एक ही बार में दफ़न कर दो मीलॉर्ड PMLA कानून को, अपराधियों के हक़ में फैसले देने वाले जजों पर सवाल उठ सकते हैं -

सुभाष चन्द्र

जुलाई, 2022 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने PMLA कानून, 2002 की गिरफ्तार करने की, property attach करने की, search and seizure करने की शक्तियों को सही ठहराया था (upheld किया था) और कहा था कि Law is not arbitrary.

तभी से सुप्रीम कोर्ट समेत कई हाई कोर्ट PMLA कानून, 2002 की अलग अलग विवेचना कर लगता है जैसे इस कानून को दफ़न ही कर देना चाहते है। ऐसा शायद पहली बार हुआ था जब जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच के सामने खानविलकर के फैसले को ही बदलने की याचिका दायर हो गई थी जबकि पहले इस पर पुनर्विचार के लिए याचिका दायर हुई थी कौल साहब रिटायर हो गए और उनकी बेंच ख़त्म हो गईअभी नई बेंच नहीं बनी है

खानविलकर पीठ के फैसलों पर कई तरह से उंगली उठाने की कोशिश हो रही है

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-जस्टिस AS Bopanna and जस्टिस Sanjay Kumar की पीठ ने 5 अक्टूबर, 2023 को M3M के 2 directors की गिरफ़्तारी को रद्द करते हुए कहा कि - “यदि ED द्वारा summon किया हुआ कोई व्यक्ति सहयोग नहीं करता या सवालों के जवाब नहीं देता तो section 50 में summon किए जाने पर section 19 के अंतर्गत ED को उसे गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है;

लेकिन यह सब विषय खानविलकर ने तय कर दिए थे। अब कोई आरोपी सहयोग नहीं करेगा और उसे यदि गिरफ्तार भी नहीं कर सकते तो जांच कैसे संभव है? क्या उसकी आरती उतारी जाएगी

-दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस Anup Jairam Bhambhani ने फैसला सुना दिया कि section 19 में गिरफ्तार करने की शक्ति अपार नहीं है, उन पर भी अंकुश लगाया जा सकता है और section 50 में ED को किसी भी व्यक्ति को summon करने, हाजिर होने, जवाब देने और सत्यनिष्ठा से बयान देने के लिए बाध्य करने का अधिकार है लेकिन गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है;

यही कारण हैं जिसकी वजह से हेमंत सोरेन 8 समन के बाद भी ED के सामने पेश नहीं हुआ और दिल्ली का “मालिक” केजरीवाल 5 बार बुलाने के बाद भी आने को तैयार नहीं है अनिल देशमुख भी 6 बुलावे भेजने के बाद आया था 

अब 2 दिन पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने जस्टिस नवीन चावला ने फरमान सुना दिया है कि यदि “किसी व्यक्ति के खिलाफ 365 दिन बाद भी कोई आरोप साबित नहीं होता तो फिर ED को उसकी जब्त की गई संपत्ति एक्ट के सेक्शन 8(3) में लौटानी होगी उन्होंने फैसला दिया कि “मामलों में लंबित अवधि में उसी समय को गिना जाता है, जिसमें केस अदालत में चल रहा हो और इसके तहत समन को चुनौती देने, जब्ती कार्रवाई के खिलाफ अपील दायर करने और उसकी सुनवाई की अवधि शामिल नहीं है”

यह मामला भूषण स्टील एंड पावर के महेंद्र कुमार खंडेलवाल से जुड़े केस का था जिसमे जस्टिस चावला ने निर्णय दिया जो संभवतः एक्ट की आधी अधूरी व्याख्या पर आधारित है उपरोक्त सेक्शन 8(3) के अनुसार सम्पत्ति ED के पास 365 दिन की अवधि की जांच के दौरान “या” किसी भी संबंधित कार्यवाही की लंबितता (इस एक्ट के तहत किसी अदालत के समक्ष या किसी अन्य देश के संबंधित कानून के तहत, भारत के बाहर आपराधिक क्षेत्राधिकार के सक्षम अदालत के समक्ष अपराध, जैसा भी मामला हो के दौरान जब्त रहेगी यानी जब तक अदालत में कार्रवाई चल रही है देश में या विदेश में जब्त की गई सम्पति वापस नहीं की जाएगी

अब आप अदालत में फैसले की बात कर रहे हैं तो एक साल में फैसला न होने की जिम्मेदारी ED की कैसे हो सकती है यह जिम्मेदारी तो अदालत की ही है जहां मामले वर्षों लटके रहते हैं

माननीय जस्टिस चावला को इल्म नहीं रहा कि भूषण स्टील एंड पावर का केस 56000 करोड़ के बैंक लोन की धोखाधड़ी का केस है अगर ऐसे आपके निर्णय आरोपी के हक़ में जाएंगे तो कल को आप पर भी सवाल उठ सकते हैं

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