केन्या : नौकरी के लिए मछुआरों के साथ सेक्स करने को मजबूर औरतों को टमाटरों ने बचाया

                                                               नो सेक्स फॉर फिश’ ग्रुप की एक महिला. तस्वीर साभार: एनपीआर
केन्या में लेक विक्टोरिया के किनारे एक गांव के ज़्यादातर लोग मछली बेचकर ही अपना जीवन यापन करते हैं। इसी मछली बेचने के सिलसिले से जुड़ी है एक कुप्रथा ‘जबॉया’

जबॉया क्या है?

जबॉया एक कुप्रथा है जिसके तहत महिलाओं को मछली खरीदने  के बदले सेक्स की पेशकश करनी होती है। महिलाएं अगर मछुआरे से मछली खरीदकर आस-पास के मार्केट में बेचना चाहें तो उन्हें जबॉया के तहत सेक्स ऑफर करना पड़ता है

ऐसा इसलिए होता है क्योकि लेक विक्टोरिया के आस-पास मछली पकड़ने और बेचने का बिज़नेस जेंडर के आधार पर निर्धारित होता है। पुरुष नावों के मालिक हैं। लिहाज़ा मछली पकड़कर लाने की सुविधा पुरुषों के पास होती है। पुरुषों से मछली खरीदकर मार्केट में बेचने का काम महिलाओं का होता है। 

1970 के बाद से विक्टोरिया लेक में मछलियों की संख्या कम होने लगी। जितनी मछलियां पकड़ी जातीं वो मार्केट में बेचने के लिहाज़ से कम  पड़ जातीं। यानी डिमांड ज़्यादा थी और सप्लाई कम। इस डिमांड सप्लाई के खेल में फ़ायदा मछुआरों ने उठाना शुरू किया। मतलब पुरुषों ने। उन्होंने प्रस्ताव रखा, जो महिलाएं उनके साथ सेक्स करेंगी, उन्हें बेचने के लिए मछलियां मिल जाएंगी। जबॉया में पुरुष अलग-अलग महिलाओं के साथ संबंध बनाते। यह एक तरह से अनप्रोटेक्टेड सेक्स होता है। जबॉया में भाग लेने वाले कई पुरुषों को नहीं पता होता कि वो HIV पॉजिटिव हैं या नहीं। कई बार पता होने के बाद भी इस बात को छुपाए रखते

कई महिलाओं के लिए, उनके परिवार का अस्तित्व मछली बेचने पर निर्भर करता है। परिवार चलाने के लिए जबॉया जैसी कुप्रथा को मानने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं होता था। इससे महिलाओं की सेहत पर भी बुरा असर हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नतीजा ये हुआ कि केन्या के मछली पकड़ने वाले समुदायों में एचआईवी प्रसार की दर 30% से 40%  तक बढ़ गई। यह एक बहुत बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है जिससे सरकार जूझ रही है

इसके बाद शुरुआत हुई ‘No sex for Fish’ की!

विक्टोरिया इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट एंड डेवेलपमेंट ने इस तस्वीर को बदलने की कोशिश की। उन्होंने महिलाओं को ही नावें दीं, यानी महिलाएं ही अब नावों की मालकिन थीं। इससे हुआ ये कि वो भी पुरुषों की तरह ही मछली पकड़ने समंदर में जाने लगीं और वहां से मछलियां लाकर बाकी औरतों को बेचतीं जिसे आगे मार्केट में बेचा जाता। अमेरिका के HIV एड्स रिलीफ प्रोग्राम PEPFAR ने नावों के लिए फंड दिया। महिलाओं को कुल 30 नाव और फिशिंग नेट्स मिले, नावों पर लिखा था ‘नो सेक्स फॉर फिश’, और यहीं से इन महिलाओं के ग्रुप को ये नाम मिला

काम के बदले सेक्शुअल फेवर मांगना सिर्फ लेक विक्टोरिया के आस पास के गांव की समस्या नहीं थी। जेंडर के हिसाब से काम को बांटना भी कोई अनोखी बात नहीं थी। दुनियाभर में ऐसा देखने को मिलता ही है। और यह सिर्फ गांव और छोटे शहरों तक ही सीमित नहीं है। आपको याद होगा #metoo मूवमेंट के दौरान दुनियाभर की औरतों ने कॉर्पोरेट में होने वाले सेक्शुअल हरासमेंट के बारे में बताया था

इसलिए ‘नो सेक्स फॉर फिश’ की शुरुआत बहुत बड़ी बात थी। भले ही यह बहुत छोटे स्तर पर हुआ बदलाव था पर इसका मैसेज बहुत व्यापक था। यह दुनियाभर की महिलाओं के लिए प्रेरणा था। दुनियाभर में जो महिलाएं संघर्ष कर रही थीं उनके लिए यह मूवमेंट उम्मीद के समान था। ‘नो सेक्स फॉर फिश’ अपने आप में एक क्रांतिकारी नाम है, एक ऐसा नाम जो बताता है कि रूढ़िवादी बेड़ियां और परंपराएं तोड़ी जा सकती हैं

‘No sex for fish’ ग्रुप पर प्रकृति की दोहरी गाज गिरी!

लेकिन इस गांव की महिलाओं का संघर्ष यहीं खत्म नहीं होता। साल 2020 में यहां के लोगों पर प्रकृति की दोहरी गाज गिरी, कोरोना माहमारी और विनाशकारी बाढ़

कोरोना के कारण आर्थिक मंदी आई और बाढ़ का असर इतना व्यापक था कि कई घर बर्बाद हो गए. 1000 से ज़्यादा परिवारों को गांव के स्कूल में बने कैंप का सहारा लेना पड़ा। ‘नो सेक्स फॉर फिश’ ग्रुप की कई महिलाओं की नांव बाढ़ में बह गई। एनपीआर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लौरीन अबुटो ग्रुप की इकलौती महिला हैं जिनकी नाव बाढ़ के प्रकोप में बच पाई। लेकिन उन्हें भी नाव चलाने के लिए पुरुषों को रखना पड़ा। अबुटो कहती हैं – "प्रकृति ने हम में से कुछ को अलग कर दिया पर हमारा लक्ष्य अभी भी बरकरार है। ग्रुप की औरतें अलग अलग जगह काम करती हैं। अब पहले की तरह मछली पकड़ने और बेचने के मुद्दों पर सामूहिक बैठकें और बातचीत नहीं होती। मछली का स्टॉक भी कम हो गया है और बिज़नेस भी पहले जैसा नहीं चलता”

इन सब के बाजवूद इन महिलाओं ने ‘नो सेक्स फॉर फिश’ की मुहिम जारी रखी। ज़्यादातर महिलाएं आजकल खेती करती हैं, टमाटर की। अब आप सोच रहे होंगे टमाटर ही क्यों? और कुछ क्यों नहीं? इसके पीछे की वजह है हिप्पोपोटैमस यानि दरियाई घोड़े। दरअसल विक्टोरिया लेक में बहुत सारे दरियाई  घोड़े हैं। बाढ़ के बाद से पानी आगे तक आ गया। इसके कारण कई बार ये हिप्पो गांव तक आ जाते हैं। स्वाभाव से बहुत गुस्सैल ये घोड़े कई बार पूरी फसल खा जाते हैं और लोगों पर भी हमला कर देते हैं। लेकिन इन दरियाई घोड़ों को टमाटर पसंद नहीं हैं, वो इसे नहीं खाते, इसलिए महिलाओं ने टमाटर की खेती शुरू की

कई बार लगता है महिलाओं के साथ संघर्ष अपने आप जुड़ा चला आता है, पर ‘नो सेक्स फॉर फिश’ ग्रुप की महिलाओं की ज़िद और स्थिति बदलने के जुनून के आगे पहाड़ जैसा संघर्ष भी छोटा लगने लगता है

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