स्त्री प्रेम नहीं करती, पूजा करती है, उस पुरूष की, जो उसे सम्मान देता है!

पत्नियाँ पूर्ण हो जाती हैं-
प्रेमिकाओं की तरह अपूर्ण नहीं रहती...
प्रेमिकाऐं- लिखती ही रह जाती है प्रेम की पाती,
पत्नियों की तरह नहीं लिख पाती घर के खत्म सामानों की सूचियाँ...
चांद, सितारे,सावन, मधुमास तक ही सीमित रहती हैं,
दाल, मसाले, ब्रेड-मक्खन तक नहीं सोच पाती...
प्रेमिकाऐं- चाकलेट के दायरें तक ही सिमट कर जाती हैं,
नहीं बढ़ा पाती अपना दायरा, सास-ससुर, जेठ-जेठानी के बीच...
वेलेंटाइन डे तो याद रखती हैं पर चैत्र, बैसाख, जेठ, अषाढ की तिथियाँ गिनना नहीं जानती...
प्रेमिकाऐं- किताबों में फूल तो रखना जानती हैं पर नहीं लिख पाती कैलेंडर पर दूध के खर्चे का हिसाब...
प्रेमिकाऐं- मांगती है झुमकी, पायल,
पत्नियाँ- मांगती है पति की लम्बी आयु...
प्रेमिकाऐं- सहेजती हैं पुराने प्रेमपत्र,
पत्नियाँ- सहेजती हैं शादी की एलबम, जिसमें वो ढूंढती हैं रिश्ते-नातो के पुराने फोटो,
पत्नियाँ कितनी पूर्ण हो जाती हैं
ये जो शांत सी औरतें होती हैं ना वो जो हमेशा मुस्कुराती रहती हैं, बड़ी विचित्र होती है। किसी और ही माटी की बनी हो जैसे इन्हें हमेशा मुस्कुराता पाओगे, ये कभी नहीं बतातीं अपना दर्द..ये खुशी खुशी करती हैं, थक जाने की हद तक सारे काम, ये किसी को नहीं दिखाती अपनी थकान। 
लाखों जतन करती हैं..हर काम मे परफेक्शन आ जाये..
ताकि न सहना पड़े किसी ताने का वार..खामोशी से सुनती हैं हर शिकायत..घूंट घूंट पी लेती हैं हर शिकन..ये समेटती हैं फैला बिखरा घर..टेबल पर यूँ ही फैली हुई फाइलें..बच्चों की बिखरी किताबें..बिस्तर पर पड़ा गीला टॉवल..ये मिटाती हैं पूरे घर की भूख..इनके चेहरे हमेशा खिले दिखते हैं..ये कभी किसी को जवाब नहीं देती..किसी के गलत होने पर भी.. yes..you are right कहकर..कलह को वहीं रोक देती हैं..
इनके भीतर जो टीस उठती है ना..उसे तुरंत पी जाती हैं..और सहेज लेती हैं खुद के भीतर..बहुत भीतर किसी अंधेरे कोनो में..ये सिर्फ खुश रहती हैं..गुनगुनाती रहती हैं..ख़ुशियाँ बांटती हैं..दर्द समेट लेती हैं..कभी गौर से देखना कभी इनमे भीतर झाँककर..बेआवाज़ सी कुछ ख्वाइशें दिख जाए..शायद..
जिन्हें इन्होंने थपकी देकर सुला दिया है..ये शांत सी औरतें..
बहुत ही शांत होती हैं
कभी तू साथ है मेरे कभी बस नाम है जानाँ
कभी हाथों में तेरे नाम का ही जाम है जानाँ
बहुत बीती मगर बीती नहीं वो हिज़्र की शामें
बहुत लम्बी बिना तेरे मेरी हर शाम है जानाँ
जरूरत ही नहीं अब और चिरागों की मेरे घर को
तुम्हारे नूर से रोशन ये दर ओ बाम है जानाँ
तुम्हें ज़रूरत मेरी पता है मुझे ज़रूरत पता तुम्हारी
तुम्हें मुहब्बत की आरज़ू है मेरी है चाहत वफा तुम्हारी
मेरे गुलशन की रानाइयाँ हो तुम्हीं
खुशबुयें हो तुम्हीं तितलियाँ हो तुम्हीं
जिसको सुन कर सभी झूम जाते यहाँ
ऐसी मीठी सी शहनाइयाँ हो तुम्हीं
जो जहाँ है उसे तुम वहीं रहने दो
अपने दर पे मेरी ये जबीं रहने दो
इल्तिजा ये मेरी आज तो मान लो
आसमां छीन लो पर ज़मीं रहने दो
हम जियें या मरें हम रहें साथ में
कुछ कमी प्यार में अब नहीं रहने दो

स्त्री प्रेम नहीं करती, पूजा करती है, उस पुरूष की, जो उसे सम्मान देता है!

स्त्री सौंप देती है अपना सब कुछ, उस पुरूष को, जिसके स्पर्श और भाव से वो संतुष्ट होती है!
स्त्री छूना चाहती है प्रेम में उस पुरूष को,, जिसके कांधे पर सिर रख ख़ुद को सुरक्षित महसूस करती है.!!!
स्त्री होकर भी नहीं हो पाती उस पुरूष की, जो ख़ुद के पौरुष की ताकत हर वक्त दिखाता रहता है,, कभी उसके तन पर तो कभी उसके कोमल मन पर.!!!
स्त्री नफरत करती है उस पुरूष से, जो उसके अस्तित्व को ठेस पहुंचाते है.!!!
स्त्री लड़ना नहीं चाहती पर लड़ जाती है उस पुरूष से, जिस पर अपना अधिकार समझती है.!!!
एक पायल मेरी खो गई है कहीं
मैंने ढूँढा बड़ा पर मिली ही नहीं
आप भी ढूँढना उसको मेरे लिए
सौंप देना मुझे गर मिले वो कहीं
इक दफ़ा दिल में भी तो ज़रा देखना
क्या पता आपको मिल ही जाए वहीं

स्त्री बड़बोली होती है, पर खामोश हो जाती है तब जब प्रेम में किसी वस्तु की तरह ठुकरा दी जाती है.!!!
स्त्री कभी पलटकर नहीं देखती उस पुरूष को, जो प्रेम के नाम पर या तो उसके शरीर से प्रेम करता है या उसके यौवन से.!!!
स्त्रियाँ प्रेम नहीं करती, पूजा करती है उस पुरूष की जो उनका सम्मान करते हैं, जो उन्हें तब तक स्पर्श नहीं करते, जब तक वो उसके मन को छू नहीं लेते.!!!
स्त्रियाँ पुरूष के पौरुष से नहीं उसके व्यक्तित्व से प्रेम करती है,, जो परमेश्वर नहीं होता बल्कि होता है प्रेमी, बस एक प्रेमी जो पढ़ना जानता हो उसका मौन को.!!!
स्त्रियां अपने आपको समर्पित करती हैं उस पुरुष को, जिसकी दृष्टि में हर वक्त वो देखे, (ढलती आयु में भी) अपने सौंदर्य और यौवन को.!

स्त्री बहुत कोमल होती है भावों से ।जैसे एक फूल !पर कोमलता को कमजोरी समझने की भूल नही होनी चाहिए।

ग़म दिया प्यार का शुक्रिया आपका
रोने का हक दिया शुक्रिया आपका
आपने मौत दी हर घड़ी ही हमें
फिर भी ज़िंदा रखा शुक्रिया आपका

ओर वहीं दूसरी तरफ पुरुष का स्वभाव आक्रामक होता है ।जल्दबाजी में रहता है ।हर काम जल्दी में निपटाने की जदोजहद में लगा रहता है ।पुरुष बहुत बेचैन रहता है ।उसे धरती पर नही ,हमेशा आसमान में उड़ने की चाह रहती है ।इज़लिये ही जहाज ओर न जाने कितनी चीजो का आविष्कार करता आया है ।पुरुष को हमेशा ऊंचा उठना होता है ,इसलिए प्रतीकात्मक रूप से बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स बनाता रहता है ।बहुत तेज गति में रहता है तो फ़ास्ट कार ,स्कूटर बनाता रहता है ।
वही दूसरी तरफ स्त्री धरातल पर रहती है ,इसलिए घर के अलावा उसे कुछ सूझता नहीं।स्त्री बहुत धीमी गति से चलती है ,इसलिए उसके चलने में इतना ग्रेस होता है ।स्त्री पैसिव होती है ,इज़लिये धरती पर ज्यादा चीजो के निर्माण में उसका योगदान बहुत कम रहा है ।
स्त्री को दूसरे ग्रह पर जाने की बजाय ,पड़ोस की खबर लेने में ही चैन मिल जाता है ।स्त्री अंतर्मुखी होती है ,इसलिए बस अपने को सजाने संवारने में ही जीवन व्यतीत कर देती है ।
इज़लिये जो भी बुद्ध पुरूष हुए ,जिन्होंने भी परमात्मा को पाया ,वो स्त्री की तरह हो गए ।उनमे स्त्रीत्व का भाव ज्यादा हो गया ।
कृष्ण हुए ,बुद्ध हुए ,राम कृष्ण हुए ।इनमें एक अद्भुत सौंदर्य था ,इनमें हिंसा नही थी ।
एक स्त्री को प्रेम का आग्रह करना भी हिंसा प्रतीत होती है ।और उसको जल्दबाजी में स्पर्श करना भी सूक्ष्म हिंसा का ही हिस्सा है ।
मैं जब खामोश रहती हूँ जमाना शोर करता है
अगर मैं बात कर लूँ तो मुझे इग्नोर करता है
स्त्री प्रेम में आंखे बंद कर लेती है क्योंकि वो पुरूष से ज्यादा भावों में जीती है। स्त्री-पुरुष जब प्रेम में हो तो पुरुष को आंखे खोलना पसन्द है क्योंकि वो बहिर्मुखी है, वही स्त्री अंतर्मुखी होती है।
स्त्री का शरीर ही इसी तरह निर्मित है कि उसका सारा शरीर एसकैटिक होता है। स्त्री के हर अंग में संवेदनाओं का बहाव होता है ।जबकि पुरुष स्वभाव से कठोर होता है।
आमतौर पर स्त्री पुरुष जब बिस्तर पर होते हैं तब भी वो जल्दबाजी में रहते हैं।ओर इसी कारण उन्हें संतुष्टि नही मिलती। भोजन जब जल्दबाजी में खाया जाए तो पेट भले भर जाए, पर संतुष्टि नही देता।
इसलिए स्त्री के पास जाओ तो अपनी सांसों की गति धीमी करके जाए। भावों से भरके जाए। श्रद्धा समर्पण में जाए।
खुशियाँ चुनने को कहा रब ने मुझे
मैंने तुम को चुन लिया सब छोड़ कर

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