नरकासुर दानव का वध करती सत्यभामा ; धरती पर दानवों का अंत नारी शक्ति ने ही किया

आजकल सनातन विरोधियों द्वारा सनातन के विरुद्ध खूब बयानबाज़ी हो रही है, जो सनातन का मूल नाश करने का सैकड़ों वर्षों से प्रयास कर रहे थे, भारत के अलावा कहीं विश्व में उनका कोई नामलेवा नहीं, उसी श्रेणी में ये लोग सम्मिलित होने वाले हैं, जब इनकी भावी पीडियां ही इन्हें अपना पृत मानने से इंकार कर देंगी। ये सनातन विरोधी तुष्टिकरण करते यह भूल रहे हैं कि जब-जब धरती पर भयंकर दानवों(राक्षस) का आतंक फैला है, उसका मूल नाश करने समस्त देवी-देवताओं से प्राप्त अस्त्र-शस्त्र और शक्तियों से विभिन्न नामों से उस देवी माता का उदय हुआ, जिस रूप में उन दानवों का वध निर्धारित था।
नरकासुर वध के लिए गए श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा का यह चित्र है। नरकासुर के छोड़े अस्त्र को भेदकर दूसरा वार करने के लिए तैयार सत्यभामा के भावों को देखकर लगता है यह वार निर्णायक होगा। सत्यभामा दिखने में जितनी सुंदर है युद्धकला में उतनी ही निपुण भी है।
और जरा श्रीकृष्ण को तो देखिए, नीचे गरुड़ पर बैठे है। बाण छोड़ने के बाद झटका लगने से सत्यभामा का संतुलन न बिगड़े इसलिए अपने पैर से सत्यभामा का पिछला पैर अडा रखा है।
श्रीकृष्ण के हाथ में विश्व का सबसे अचूक मारक अस्त्र सुदर्शन चक्र है। किंतु जब पत्नी युद्ध कर रही है, कृष्ण स्वयं आड़ लेकर बैठे है और पत्नी के युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण बलिहारी है, उसे कौतुक से देख रहे है।
सनातन के इतर विश्व के किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा में नारीवाद के ऐसे मुक्त विचार का उदाहरण नहीं मिलता जहाँ स्त्री पुरुष स्वतंत्र भी है और परस्पर पूरक भी! जहाँ नारी व्यक्तित्व भी है, व्यक्ति भी! जहाँ पुरुष स्त्री की स्वतंत्रता से विस्मित भी है और उसका आधार भी! कितना सुंदर विचार! कैसा अद्भुत दर्शन! कैसा अद्वैत! कितना अद्भुत आध्यत्म!
अद्भुत!!
कितना कुछ है है हमारे धर्म में, संस्कृति में जिसपर हम गर्व कर सकें। बस विषैले नरेटिव्स से परे सत्य देखने समझने की नजर और इच्छा होनी चाहिए!
#सनातन हमारी पहचान #गर्व_है
सुश्री रश्मि मंडपे जी का यह पोस्ट मेरे ध्यान से कभी उतर नहीं पाता। वस्तुतः ऐसे प्रसंगों का स्मरण बारम्बार किया जाना चाहिए।
कैसा अद्भुद है हमारा सनातन,,महिषासुर से लेकर अगणित उन सभी दुष्टों का जिनकी दृष्टि में स्त्री केवल भोग्या, एक वस्तु थी,उनका सँहार किसी पुरुष शक्ति ने नहीं, स्त्री शक्ति ने ही किया।

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