तसलीमा नसरीन ने अंधकार युग से की हिजाब की तुलना, कहा- हिजाब-बुर्का महिलाओं के अपमान का प्रतीक

अकसर विवादों से घिरी रहने वाली बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने सोशल मीडिया यह बड़ा खुलासा किया है कि उनके पूर्वज हिंदू थे और उनके एक पूर्वज का नाम हरधन सरकार, जिनका बेटा मिमेनसिंह (बांग्लादेश) में धर्मपरिवर्तन करके मुसलमान बन गया था।

नसरीन ने ट्वीट करके कहा है, "मेरे हिंदू पूर्वज का नाम हरधन सरकार था। वे कायस्थ थे। उनके बेटे ने धर्मपरिवर्तन करके इस्लाम धर्म अपना लिया था। ये सूफी प्रभाव था? धर्म परिवर्तन करने के लिए वह मजबूर किए गए थे? मैं नहीं जानती।"
हिजाब-बुर्के को लेकर देशभर में हंगामा मचा हुआ है। सोशल मीडिया पर लोग अपने विचार शेयर कर रहे हैं। अब लेखिका तसलीमा नसरीन ने हिजाब को लेकर अपने विचार शेयर किए हैं। उन्होंने हिजाब-बुर्के की तुलना अंधकार युग से की है। उनका कहना है कि बुर्का अंधकार युग का पट्टा है। ये औरत की पसंद कभी हो ही नहीं सकती। ये एक औरत के लिए किसी अपमान से कम नहीं है। 
कथित इस्लाम विरोधी विचार रखने के कारण कट्टरपंथी संगठनों से धमकियां मिलने के बाद तस्लीमा ने साल 1994 में बांग्लादेश छोड़ दिया था। तब से लेकर अब तक वह निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रही हैं।

उन्होंने आगे कहा कि- “भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। भारत में एक शैक्षणिक संस्थान के लिए  सिविल कोड लागू होना जरूरी है। हिजाब महिलाओं के अपमान का प्रतीक हैं। मुझे उम्मीद है कि महिलाओं को जल्द ही यह एहसास हो जाएगा।

नसरीन का कहना है कि इस विवाद को रोकने के लिए समान ड्रेस कोड होना अनिवार्य है। धर्म का अधिकार शिक्षा के अधिकार से ऊपर नहीं है।”लेखक की टिप्पणी कर्नाटक में उच्च शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने के अधिकार पर विवाद के बीच आई है।

दरअसल, कुछ हफ्ते पहले, हिजाब में छात्राओं को एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था। इस घटना के बाद, राज्य के विभिन्न हिस्सों में हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को समानता हासिल करने और बंधुत्व और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए पंजीकृत शैक्षणिक संस्थानों में स्टाफ सदस्यों और छात्रों के लिए एक समान ड्रेस कोड लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

 फरवरी 11 को अदालत ने कहा कि वह प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगी और उचित समय पर मामलों की सुनवाई करेगी। यह नोट किया गया कि कर्नाटक उच्च न्यायालय पहले ही इस मामले को जब्त कर चुका था।

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