बादशाह अकबर की जूतों से क्यों हुई पिटाई?: कौन थी किरण देवी जिससे अय्याश अकबर ने ज़िंदगी की भीख मांगी थी? : इतिहास जो छिपाया गया

भारतीय जनता को किस तरह गौरवशाली भारतीय इतिहास को धूमिल कर मुग़ल आक्रांताओं के खुनी इतिहास को छुपाकर महान पढ़ाया गया। जिन इतिहासकारों ने इतिहास के साथ ऐसा क्रूर मजाक किया है, उन्हें ब्लैकलिस्ट कर अब तक प्राप्त समस्त सुविधाओं वापस ली जाएं।  
सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह युद्धनीति में भी पारंगत थे और उनका मानना था कि कला-संस्कृति के साथ-साथ लोगों को युद्धकला का भी प्रशिक्षण मिलना चाहिए। वे खालसा के लिए ऐसे लोग चाहते थे, जो अपना जीवन क़ुर्बान करने में भी नहीं हिचकें। सिखों के पवित्र पुस्तकों में से एक ‘दशम ग्रन्थ’ के रचयिता भी गुरु गोविन्द सिंह को माना गया है। ‘चरित्रोपाख्यान’ इसी दशम ग्रन्थ का एक भाग है, जिसमें कई ऐतिहासिक और पौराणिक कहानियाँ हैं। इन कहानियों में एक ऐसी कहानी है, जो 16वीं सदी में हिंदुस्तान पर राज़ करने वाले अकबर से जुड़ी है।

इन कहानियों से सीख मिलती है। सिख धर्म-ग्रंथों के ज्ञाता प्रीतपाल सिंह बिंद्रा ने ‘चरित्रोपाख्यान’ को अंग्रेजी में अनुवादित किया था। भारत और लंदन के स्कूलों में पढ़ाने वाले बिंद्रा ने पंजाब यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया था। पुरानी पवित्र पुस्तकों को पढ़ने में उनकी इतनी रूचि थी कि उन्होंने अपने व्यापार को बेच कर इन पुस्तकों का अध्ययन और अनुवाद को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया।

अब बात ‘शहंशाह’ अकबर की। नरमुंडों का पहाड़ खड़ा कर के दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले अकबर को सेक्युलर इंडिया का नायक बताया जाता है। हमें पढ़ाया गया है कि कैसे अकबर के दरबार में कई हिन्दू विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काबिज थे। अब यह सच में अकबर की विचारधारा थी या फिर चतुर नीति, इस पर बहस होती रही है। लेकिन, अकबर से जुड़ी कई बातें छिपाई भी गई हैं। चित्तौड़ पर अकबर के आक्रमण से लेकर महिलाओं के प्रति उसके रवैये तक, कई बातें आज भी छिपा कर रखी गई हैं।

सिख ग्रन्थ ‘श्री चरित्रोपाख्यान’ में ऐसी-ऐसी कहानियाँ हैं, जिसे पढ़ने के बाद व्यक्ति दूसरों की ग़लतियों से सीख सकता है। 404 कहानियों के इस सेट की सिख धर्म में काफ़ी मान्यता है। इसमें अकबर से जुड़ी जो कहानी है उससे अकबर के ठरकपन और चरित्र के बारे में पता चलता है। अब चूँकि आपको इस बारे में न के बराबर पता होगा, हम आपके लिए इस कहानी को पेश कर रहे हैं। यह ‘चरित्रोपाख्यान’ की 185वीं कहानी है।

चरित्रोपाख्यान: अकबर और रंग कुमारी की कहानी

आगरा स्थित अकबराबाद में एक साहूकार रहा करता था। रंग कुमारी उसी की बेटी थी। कहते हैं उसका सौंदर्य ऐसा था कि जो भी एक बार देख ले मोहित हो जाता। उस समय आगरा अकबर की राजधानी थी और वह वहीं से शासन चलाया करता था। वह फतेहपुर सीकरी में अपना दरबार लगाया करता था। अकबर को शिकार का शौक था और वह अक्सर शिकार खेलने जाया करता था।
एक बार शिकार खेलने के दौरान ही अकबर की नज़र रंग कुमारी पर पड़ी और वह तुरंत ही उस पर मोहित हो गया। अकबर उसे हर हाल में पाना चाहता था। अकबर के बारे में पुस्तक लिख चुके डर्क कोलियर कहते हैं कि अकबर के महल में कम से कम 5000 महिलाएँ होती ही होती थीं। बेल्जियम के लेखक के अनुसार, अकबर अनगिनत महिलाओं के साथ सो चुका था और यह सब तभी शुरू हो गया था जब वह काफ़ी कम उम्र का था। इतिहासकारों की मानें तो अकबर की 300 के क़रीब पत्नियाँ थीं।
अकबर ने कई राजपूत राजघरानों की लड़कियों से शादी कर रखी थी। ख़ैर, वापस रंग कुमारी की कहानी पर आएँ तो अकबर ने अपनी एक दासी को उसके पास भेजा। वह दासी अकबर का सन्देश लेकर रंग कुमार के पास गई। सन्देश यही था कि अकबर ने रंग कुमारी को अपने महल में बुलाया है। रंग कुमारी चालाक महिला थीं। उन्होंने अकबर के पास जाना स्वीकार नहीं किया, लेकिन वह जानती थीं कि वह एक शक्तिशाली बादशाह है। इसीलिए, रंग कुमारी ने अकबर को अपने घर पर बुलाया।
दासी ने अकबर को जाकर रंग कुमारी का सन्देश कहा। जब अकबर रंग कुमारी के पास पहुँचा तो वह बिस्तर लगा रही थी। फिर क्या था, अकबर की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसे लगा कि वह अपने उद्देश्य में सफल हो रहा है। लेकिन, रंग कुमारी भी पतिव्रता हिन्दू महिला थीं। रंग कुमारी ने अकबर को काफ़ी इज्जत दी। बिस्तर लगाने के बाद अकबर से कहा कि वह शौचालय से निपट कर आना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वह जल्दी ही आ जाएँगी।
                                  ‘चरित्रोपाख्यान’ के अंग्रेजी अनुवाद का अंश (अनुवादक: प्रीतपाल सिंह बिंद्रा )
शौचालय जाने के बहाने निकली रंगा कुमारी ने दरवाजा तेज़ी से बंद कर दिया और इस तरह से अकबर अंदर कमरे में ही क़ैद हो गया। इसके बाद कुमारी अपने पति को लेकर उस कमरे में आ गईं। अपनी पत्नी के साथ छेड़छाड़ से क्रुद्ध रंग कुमारी के पति ने गुस्से में न सिर्फ़ अकबर के ताज को ज़मीन पर पटक कर अपने पैरों तले रौंद डाला बल्कि अपना जूता निकाल कर अकबर को कई जूते लगाए भी।
बादशाह अकबर अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा के डर से यह सब बर्दाश्त करता रहा। कहीं न कहीं उसके मन में यह एहसास भी हो गया कि उसने ग़लत किया है। लज्जा के मारे वह चुपचाप खड़ा रहा। इसके बाद रंग कुमारी और उसके पति ने मिल कर अकबर को एक भू-गर्भित कालकोठरी में क़ैद कर दिया। हिंदुस्तान का बादशाह होकर औरतों पर ग़लत नज़र डालने वाले अकबर की ये कहानी शायद ही कहीं और पढ़ी-पढ़ाई गई हो।
अगले दिन की सुबह होते ही पति-पत्नी अकबर को लेकर शहर के क़ाज़ी के पास पहुँचे। न्यायालय में रंग कुमारी और उसके पति ने अकबर के कुकृत्यों को बताने के बाद कहा, “यह एक संत है, चोर है, साहूकार है या फिर बादशाह है, आप ख़ुद पता कर लीजिए।” इतना कह कर निकल गए। लज्जा के मारे अकबर का सिर ऊपर उठ ही नहीं रहा था। पूरे प्रकरण के दौरान वह सिर झुकाए खड़ा रहा।
‘चरित्रोपाख्यान’ में पूछा गया है कि अगर कोई व्यक्ति इस तरह से पराई स्त्री पर नज़र डालता है और उसके घर में घुस जाता है, क्या उसे दण्डित नहीं किया जाना चाहिए? बादशाह अकबर को इस घटना के बाद अच्छी सीख मिली और उसके बाद उसने किसी पराई स्त्री के घर में घुसना बंद कर दिया। उपर्युक्त कहानी सिख ग्रन्थ ‘चरित्रोपाख्यान’ में वर्णित है, जिसके रचयिता गुरु गोविन्द सिंह माने गए हैं।

Rang Kumari’s husband had no idea the intruder pursuing his wife was Emperor Akbar. He thrashed Akbar with shoes and locked him inside the room.

The next day he informed the civil judge (Qazi) and handed over the intruder. Akbar was totally humiliated and couldn’t speak a word. pic.twitter.com/1H9MHSZHdn

— True Indology (@TIinExile) August 21, 2019
इस वीरांगना के इस साहसिक कदम ने
मीना बाजार बन्द करवाया था 
कौन थी किरण देवी जिससे अय्याश अकबर ने ज़िंदगी की भीख मांगी थी? 
अकबर की अय्याशी और भी हैं, जब इस अय्याशी ने अकबर की जान को ही खतरा डाल दिया था। आइये जानते है कि जब अय्याश अकबर ने महाराणा प्रताप की भतीजी किरण देवी से अपनी ज़िंदगी की भीख मांगी थी। 
भास्कर न्यूज़ के अनुसार इतिहास के विशेषज्ञ राजेंद्र राठौर बताते हैं, शुरुआत में अकबर को भारत में हुकूमत करने के लिए हिंदुओं को साथ में रखना मजबूरी थी। लेकिन बाद में फतेहपुर सीकरी के इबादत खाने में अलग-अलग धर्मों के आचार्य और संत−महात्माओं के साथ बातचीत करते रहने से अकबर के धार्मिक विचारों में बड़ी क्रांति हुई।  उस समय हिंदू और मुसलमानों में धार्मिक मतभेद भी बढ़ने लगे थे, तो अकबर ने नए धर्म के बारे में सोचा। इसके अलावा अबुलफजल के अकबरनामा के मुताबिक, अकबर ने कहा था कि जितने धर्म होंगे उतने ही दल होंगे।  ऐसे में आपस में शत्रुता होती है। इसलिए सभी धर्मों का समन्‍वय जरूरत है। इससे ईश्वर के प्रति आदर बढ़ेगा और लोगों में शांति रहेगी।
अकबर ने सर्वधर्म समन्‍वय का रास्‍ता पकड़ा, जिसे ‘सुलह कुल’ कहा गया।  इसी को आगे बढ़ाकर उसने 40 साल की उम्र में साल 1582 में दीन-ए-इलाही बनाया।
मुग़ल शासको के कितने भी गुणगान कर लो लेकिन भारत में जितने भी मुग़ल आये उन्होंने अपनी नीचता दिखाने में कसार नहीं छोड़ी।
भारत में  स्त्रियों का सबसे ज्यादा शोषण मुग़ल के आने के बाद ही शुरू हुआ। मुग़ल शासन काल से पर्दाप्रथा, जौहर, वैश्यावृति, शारीरिक शोषण ने जोर पकड़ा। इनमें महान अकबर भी किसी से पीछे नहीं था।
आइये जानते हैं अकबर की असलियत और अकबर का मीना बाज़ार –
*सिर्फ 22 साल की उम्र में अकबर पूरी तरह से वासना लिप्त हो चुका था. शाह अबुल माली और मिर्जा शैफुदीन हुसैन के घर की स्त्रियाँ भी अकबर की  वासना की बलि चढ़ चुकी थीं।
*अकबर ने आगरा और अन्य जगह के लगभग 15-20  परिवारों की स्त्रियों को अपने हरम में लाना चाहता था। जिसके बाद आगरा के मुख्य  मुसलमान दर‍बारियों में गुप्त बैठक बुलाई गई और अकबर की हत्या करने की योजना तैयार की गई  थी। लेकिन अकबर को मार पाना इतना आसान नहीं था।
*अकबर के इस वासना कुकर्म और उसके ऐयाशी से उसकी प्रजा भी काफी नाराज़ थी। अकबर के परिवार की औरतें और रिश्तेदार भी अकबर से और अकबर का मीना बाज़ार से नफरत करते थे। परिवार के सदस्यों ने अकबर को मारने के लिए तीर कमान तक सीखना शुरू कर दिया था, क्योकि अकबर को पास रहकर मार पाना असम्भव था।
*1564 में अकबर द्वारा औलिया दरगाह पर दर्शन का आयोजन कराया गया था, जहाँ मदरसे से नीचे आते वक़्त अकबर पर तीर कमान चलना शुरू हो गया। अंगरक्षकों ने अकबर की जान बचाई और दिल्ली महल में लेकर आये। खून से लथपथ अकबर का इलाज लगभग दस दिनों तक चला था।
*इस मौत के डर ने अकबर को झकझोर दिया। जिसके बाद अकबर ने दुसरो की पत्नियों को छीनकर हरम में लाना बंद किया था।
*लेकिन अकबर का मीना बाज़ार चलता था। मीना बाजार के बहाने औरतों को बुलाकर उनकी इज्ज़त लूटने का सिलसिला चल ही रहा था। इस मीना बाज़ार की आड़ में अकबर औरतों को बुलवाता और अपनी वासना शांत कर छोड़ देता था।
*अकबर औरतों को घुमने के बहाने मीना बाज़ार में लाता था और उनकी इज्ज़त लूटकर अपनी हवास पूरी करता था। यहाँ बड़े बड़े राजा और शासक की बहु बेटियों को बुलाकर उनको देखता और जो पसंद आ जाती उसकी इज्ज़त लूटता था।
ये था अकबर और अकबर का मीना बाज़ार – वैसे तो अकबर का इतिहास और जीवन नीचतापूर्ण और दरिंदगी से भरा हुआ था, लेकिन पता नहीं क्यों भारत के इतिहास में अकबर को महान शासक कहा गया।
अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है लेकिन अकबर की औछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है
अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज का मेला आयोजित करवाता था जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती थी उसे दासियाँ छल कपटवश अकबर के सम्मुख ले जाती थी एक दिन नौरोज के मेले में महाराणा प्रताप की भतीजी छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ। 
बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर काबू नही रख पाया और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से जनाना महल में बुला लिया जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटकर छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी और कहा नींच... नराधम तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हुं जिनके नाम से तुझे नींद नहीं आती है बोल तेरी आखिरी इच्छा क्या है अकबर का खुन सुख गया कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा अकबर बोला मुझे पहचानने में भूल हो गई मुझे माफ कर दो देवी तो किरण देवी ने कहा कि आज के बाद दिल्ली में नौरोज का मेला नहीं लगेगा और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा
इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो मे 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग मे भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है
किरण सिंहणी सी चढी उर पर खींच कटार
भीख मांगता प्राण की अकबर हाथ पसार
धन्य है किरण बाईसा उनकी वीरता को कोटिशः प्रणाम !
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ऐय्याश अकबर को महान बताने वाले इतिहासकारों का बहिष्कार हो
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अब सवाल यह उठता है कि प्राचीन पुस्तकों में जब अकबर के बारे में ऐसा वर्णित है तो इस बारे में कोई चर्चा क्यों नहीं करता? अकबर ‘महान’ के कथित सेक्युलर चरित्र का गुणगान करते हुए उसे भारत का नायक के रूप में पेश करने वाले वामपंथी इतिहासकारों ने अकबर के नेगेटिव पक्ष को इस तरह से छिपाया, जैसे उसे सीधा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश की जा रही हो। ऐसे गिरोह विशेष के इतिहासकारों को ‘दीन-ए-इलाही’ मज़हब अपनाकर फतेहपुर सिकरी में नंगा नाचना चाहिए, शायद अकबर उन्हें भी अपने पास बुला ले।

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