अपने लेखों के कई बार उल्लेख किया है कि यह हम भारतीयों का दुर्भाग्य है कि हम अपने ही वास्तविक इतिहास में किसी अनपढ़ से कम नहीं। वास्तविक इतिहास की बात करने वालों को फिरकापरस्त, साम्प्रदायिक, संविधान के दुश्मन, गंगा-जमुनी तहजीब के दुश्मन और पता नहीं किन-किन नामों से सम्बोधित करते नहीं थकते। इस तरह की बात करने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि जिस दिन वास्तविक इतिहास सामने आएगा और जब उनके अपने ही बच्चे जब उनसे सच्चाई जानने के बाध्य करेंगे, तब किस मुंह से झूठ बोलेंगे? क्या उस स्थिति में उनकी अपनी ही संतानें उन्हें वह सम्मान दे पाएंगी, जो अब तक उन्हें मिल रहा था?
सेवानिर्वित उपरांत एक हिन्दी पाक्षिक का संपादन करते अपने स्तम्भ "झोंक आँखों में धुल--चित्रगुप्त" में शीर्षक "लाल किला किसने और कब बनवाया?" और "प्रधानमंत्री राष्ट्र को बताएं " लेख प्रकाशित किये थे, सूत्रों के अनुसार जिनका तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा संज्ञान तो लिया गया, लेकिन खंडन नहीं।
हिन्दुस्तानी संस्कृति इतनी महान होने के बावजूद भी वर्षों से देश में इस्लामी सत्ता का इतिहास पढाया जा रहा है| देश में इस्लामी आक्रमण से पहले से हिन्दू शासकों ने आदर्शवादी समाज तैयार किया था। लेकिन इसे अब तक के इतिहास में नजरअंदाज किया जा रहा था। अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मुस्लिम हमलावरों के इतिहास को इतिहास के पाठ्यक्रम से बाहर करने का फैसला किया है। पूर्व-स्नातक पाठ्यक्रमों का इतिहास अकबर और मुगलों की तुलना में महाराणा राणा प्रताप और सम्राट विक्रमादित्य के इतिहास पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा। यूजीसी ने एक नया इतिहास पाठ्यक्रम विकसित किया है। यह उन मुस्लिम आक्रमणकारियों की तुलना में भारतीय शासकों के प्रदर्शन और उनके गौरवशाली इतिहास पर अधिक प्रकाश डालेगा, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया और इसकी कई संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया। भारत के इतिहास (1206-1707 ई.) में अब अकबर और मुगलों के स्थान पर हिंदू शासक राणा प्रताप और विक्रमादित्य की शक्ति को रेखांकित किया जाएगा।
मैं बहुत सोचता हूं पर उत्तर नहीं मिलता! आप भी इन प्रश्नों पर विचार करें!
1. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं;
2. जिस सम्राट का राज चिन्ह "अशोक चक्र" भारतीय अपने ध्वज में लगते हैंं;
3. जिस सम्राट का राज चिन्ह "चारमुखी शेर" को भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाते हैं, और "सत्यमेव जयते" को अपनाया है;
4.जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर "अशोक चक्र" दिया जाता है;
5. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो;
6.सम्राट अशोक के ही समय में 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे! इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे;
7. जिस सम्राट के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं;
8. जिस सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी;
9. जिस सम्राट के शासन काल में सबसे प्रख्यात महामार्ग "ग्रेड ट्रंक रोड" जैसे कई हाईवे बने, 2000 किलोमीटर लंबी पूरी सडक पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायीं गईं, मानव तो मानव, पशुओं के लिए भी प्रथम बार चिकित्सा घर (हॉस्पिटल) खोले गए, पशुओं को मारना बंद करा दिया गया;
10. ऐसे महान सम्राट अशोक, जिनकी जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित की गई है? अफ़सोस जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो नागरिक अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं, और जो जानते हैं वो ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते;
14अप्रैल
जन्म वर्ष 3-02ई पू
राजतिलक - 268 ई पू
देहावसान - 232ई पू
पिताजी का नाम - बिन्दुसार
माताजी का नाम - सुभद्राणी
11."जो जीता वही चंद्रगुप्त" ना होकर "जो जीता वही सिकन्दर" कैसे हो गया…?
जबकि ये बात सभी जानते हैं कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही लड़ने से मना कर दिया था! बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था! जिस कारण, सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्यूकस की पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से रचाया था;
12.महाराणा प्रताप ”महान” ना होकर ... अकबर ”महान” कैसे हो गया? जब महाराणा प्रताप ने अकेले अपने दम पर उस अकबर की लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था;
जिस प्रताप के नाम से ही अकबर का कपड़ों में ही पैखाना निकल जाया करता था;
13.सवाई जय सिंह को “महान वास्तुप्रिय” राजा ना कहकर, शाहजहाँ को यह उपाधि किस आधार पर मिली?
14.जो स्थान महान मराठा क्षत्रीय वीर शिवाजी को मिलना चाहिये, वो क्रूर और आतंकी औरंगज़ेब को क्यों और कैसे मिल गया?
15.स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह विदेशियों को भारत पर क्यों थोंप दी गई?
16.यहाँ तक कि भारत का राष्ट्रीय गान भी संस्कृत के "वन्दे मातरम" की जगह "जन-गण-मन" हो गया! कब, कैसे और क्यों हो गया?
17. और तो और, हमारे आराध्य भगवान् श्री राम, श्री कृष्ण तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये पता ही नहीं चला! आखिर कैसे?
18.एक बानगी …. हमारे आराध्य भगवान श्री राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या भी कब और कैसे विवादित बना दी गई, हमें पता तक नहीं चला;
19. "गुरुकुल प्रथा" समाप्त कर, "मदरसे" कब और क्यों कर आरंभ हो गए?
20. ब्राह्मणों, पंडितों का तिरस्कार कर मुल्ले-मौलवी कब प्रमुख हो गए, और हिन्दु मंदिरों का चढ़ावा उनको खैरात में बांट दिया गया! क्यों और किस के कहने पर?
एक दिन नौ रोज़ के मेले में महाराणा प्रताप सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिये आई ! जिनका नाम बाईसा किरण देवी था ! जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ था!
बाईसा किरण देवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर क़ाबू नहीं रख पाया और उसने बिना सोचे समझे ही दासियों के माध्यम से धोखे से ज़नाना महल में बुला लिया !
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| बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग |
जैसे ही अकबर ने बाईसा किरण देवी को स्पर्श करने की कोशिश की किरण देवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी !और कहा नीच नराधम, तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूँ, जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है ! बोल तेरी आख़िरी इच्छा क्या है ? अकबर का ख़ून सूख गया ! कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा !
अकबर बोला: मुझसे पहचानने में भूल हो गई मुझे माफ़ कर दो देवी !
इस पर किरण देवी ने कहा: आज के बाद दिल्ली में नौ रोज़ का मेला नहीं लगेगा !और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा !
अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा !
उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा !
इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है।
बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है!
"किरण सिंहणी सी चढ़ी, उर पर खींच कटार..!
भीख मांगता प्राण की, अकबर हाथ पसार....!!"
अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।
आखिर किस आधार पर देश को मिथ्या इतिहास पढ़ाया गया? वर्तमान सरकार को चाहिए कि देश का मिथ्या इतिहास लिखने वालों से हर सुविधा वापस लेकर ब्लैकलिस्ट किया जाए।
भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला हिन्दू राजा कौन था?
कौन था वह राजा जिसके राजगद्दी पर बैठने के बाद उनके श्रीमुख से देववाणी ही निकलती थी और देववाणी से ही न्याय होता था?
कौन था वह राजा जिसके राज्य में अधर्म का संपूर्ण नाश हो गया था?
महाराज विक्रमादित्य
बड़े ही दुख की बात है कि महाराज विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है। जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था और स्वर्णिम काल लाया था।
उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए, फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली।
आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है।
अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था।
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और अन्य हो गए थे।
रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया।
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा। जिसमे भारत का इतिहास है अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे। हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे।
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए, राज अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को दे दिया. वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है।
महाराज विक्रमादित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया भी बनाया, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है।
विक्रमादित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यापारी सोने के वजन से खरीदते थे।
भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमादित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे। आप गूगल इमेज कर विक्रमादित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।
कैलंडर जो विक्रम संवत लिखा जाता है वह भी विक्रमादित्य का स्थापित किया हुआ है।
आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार , तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे।
कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे।
विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे। न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था। विक्रमादित्य का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनी थी और धर्म पर चलने वाली थी।
बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा विक्रमादित्य के बारे में हमारे स्कूलों कालेजों मे कोई स्थान नही है। देश को अकबर, बाबर, औरंगजेब जैसै दरिन्दो का इतिहास पढाया जा रहा है।
एकतरफ जहाँ NCERT (नेशनल काउंसिल ऑफ एड्यूकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) खुद कई बार RTI में यह स्वीकार कर चुका है कि पाठ्यपुस्तकों में बहुत से ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं को वह बिना किसी सबूत के पढ़ाता है वहीं इतिहासकारों की सबसे बड़ी संस्था भारतीय इतिहास कॉन्ग्रेस (IHC) ने NCERT की स्कूल टेक्स्टबुक में संभावित बदलाव का विरोध किया है। इसके पीछे उनका कहना है यह राजनीति से प्रेरित है न कि अकादमिक जरुरत।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस साल की शुरुआत में, राज्य सभा सचिवालय ने अधिसूचना जारी कर संसदीय स्थायी समिति द्वारा पाठ्यपुस्तक के पाठ्यक्रम में बदलाव के अनुमोदन की बात की थी। इसे ‘सुधार’ के रूप में प्रदर्शित करते हुए इसका मुख्य लक्ष्य ‘अनैतिहासिक तथ्यों’ और ‘हमारे राष्ट्रीय नायकों के बारे में विकृतियों’ को खत्म करना और ‘भारतीय इतिहास के सभी अवधियों के समान या आनुपातिक संदर्भ’ तय करना बताया गया था। इस विषय में जनता की प्रतिक्रिया 30 जून तक आमंत्रित की गई है और बाद में समय सीमा 15 जुलाई तक बढ़ा दी गई, अभी हाल ही में आईएचसी ने अपनी प्रतिक्रिया भेजी।
1935 में स्थापित IHC में 35,000 से अधिक सदस्य हैं। टीओआई की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि- उनके पास IHC का जो पत्र है, उसमें कहा गया है, “वर्तमान एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में सुधार लाने के नाम पर पेश की जा रही गलत सूचना और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से आईएचसी बहुत परेशान है।” उसमें कहा गया है, “सुधारों’ में निहित मौजूदा पाठ्यपुस्तकों की आलोचना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त इतिहासकारों के किसी विशेषज्ञ निकाय से नहीं बल्कि पूर्वाग्रह के गैर-शैक्षणिक समर्थकों द्वारा समर्थित राजनीतिक स्थिति से उभर रही है।”
IHC ने कहा, उसे ‘विरूपण’ की आशंका थी क्योंकि एक मिसाल है। पत्र में कहा गया है, “देश के कुछ सबसे बड़े विद्वानों द्वारा एनसीईआरटी के लिए लिखी गई स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को हटा दिया गया था, और उनके स्थान पर 2002 में एक स्पष्ट सांप्रदायिक, बहुसंख्यक पूर्वाग्रह वाली किताबें पेश की गई थीं।” हालाँकि, 12 महीने बाद वह किताबें वापस ले ली गई थीं।
IHC के सदस्यों ने मीडिया संस्थान टीओआई को बताया, “पुस्तकों की हमेशा समीक्षा और जाँच की जानी चाहिए। लेकिन यह ऐतिहासिक काल की शोध-आधारित समझ से प्राप्त अकादमिक सामग्री पर ध्यान देने के साथ मान्यता प्राप्त विद्वानों को शामिल करके किया जाना चाहिए।” आईएचसी के अध्यक्ष अमिय बागची ने आगे कहा, “हम जिस चीज का विरोध करते हैं, वह इतिहास की विकृत समझ को पेश करने की कोशिश है।”
अब जरा उन सन्दर्भों पर नजर डालिये जब NCERT ने खुद स्वीकार किया है कि किताबों में जो तथ्य के रूप में वह बच्चों को पढ़ा रहे हैं उसका उनके पास खुद कोई सबूत नहीं है।
ऑपइंडिया की एक रिपोर्ट में यहाँ बताया गया है कि मुगलों का महिमामंडन मुख्यधारा की मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर उदारवादियों और वामपंथियों द्वारा अक्सर किया जाता है। यहाँ तक भी दावे किए जाते हैं कि औरंगजेब जैसे आक्रांताओं ने भी भारत में रहते हुए मंदिरों की रक्षा की और उनकी देखरेख का जिम्मा उठाया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्कूलों में जिस पाठ्यक्रम में हमें NCERT यह सब बातें सदियों से पढ़ाते आई है, उसके पास इसकी पुष्टि के लिए कोई आधिकारिक विवरण ही मौजूद नहीं है?
एक व्यक्ति ने नवंबर 18, 2020 में एक आरटीआई (RTI) आवेदन दायर कर NCERT (नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) की पुस्तकों (जो स्कूलों में इस्तेमाल होती आई हैं) में किए गए दावों के स्रोत के बारे में जानकारी माँगी।
इस RTI में विशेष रूप से उन स्रोतों की माँग की गई, जिनमें NCERT की कक्षा-12 की इतिहास की पुस्तक में यह दावा किया गया था कि ‘जब (हिंदू) मंदिरों को युद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया था, तब भी उनकी मरम्मत के लिए शाहजहाँ और औरंगजेब द्वारा अनुदान जारी किए गए। जिसका उनके पास कोई सबूत नहीं है।
वहीं एक दूसरे मामले में, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) एक बार फिर विवादों में है। NCERT कई वर्षों से सती प्रथा को लेकर भारतीय संस्कृति के खिलाफ जहर फैलाने की कोशिश में लगा हुआ है, वह भी बिना सबूत के।
तीसरी घटना भी ऐसी ही है, किताबों में मुगलों का महिमामंडल करने वाली NCERT को भरतपुर के एक RTI कार्यकर्ता ने लीगल नोटिस भेजा था। NCERT को ये नोटिस मुगलों पर अप्रमाणित कंटेंट छापने को लेकर भेजा गया था।
अवलोकन करें:-
दरअसल, NCERT की कक्षा-12 की इतिहास की पुस्तक में यह दावा किया गया है कि जब (हिंदू) मंदिरों को युद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया था, तब भी उनकी मरम्मत के लिए शाहजहाँ और औरंगजेब द्वारा अनुदान जारी किए गए। जबकि इसका उनके पास कोई प्रमाण मौजूद नहीं था।
गुजरात दंगों पर मर्सिया पढ़ने वाले अपना रूदन गोधरा से कभी शुरू नहीं करते।
क्योंकि सेक्युलरिज्म के उजाले करने के लिए आप हर बार, बार-बार हिंदुओं के ही घर तो नहीं फूंक सकते न ?
गुजरात दंगों में अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाईटी में मारे गए 69 लोगों के लिए शुरू हुयी इन्साफ की जंग में सिर्फ मुसलमान ही नहीं थे हिन्दू भी साथ थे.....
उनका केस लड़ने वाले वकीलों में हिन्दू, मीडिया में उनकी आवाज़ को उठाने वाले पत्रकारों में हिन्दू, इस हत्याकांड की निंदा करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं में हिन्दू, विरोध करने वाले कई सामाजिक संगठन हिन्दू थे, बड़े बड़े लेखक और बुद्धिजीवियों की जमातों में भी हिन्दू थे........
लेकिन साबरमती एक्सप्रेस में जलाकर मार दिए 59 लोगों के लिए शुरू हुयी इन्साफ की जंग में कितने मुसलमान हिंदुओं के साथ आये ?
कितने मुस्लिम वकील केस लड़ने को तैयार हुए, मीडिया में मौजूद कितने मुस्लिम पत्रकारों ने आवाज़ उठायी, कितने मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने निंदा की, कितने मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया, कितने मुस्लिम लेखकों और बुद्धिजीवियों ने ट्रेन जलाकर निरीह लोगों की हत्या की घटना पर लेख छापे, स्तम्भ या ब्लॉग लिखे........
किसी ने कहा कि नहीं ये (गोधरा) गलत था, गलत हुआ....?
कोई नहीं........ कम से कम मेरी जानकारी में तो कोई नहीं, जितना भाई-चारा हिंदुओं ने गुलबर्ग पर दिखाया, उतना किसी मुसलमान ने गोधरा पर क्यों नहीं दिखाया.....
चाहे कानूनी तौर पर हो या सामाजिक, राजनीतिक तौर पर, बहुत से हिन्दू वकील, पत्रकार, समाज सेवक, सामाजिक कार्यकर्ता, संगठन, लेखक, बुद्धिजीवी मुसलमानों के साथ कानूनी लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखाई देते हैं लेकिन मुसलमान गोधरा के प्रश्न पर हिंदुओं के साथ दिखाई नहीं देते........
और फिर उम्मीद की जाती है कि हिन्दू निष्पक्ष रहें, हिन्दू कट्टरता (गुजरात और गुलबर्ग) का विरोध करें जबकि मुसलमान खुद इस्लामिक कट्टरता (गोधरा) पर एक स्वीकृति के साथ मौन धारण किये रहते हैं......
सेक्युलरिज्म बहुत अच्छी चीज है, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन सेक्युलरिज्म का one sided love होना थोड़ी दिक्कतें तो पैदा करता ही है, जब आप खुद ही निष्पक्ष नहीं हैं तो दूसरे पक्ष को अधिक समय तक निष्पक्ष कैसे रखा जा सकता......
किस तरह कांग्रेस भारत को बनाना चाहती थी गजवा-ए-हिंद
कितना भयानक षड्यंत्र !
• पाकिस्तान बना - कांग्रेस शासन में!
• बांग्लादेश बना - कांग्रेस शासन में !
• 370 लागू हुआ -कांग्रेस शासन में !
• अल्पसंख्यक बिल आया - कांग्रेस शासन में !
• मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना - कांग्रेस शासन में !
• अल्पसंख्यक मंत्रालय बना - कांग्रेस शासन में !
अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय बना - कांग्रेस शासन में !
ये सभी काम “कांग्रेस” ने किए, सिर्फ “मुसलमानो“ के लिए।
वो भी जब देश का “बंटवारा”, ‘धार्मिक' आधार पर हुआ तो क्या ये तैयारी कांग्रेस की “गजवा-ए-हिन्द“ के लिए नही थी ?
• देश को “चुपचाप“ इस्लामिक देश बनाने की तैयारी थी, कांग्रेस की और “हिन्दुओं“ के लिए सिर्फ “आरक्षण” दिया ताकि “हिन्दू समाज “हमेशा आपस मे “लड़ता“ रहे। और कभी “गजवा-ए-हिन्द” को समझ न पाए।
पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने अपनी किताब "मेरा जीवन वृतांत" में पृष्ठ संख्या 456 पर लिखा है कि :- पता नही क्यों? नेहरु को “हिन्दू धर्म“ के प्रति एक "पूर्वाग्रह“ था? नेहरु ने “हिन्दुओं को दोयम नागरिक “ बनाने के लिए “हिन्दू कोड बिल” लाने की बड़ी कोशिश की थी, लेकिन “सरदार पटेल“ ने नेहरु को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि मेरे जीते जी आपने “हिन्दू कोड बिल“ के बारे में सोचा तो मैं “कांग्रेस“ से इस्तीफ़ा दे दूंगा और इस बिल के “खिलाफ“ सड़कों पर ”हिन्दुओं“ को लेकर उतर जाऊँगा, फिर पटेल की धमकी से नेहरु जी “डर“ गये थे और उन्होंने सरदार पटेल जी के देहांत के बाद “हिन्दू कोड बिल“ संसद में पास किया था! इस बिल पर चर्चा के दौरान आचार्य जेबी कृपलानी ने नेहरु को “कौमवादी“ और “मुस्लिम परस्त“ कहा था ! उन्होंने कहा था कि आप “हिन्दुओं को धोखा“ देने के लिए ही “जनेऊ“ पहनते हो, वरना आपमें हिन्दुओ वाली कोई बात नहीं है। यदि आप सच में धर्म निरपेक्ष होते तो हिन्दू कोड बिल के बजाय सभी धर्मो के लिए “कामन कोड“ बिल लाते।
ये तमाम पत्रकार जिन्होंने 6 दिसम्बर 1992 को पन्ने काले किए थे ना, बोलते है न्यूज़ नहीं छापेंगे, साम्प्रदायिकता की बात है, देश के लिए शर्म की बात है। हमे बताये साम्प्रदायिकता का राग रटने वालो तुमने पन्ने उस दिन काले क्यों नहीं किए, उस दिन देश के लिए शर्म की बात नहीं थी! जब हिंदी बोलने पर क्रिस्चन स्कूलोँ के अंदर बच्चो ने कोड़े खाए, जब मेँहँदी लगाने पर बच्चोँ को मारा गया, बच्चियों को मारा गया। तब शर्म नहीं आई? जब 300 मंदिर टूटे तब शर्म नहीं आई ? जब देश की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गयी की देश का सोना गिरवी रखना पड़ा तब शर्म नहीं आई? जब 3000 सिखों को जिन्दा जला दिया गया तब तुमको शर्म नहीं आई? तुम्हारी शर्म के मानदंड अलग है बेशर्मोँ। आज बात करते है देश का प्रजातंत्र खतरे में पड़ जायेगा, प्रजातंत्र खतरे में पड़ जायेगा। अगर हिम्मत है तो हमारी केवल एक बात का जवाब दो, उस स्थान का नाम बताओ जहाँ हिंदू भाव हो प्रजातंत्र खतरे में हो। प्रजातंत्र खतरे में केवल वही पड़ता है जहाँ राष्ट्रवादी लोग कम हो जाते है, जहाँ पर हिंदू कम हो जाते है आजतक मंदिर से कोई गोली चली हो तो बताये ? झगडे कहाँ से चालू होते है? कहते हैँ संवेदनशील एरिया है। ये मुंबई संवेदनशील क्यों नहीं है? इंदौर का हिंदू बहुल इलाका संवेदनशील क्यों नहीं है? बाकि सब राज्यो में जहाँ हिंदू ज्यादा हैँ वो संवेदनशील क्यों नहीं है? संवेदनशील कश्मीर क्यों है? आज उत्तरप्रदेश के कई इलाके संवेदनशील क्यों है? संवेदनशील वही होते है जहां हिंदू कम होते है। लेकिन कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता। प्रजातंत्र आज मुंबई में खतरे में क्यों नहीं है? कश्मीर में, असम में क्यों खतरे में पड़ता है ? क्योंकि वह हिंदू कम हो गए है। "प्रजातंत्र है तब तक, जब तक हिंदू है बहुसंख्यक, और प्रजातंत्र का द्रोही कभी ना हिंदू हुआ अभी तक"। क्यों ? क्योंकि मुसलमान पहले भी ज्यादा हुए, कह दिया हम मुसलमान हैँ हमे पाकिस्तान चाहिए। ये क्रिस्चन कहते है हमेँ क्रिस्चनलैंड चाहिए, हमे नागालैंड चाहिए। सबको अपना अपना स्थान चाहिए। लेकिन हिंदू अगर मांगेगा तो क्या? हिंदू को बस केवल उसका हिन्दुस्थान चाहिए।
जब ग़दर फिल्म में पाकिस्तान को गाली दी गई तो मालूम पड़ा के क्या होता है के लड़की मुसलमान है तो लड़का हिंदू नहीं हो सकता। लड़का हिंदू है तो लड़की मुसलमान नहीं चलेगी। ये टीवी चेनेल जो दिखाते रहे है लड़की हिंदू है ठीक है, लड़का मुसलमान है ठीक है। कोई दिक्कत नहीं। मुसलमान लड़का हिंदू लड़की से शादी कर सकता है। अपने घर में बेगम बना कर रख सकता है, लेकिन हिंदू लड़का मुसलमान लड़की से शादी नहीं कर सकता। ये तमाम फिल्म इंडस्ट्री जो आज खड़ी हुई है, आज के पहले जब दिलीप कुमार आया था नाम था ' युसूफ खान ' लेकिन हिंदू नाम रखना पड़ा। मधुबाला को हिंदू नाम रखना पड़ा, मीना कुमारी को हिंदू नाम रखना पड़ा। क्यों ? क्योंकि आज से पहले हिंदू नाम के बिना कोई फिल्म देखने को तैयार नहीं था, और आज ये फिल इंडस्ट्री दिखाती है की कोई भी बलात्कार होगा तो मंदिर में होगा। मंदिर पुजारी होगा तो एक नंबर का गुंडा और वाहियात होगा। हमेशा लड़की की रक्षा करेगा तो मोलवी करेगा, या कोई पादरी करेगा। लेकिन पता है आज जितनी भी इज्जत लुटी जा रही है, सबसे ज्यादा कहा लुटी जा रही है?








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