जो पहले पाजिटिव से नेगटीव हुए, वो कैसे ठीक हुए, 15-20 दिन मे तो कनीका कपूर भी ठीक होकर घर चली गयी, आखिर ऐसा कौन सा इलाज था जो कनीका की 5 रिपोर्ट पोजिटिव आई और 6 रिपोर्ट मे नेगटीव आई..... और गरीबो की सुबह रिपोर्ट पोजिटिव आती है और शाम को उसकी डेथ हो जाती है
क्या गरीब और माध्यम बर्ग की सिर्फ एक ही रिपोर्ट आती है positive या negative या डेथ
हैरानी की बात है की कोई खांसी, जुकाम, बुखार और कोई लक्षण नहीं फिर भी रिपोर्ट पॉजिटिव, कहीं कोई किडनी स्कैम तो नहीं हो रहा है..


किडनी ही क्यों आंख, लीवर, ब्लड, प्लाजमा और भी बहुत पार्ट हैं, क्या कोई बहुत बड़ा झोल हो रहा है
अंतराष्ट्रीय बाजार में व्यक्ति के पार्टस की कीमत करोड़ो रूपये हैं, क्या कोरोना की आड़ में कोई षड्यंत्र चल रहा है

स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि 16 दिनों में 1,01,070 मामले दर्ज किए गए हैं वहीं 17 दिनों में 1202 लोगों की मौत हुई है। सरकार लगातार लोगों से सतर्कता बरतने की अपील कर रही है। दिल्ली और केंद्र सरकार दोनों ही कोरोना की स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं और अपनी तरफ से पूरी तैयारी ली है। देशभर की बात करें तो स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक देश में 82 लाख 90 हजार केस दर्ज हो चुके है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये भी बताया है कि कोरोना संक्रमण की दर 7 फीसदी है और ये पिछले हफ्ते घटकर 4 फीसदी तक पहुंच गई है। 

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में प्रति दस लाख आबादी पर कोरोना के सिर्फ 211 केस हैं जो काफी बेहतर है। वहीं यूरोप से भारत की तुलना की जाए तो यूरोपीय देशों में प्रति दस लाख की आबादी पर कोरोना केस लगभग 6 हजार है। महाराष्ट्र में कोरोना के सबसे ज्यादा एक्टिव मरीज है। महाराष्ट्र में 19 और केरल में 16 फीसदी कोरोना के केस है।  

कोरोना ने बढ़ाई चिंता, दिल्ली के भीड़भाड़ वाले बाजारों में लग सकता है लॉकडाउन

दिल्ली में कोरोना के बिगड़ते हालात को देखते हुए प्रमुख बाजारों में लॉकडाउन लगाया जा सकता है। इस संबंध में दिल्ली सरकार ने एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने नवंबर 17 को इसकी जानकारी दी। आने वाले दिनों दिल्ली के प्रमुख बाजारों में एक बार फिर लॉकडाउन का नजारा देखने को मिल सकता है। इस दौरान लोगों को बाजार और मार्केट बंद मिलेंगी। दरअसल, इस तरह का प्रस्ताव है कि अगर दिल्ली में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले और तेजी से बढ़े तो राजधानी के प्रमुख बाजारों को बंद किया जा सकता है। इस बाबत दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी सरकार ने एक प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने डिजिटल पत्रकार वार्ता में बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों पर लगाम नहीं लगी तो दिल्ली के प्रमुख बाजारों को कुछ समय के लिए बंद किया जा सकता है।

भीड़भाड़ वाले बाजारों में लगेगा लाॅकडाउन

अरविंद केजरीवाल ने बताया कि केंद्र सरकार को भेजे प्रस्ताव में कहा गया है कि जिन बाजारों में भीड़भाड़ अधिक है। इसके साथ ही शारीरिक दूरी का पालन भी नहीं हो रहा है। दिल्ली सरकार ऐसे बाजारों में कुछ दिनों के लिए लॉकडाउन लगाना चाहती है।

दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजा है कि अगर किसी बाजार में लाॅकडाउन लगाना पड़ता है तो इसकी इजाजत दिल्ली सरकार को दी जाए। अभी किसी राज्य सरकार के पास लाॅकडाउन लगाने का अधिकार नहीं है।

ये बाजार आ सकते हैं लॉकडाउन के दायरे में

1. सदर बाजार

2. नई सड़क

3. पहाड़ गंज

4. करोल बाग

5. चांदनी चौक

6. सरोजनी नगर

7. लक्ष्मी नगर

8. नेहरू प्लेस

9. कमला मार्केट

10. गांधी नगर

11. कृष्णा नगर

12. लाल क्वार्टर

13. चावड़ी बाजार

14. लाजपतनगर

15. जनपथ मार्के

16. पालिका बाजार

पिछले 19 दिन में बढ़ गए 1317 कंटेनमेंट जोन

वहीं, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक बार फिर कोरोना की रोकथाम के लिए बनाए जा रहे कंटेनमेंट जोन की समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं। मंत्रालय का मानना है कि कोरोना की रोकथाम के लिए कंटेनमेंट जोन की प्रक्रिया अधिक प्रभावी है। इससे पहले मंत्रालय ने 21 जून को माइक्रो स्तर पर कंटेनमेंट जोन बनाने की बात कही थी। उसके बाद से दिल्ली सरकार ने कंटेनमेंट जोन की संख्या तेजी से बढ़ाई है। अब फिर जिस तरह से दिल्ली में कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं। कंटेनमेंट (हॉट स्पॉट) जोन की संख्या भी उसी तरह से बढ़ रही है। दिल्ली में पिछले 19 दिन में 1317 कंटेनमेंट जोन बढ़ गए हैं।

आंकड़ों की बात करें तो कंटेनमेंट जोन की संख्या 28 अक्टूबर को 3113 थी वह बढ़कर अब 4430 हो गई है। यानी पिछले 19 दिनों में 1317 कंटेनमेंट जोन बढ़ गए हैं। 30 सितंबर को कंटेनमेंट जोन की संख्या 2615 थी। उस हिसाब से 28 अक्टूबर तक केवल 432 कंटेनमेंट जाेन बढ़े थे। मगर 28 अक्टूबर से एकाएक आैर तेजी से बढ़े हैं। आने वाले दिनों के लिए विशेषज्ञों ने प्र्रतिदिन 15 हजार कोरोना मरीज आने की आशंका जाहिर की है। इसके चलते सरकार को चिंता सता रही है कि कहीं ज्यादा लोग कोरोना से प्रभावित न हो जाएं इसलिए सरकार ने कंटेनमेंट जोन बढ़ाने पर जोर और बढ़ा दिया है। राजस्व विभाग की तरफ से जारी रिपोर्ट की बात करें तो दिल्ली में अभी तक कुल 9333 जोन बने हैं। 21 जून के बाद 8999 जोन बने हैं। अभी तक कुल 4903 डी-कंटेंड हुए हैं। इस समय 4430 कंटेनमेंट जोन हैं। यह संख्या 9 नवंबर को 3878 थी। यानी पिछले आठ दिन में ही 552 कंटेनमेंट जोन बढ़ गए हैं।

दिल्ली में माइक्रो स्तर पर कंटेनमेंट जोन बनाए जा रहे हैं। इसमें एक या दो से तीन घरों को मिलाकर कंटेनमेंट जोन बनाया जाता है। जिससे कि ज्यादा आबादी प्रभावित न हो। रिपोर्ट के अनुसार अब तक सबसे ज्यादा कंटेनमेंट जोन दक्षिण पश्चिमी जिले में 1542 और सबसे कम उत्तर पूर्वी जिले में 382 बने हैं।

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