पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?

सुबह बिस्तर से उठते ही स्त्रियां सबसे पहले बांधती है अपने बाल, वास्तव में वह बाल नहीं बांधती बल्कि बांधती है, खोया हुआ आत्मविश्वास और ओढ़ी हुई जिम्मेदारियां और जब आइने के सामनें बैठ कर उन बालो की गांठ को खोलती है तो वास्तव में बाल नहीं खोलती बल्कि खोलती है, अपने अधूरे सपने और आत्मविश्वास। यह वह गूढ़ रहस्य है, जिसे समझने के लिए नारी की समुद्र से गहरी भावनाओं में डूबना होगा। जिसे सृष्टिकर्ता भी नहीं समझ पाए, मानव क्या  समझेगा। शायद इसीलिए कवि जयशंकर प्रसाद ने कहा 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो'। 
लेकिन आधुनिकता, दूसरे अर्थों में कहा जाए कि भारतीय सभ्यता को त्याग पश्चिम सभ्यता के नाम पर स्वयं अपना तिरस्कार कर रही है। नारी अस्तित्व के नाम पर हो रही राजनीति ही नारी को अपमानित कर रही है। जिस देश में अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए नारी को अपमानित किया जाता हो, उस देश का डूबना निश्चित है। वास्तव में नारी को अपने नारीत्व को पहचानना होगा, अपने नारीत्व का संजोकर रखना होगा, इसमें केवल नारी ही बल्कि पुरुष को भी नारी के सम्मान में खड़ा होना होगा। उस पुरुषार्थ को धवस्त करना होगा जो अपना स्वार्थ साधने उसे कलंकित कर रहे हैं। उसे दुर्गा, काली, चण्डी अथवा देवी बन अपने नारीत्व की रक्षा करनी होगी जिस कारण देवताओं ने भी नारी को देवी की उपाधि से अलंकृत किया है। 

शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।
इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।
शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती।
वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने की बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए।
पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।
यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।
क्या आप जानते हैं?
सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है, यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा, इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है, दोनों शब्दों का सार एक ही है, जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है।
पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे वह सभी सुख प्रदान करती है जिसके वह योग्य है, पति-पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है, चाहे सोसाइटी कैसी भी हो, लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें, लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है, प्यार और आपसी समझ से बना हुआ।
हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति-पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है, भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये, क्योंकि, उसी से वंश की वृद्धि होती है, वह घर की लक्ष्मी है और यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेगी, इसके अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।
बहु के घर आने पर उसे गृहलक्ष्मी कहने जाने का अपना धार्मिक महत्व है। तीनो लोकों में नारी पूज्यनीय है। यही कारण है नारी को देवी कहा जाता है। आज हम आपको गरूड पुराण, जिसे लोक प्रचलित भाषा में गृहस्थों के कल्याण की पुराण भी कहा गया है, उसमें उल्लिखित पत्नी के कुछ गुणों की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे, गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है, उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों, उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये, कहते हैं पत्नी के सुख के मामले में देवराज इंद्र अति भाग्यशाली थे, इसलिये गरुण पुराण के तथ्य यही कहते हैं।

सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा।
सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।।

गरुण पुराण में पत्नी के गुणों को समझने वाला एक श्लोक मिलता है, यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है, जो प्रियवादिनी है, जिसके पति ही प्राण हैं और जो पतिपरायणा है, वास्तव में वही पत्नी है, गृह कार्य में दक्ष से तात्पर्य है वह पत्नी जो घर के काम काज संभालने वाली हो, घर के सदस्यों का आदर-सम्मान करती हो, बड़े से लेकर छोटों का भी ख्याल रखती हो।

यूं ही नहीं मान्यता है बिंदी की,स्त्री में छुपे भद्रकाली के रूप को शांत करती है ।
यूं ही नहीं लगाती काजल,
नकारात्मकता निषेध हो जाती है
जिस आंगन स्त्री आंखों में काजल लगाती है
होंठों को रंगना कोई आकर्षण नहीं,
प्रेम की अद्भुत पराकाष्ठा को चिन्हित करती हुई
जीवन में रंग बिखेरती है ।
नथ पहनती है,
तो करुणा का सागर हो जाती है ।
और कानों में कुंडल पहनती है ,
तो संवेदनाओं का सागर बन जाती है ।
चूड़ियों में अपने परिवार को बांधती है,
इसीलिए तो एक भी चूड़ी मोलने नहीं देती ।
पाजेब की खनक सी मचलती है,
प्रेम में जैसे मछली हो जाती है ।

जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे- भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना, यह कार्य करती हो वह एक गुणी पत्नी कहलाती है, इसके अलावा बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना, घर आये अतिथियों का मान-सम्मान करना, कम संसाधनों में भी गृहस्थी को अच्छे से चलाने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार गुणी कहलाती है, ऐसी पत्नी हमेशा ही अपने पति की प्रिय होती है।
प्रियवादिनी से तात्पर्य है मीठा बोलने वाली पत्नी, आज के जमाने में जहां स्वतंत्र स्वभाव और तेज-तरार बोलने वाली पत्नियां भी है, जो नहीं जानती कि किस समय किस से कैसे बात करनी चाहियें, इसलिए गरुण पुराण में दिए गए निर्देशों के अनुसार अपने पति से सदैव संयमित भाषा में बात करने वाली, धीरे-धीरे व प्रेमपूर्वक बोलने वाली पत्नी ही गुणी पत्नी होती है।
पत्नी द्वारा इस प्रकार से बात करने पर पति भी उसकी बात को ध्यान से सुनता है, व उसके इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है, परंतु केवल पति ही नहीं, घर के अन्य सभी सदस्यों या फिर परिवार से जुड़े सभी लोगों से भी संयम से बात करने वाली स्त्री एक गुणी पत्नी कहलाती है, ऐसी स्त्री जिस घर में हो वहां कलह और दुर्भाग्य कभी नहीं आता।
पतिपरायणा यानी पति की हर बात मानने वाली पत्नी भी गरुण पुराण के अनुसार एक गुणी पत्नी होती है, जो पत्नी अपने पति को ही सब कुछ मानती हो, उसे देवता के समान मानती हो तथा कभी भी अपने पति के बारे में बुरा ना सोचती हो वह पत्नी गुणी है, विवाह के बाद एक स्त्री ना केवल एक पुरुष की पत्नी बनकर नये घर में प्रवेश करती है, वरन् वह उस नये घर की बहु भी कहलाती है, उस घर के लोगों और संस्कारों से उसका एक गहरा रिश्ता बन जाता है।
इसलिए शादी के बाद नए लोगों से जुड़े रीति-रिवाज को स्वीकारना ही स्त्री की जिम्मेदारी है, इसके अलावा एक पत्नी को एक विशेष प्रकार के धर्म का भी पालन करना होता है, विवाह के पश्चात उसका सबसे पहला धर्म होता है कि वह अपने पति व परिवार के हित में सोचे, व ऐसा कोई काम न करे जिससे पति या परिवार का अहित हो।
गरुण पुराण के अनुसार जो पत्नी प्रतिदिन स्नान कर पति के लिए सजती-संवरती है, कम बोलती है, तथा सभी मंगल चिह्नों से युक्त है, जो निरंतर अपने धर्म का पालन करती है तथा अपने पति का ही हीत सोचती है, उसे ही सच्चे अर्थों में पत्नी मानना चाहियें, जिसकी पत्नी में यह सभी गुण हों, उसे स्वयं को देवराज इंद्र ही समझना चाहियें।

स्त्री व पुरूष,
दोनो ही जन्म से ,
अर्द्ध नारीश्वर होते है,
पुरूषों का स्त्रीत्व ,
धीरे धीरे कुचला गया,
पुरूषों रोते नहीं,
कहकर उनके अश्रु,
बहने नहीं दिये गए,
पुरूषों को दर्द नहीं होता,
कहकर बनाया गया ,
कठोर और संवेदनहीन,
बार बार उनका स्त्रीत्व,
कुचला गया,
वो रोना चाहते थे
कभी कभी,
फूट फूट कर ,
पर अंततः उन्हें पुरूष बनना पङा .....

स्त्रियों का पुरूषत्व,
पल पल कुचला गया,
स्त्रियाँ ये नहीं करती,
कहकर दबा दी उनकी,
अनगिनत प्रतिभाएं,
स्त्रियाँ वो नहीं कर सकती,
कहकर बाँधी गयी,
उनकी सीमाएं,
बार बार उनका पुरूषत्व
कुचला गया,
वो हँसना चाहती थी,
कभी कभी,
ठठ्ठे मारकर,
पर अंततः उन्हें स्त्री बनना पङा.....

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