दिव्य अग्रवाल, उगता भारत
सनातन धर्म इस ब्रह्माण्ड का आधार है। जिसका व्याख्यान असंख्य धर्म पुस्तको व पुराणों में किया गया है। परन्तु इसके विपरीत एक सत्य यह भी है कि सनातन धर्म को कमजोर व धर्म के प्रति हीन भावना को प्रोत्साहित कर सनातनियो में विघटन उत्तपन करने हेतु मुगल काल मे इस्लामिक कट्टरपंथियो ने सनातनी धर्म पुस्तको के भावार्थ व शब्दकोश में व्यापक परिवर्तन किए। जिसके फलस्वरूप बहूत सारे लोग व युवा पीढ़ी के अंतःकरण में सनातन धर्म के प्रति बहूत सारी विकृतियों ने जन्म ले लिया। जिसका एक जीवंत उदहारण सनातन धर्म में 33 करोड़ देवता होने का है। असंख्य लोग आज भी भृमित है कि सनातन धर्म मे 33 करोड़ देवता है तो किस किस की पूजा करें जिसके चलते युवा पीढ़ी का तो पूजा पाठ पर विश्वास ही नही बन पाता है और बुद्धिजीवी व्यक्ति भी इस भृम से ग्रस्त होकर स्वम नए नए धर्म बना लेते हैं। भगवान विष्णु के 24 अवतार और 108 नाम हैं, हर स्थान पर उन्हें उन्ही नामों से पूजा जाता है, जिस रूप में वहां प्रकट हुए थे। विष्णु के अवतार श्री राम उन्ही के 108 नाम है, वही स्थिति श्री राम के परमभक्त हनुमान की है। यदि वेद पुराणों का समुचित एवं सही भावार्थ पढ़ेंगे तो ज्ञात होगा कि धर्म पुस्तको में जिन 33 कोटि देवताओं का उल्लेख किया गया है वो करोड़ नही अपितु 33 प्रकार है। जिस प्रकार कनक , कनक के दो अर्थ होते हैं । उसी प्रकार कोटि का अर्थ प्रकार भी होता है । अब ये 33 प्रकार के देवता कौन है और इनका इस प्रकृति व प्राणधारी जीव से क्या संबंध है इसको भी समझिए। 33 प्रकार के देवताओ में 8 वसु , 12 आदित्य,11 रुद्र , 1 इंद्र व 1 प्रजापति हैं। वसु में वायु ,जल ,पृथ्वी,अग्नि ,सूर्य , चंद्रमा ,आकाश ध्रुव आते हैं। अतः स्वम् समझें क्या इनमें से कुछ भी ऐसा है जिसके बिना जीवन संभव हो सके। यदि नही तो इन सबको देवता स्वरूप मानकर इन सबके प्रति अपनी कृत्यगता प्रकट करने में क्या दिक्कत है । अब बात करते है 12 आदित्यों की जो एक वर्ष के 12 माह व उनकी वैज्ञानिकता का उल्लेख करने के साथ साथ सामाजिक जीवन के 12 सिद्धांतों का वर्णन भी करते हैं। जिसके अनुषार नेतृत्व, अंश/हिस्सा, श्रेष्ठता, धरोहर, अनुष्ठान कौशल, शिल्प कौशल, मित्रता, सम्रद्धि, शब्दज्ञान, सामाजिक नियम, भाग्य व ब्राह्मणीय कानून की महत्वता, निर्वहन व पालन के सिद्धांत का व्याख्यान किया गया है । तत्पश्चात 11 रुद्र देवता की बात करें तो ये सभी एक प्राणधारी की देह व जीवात्मा से सम्बन्ध रखते हैं। जिनके रहते किसी देह को जीवित या न होने पर मृत कहा जाता है जिसमे प्राण, अपान, व्यान, समान उदान, नाग, कर्म, किरकल, देवदत्त, धनंजय,
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