राहुल जी ब्रिटिश सरकार से माफ़ी सावरकर नहीं जवाहर लाल नेहरू ने मांगी थी

                                                                                          साभार ANI 
भारतीयों को वास्तविक इतिहास से अशिक्षित रखने का मुख्य उद्देश्य यही था जैसा राहुल गाँधी समेत अन्य कांग्रेस नेता वीर सावरकर को ब्रिटिश सरकार से माफ़ी मांगने वाला बताते रहते हैं। जबकि सच्चाई एकदम विपरीत है। शिक्षित जनता भी इन गुमराह करने वाले नेताओं के चिकनी  चुपड़ी बातों को सच मान लेती थी और आज भी मान रही है। 

TimesNow नवभारत चैनल पर सुशांत सिन्हा को सुनने पर कई बार मेरे मुख्य संपादक केवल रतन मलकानी को स्मरण करवा देते हैं। मलकानी जी जिनकी कलम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की तानाशाही के आगे नहीं झुकी। मेरी आयु के जितने भी वरिष्ठ पत्रकार हैं, मलकानी जी के लेखों से भलीभांति परिचित होंगे। 

नवंबर 17 को राहुल गाँधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा में सावरकर पर अन्य नेताओं की तरह हमला किया, विरोधी होते हुए करना भी चाहिए। विरोधी मतलब सावरकर हिन्दू पक्षधर थे जबकि दूसरे तुष्टिकरण कर रहे थे। कांग्रेसियों को सावरकर पर हमला करने से पहले इतिहास को पढ़ लेना चाहिए। मेरे पास कलकत्ता के प्रकाशित (8 पृष्ठ)पाक्षिक "शक्ति सन्देश" आता था, एक बार  उस पाक्षिक में नेहरू के मुसलमान वंश का शायद 3 किश्तों में समाचार प्रकाशित किया था, यानि नेहरू कोई हिन्दू ब्राह्मण नहीं बल्कि मुग़ल काल में दिल्ली कोतवाल ग्यासुद्दीन का परिवार है। जिसकी पुष्टि वर्तमान संपादक प्रो वेद प्रकाश भाटिया से न होने पर सेवानिर्वित हो चुके मलकानी के निवास स्थान गया, जिसे पढ़कर सलाह दी कि "निगम जब तक इसकी पुष्टि न हो कभी लिखना मत। सुन तो मै भी रहा हूँ, लेकिन मेरे हाथ कोई प्रमाण नहीं लगा, अगर लग गया होता, नेहरू खानदान को छोड़ता नहीं।" खैर कई वर्षों बाद तथ्य सामने आने पर The story of two Lals लेख ब्लॉग पर प्रकाशित किया।(नीचे दिए लिंक को क्लिक करिये) देखिए सुशांत सिन्हा नवंबर 17 को अपने शो बता रहे हैं, जिसे कोई धुरंधर पत्रकार बताने का साहस नहीं कर सका।

राहुल गाँधी ने देखिए क्या कहा है 

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि-वीर सावरकर ने अंग्रेजों को लिखे एक पत्र में कहा, “सर, मैं आपके सबसे आज्ञाकारी सेवक बने रहने की याचना करता हूं” और उन्होंने पत्र पर हस्ताक्षर किए। सावरकर जी ने अंग्रेज़ों की मदद की थी। जब सावरकर जी ने इस कागज पर हस्ताक्षर किया तो उसका कारण डर था अगर वो डरते नहीं तो वो कभी हस्ताक्षर नहीं करते। जब उन्होंने हस्ताक्षर किया तब उन्होंने महात्मा गांधी, सरदार पटेल आदि नेताओं को धोखा दिया।

राहुल गांधी ने एक डॉक्यूमेंट दिखाते हुए उसे सावरकर की चिट्ठी बताया और उसकी आखिरी लाइन पढ़कर सुनाया। उन्होंने अंग्रेजी में पढ़कर हिंदी में दोहराया, ‘सर, मैं आपका नौकर रहना चाहता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘यह मैंने नहीं कहा, सावरकर जी ने लिखा है। इसे फडणवीस जी भी देखना चाहें तो देख सकते हैं। विनायक दामोदर सावरकर जी ने अंग्रेजों की मदद की थी।’

कुछ देर बाद वही चिट्ठी लहराते हुए उन्होंने कहा कि जब सावरकर जी ने यह चिट्ठी साइन की… गांधी जी, नेहरू, पटेल जी सालों जेल में रहे थे, कोई चिट्ठी साइन नहीं की। मेरा कहना है कि सावरकर जी को यह चिट्ठी क्यों साइन करनी पड़ी? इसका कारण डर है। अगर वह डरते नहीं तो इस पर साइन नहीं करते। ऐसा कर उन्होंने गांधी, नेहरू, पटेल सबको धोखा दिया। ये दो अलग विचारधाराएं थीं।

अवलोकन करें:-

The Story of Two Lals--Motilal & Jawaharlal

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The Story of Two Lals--Motilal & Jawaharlal
Jawahar Lal Nehru Moti Lal Nehru SOMETIME back I used to receive a pamphlet titled “ SHAKTI SANDESH ” published from Calcutta a...

यह सावरकर की राजनीति का दांवपेच था। तरुण विजय ने एक बार कहा था कि सावरकर की रणनीति शिवाजी महाराज की कूटनीति की तरह थी। उन्होंने शिवाजी महाराज के औरंगजेब को लिखे पत्र का हवाला दिया था। औरंगजेब से शिवाजी कहते हैं, ‘हम भी आपके हैं और किले भी आपके हैं।’ संघ और भाजपा के नेता कहते रहे हैं कि कूटनीति में भाषा अलग होती है, लक्ष्य अलग होता है।

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