नहीं सुधर रहा विपक्ष ; तीसरी बार ट्रिपल डिजिट में नहीं पहुँच पाई कांग्रेस, फिर भी ‘राजपरिवार’ की खुशी किला फतह करने जैसी; वीडियो

देश के 2024 लोकसभा चुनावों का परिणाम स्पष्ट हो गया है। भारतीय जनता पार्टी इन चुनावों में देश की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। उसकी सीटें इस बार 240 रही हैं। NDA गठबंधन को देश ने स्पष्ट बहुमत दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस की सीटें भी इस बार बढ़ी हैं, वह इस बार 98 सीट पाने में सफल रही है। भाजपा समर्थक जहाँ स्पष्ट बहुमत ना पाने पर चिंतित हैं तो वहीं कांग्रेस 100 सीट भी ना पाकर जोड़तोड़ की राजनीति में लग गई है। अगर कांग्रेस तोड़फोड़ कर सरकार बना भी लेती है तो 1 साल के अंदर मध्यावर्धी चुनाव निश्चित है। उस स्थिति में गठबंधन में शामिल पार्टियों का सुपरा साफ होना निश्चित है। वैसे सत्ता के गिरियारों में यह भी चर्चा जोरों से चल रही कि गठबंधन की कुछ पार्टियां देशहित में नरेंद्र मोदी को बिना शर्त समर्थन देने को तैयार है।  

कल तक बीजेपी को सरकारें गिराने और पार्टियां तोड़ने के लिए बदनाम करने वाली कांग्रेस खुद वही काम कर रही है। वैसे तो कांग्रेस का पुराना इतिहास रहा है सरकारें गिराने का। कोई नयी बात नहीं। लेकिन इस चुनाव में गठबंधन द्वारा बुद्धिजीवी का चोला ओढे बुद्धि विहीन हिन्दुओं ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की वो हालत कर दी, जैसे बन्दर के हाथ हल्दी की गांठ लगना।  

भाजपा की सीट घटीं पर जीत अब भी बड़ी

भाजपा की इस लोकसभा चुनाव में सीटें घट गई हैं। वह 303 से 240 पर आ गई है, यह सत्ता में दस वर्ष रहने के बाद हुआ है। यह बात सही है कि यह परिणाम उसके अनुमानों के अनुसार नहीं रहा। उसे जहाँ अकेले दम पर बड़े बहुमत की उम्मीद थी, वहीं उसके गठबंधन को बहुमत मिला। लेकिन सत्ता में दस वर्षों तक रहने वाली किसी पार्टी के लिए यह प्रदर्शन खराब नहीं कहा जा सकता। भाजपा का यह प्रदर्शन अभूतपूर्व है और वह तीसरी बार सत्ता में लौटने में सफल रही है। यह कारनामा कर पाना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

यदि आप 2014 को याद करें तो कांग्रेस 206 सीटों से 44 सीटों पर आ गई थी। वह विपक्ष का दर्जा नहीं ले पाई थी। ऐसे में भाजपा का सत्ता में लौटना ही बड़ी बात है। भाजपा को 2014 और 2019 जैसा बहुमत इस बार लोकसभा चुनावों में नहीं मिला लेकिन उसके गठबंधन NDA को साफ़ बहुमत जनता ने दिया है।
NDA का तीसरी बार सरकार में लौटना दिखाता है कि देश की जनता अभी भी उसमें विश्वास रखती है और सरकार के लिए उसे सबसे उपयुक्त मानती है। भाजपा इससे पहले 2014 और 2019 में भले ही अकेले दम पर बहुमत पाई हो लेकिन उसने सरकार को हमेशा से सहयोगियों के साथ मिलकर चलाया है। देश में चुनाव पूर्व के एक संयुक्त गठबंधन की राजनीति को भी भाजपा ने 1990 के दशक से ही बढ़ाया है।

कांग्रेस हारी पर दंभ जीत जैसा

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को देश ने एक बार फिर नकार दिया है। उसे देशवासियों ने भाजपा के विकल्प के रूप में मौका नहीं दिया। कांग्रेस की 2024 लोकसभा चुनावों में सीटें जरूर बढ़ी हैं लेकिन वह फिर से तीन अंकों वाली सँख्या में नहीं पहुँच सकी। मध्य प्रदेश और दिल्ली में उसका खाता नहीं खुल सका। इन सबके बाद भी कांग्रेस नेताओं की भावभंगिमा जीते हुए भाजपा नेताओं से भी अधिक जश्न वाली है। सत्ता में ना आने की समीक्षा करने की जगह राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी, मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गाँधी इसे अपनी बड़ी जीत की तरह दिखा रहे हैं।
इन चारों नेताओ की एक तस्वीर सामने आई है, जिसमें यह अपनी करारी हार को जीत तरह पेश कर रहे हैं। कांग्रेस के नेता 100 सीटों से भी कम जीतने के बाद भी दंभ में हैं और इसे बड़ी जीत बताने में विश्वास कर रहे हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार बनाने को लेकर तक दावा कर दिया। जनता के विपक्ष में बैठने में फैसले को स्वीकार करने की बजाय उन्होंने जोड़तोड़ की राजनीति करने का संकेत अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया।
कांग्रेस की इसी दंभ भरी राजनीति के चलते वह देश के 3 राज्यों में सिमट गई है। उसे लोकसभा में भाजपा जैसी क्लीन स्वीप वाली सफलताएँ राज्यों में नहीं मिल रही और उसका संगठन भी कमजोर होते जा रहा है। लेकिन उसी परिवारवादी राजनीति की यह मजबूरी है कि वह इसे भी राहुल गाँधी की जीत की तरह पेश करे ताकि उनके नेतृत्व पर प्रश्न ना उठें।

विपक्ष की भूमिका से न्याय करे कांग्रेस 

कांग्रेस को 2024 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर विपक्ष में बैठने का आदेश मिला है। उसे 2014 और 2019 में यही जनादेश मिला था लेकिन उसने इस भूमिका के साथ न्याय नहीं किया। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में विपक्ष की बड़ी भूमिका होती है। कांग्रेस ने इस भूमिका को निभाने में कोताही बरती है और विपक्ष में रहते हुए देश की तरक्की में भागीदार बनने की जगह अड़चने डालने का प्रयास किया है। कांग्रेस ने इस दौरान अपना एजेंडा चलाया है।
वह कई बार देश विरोधी ताकतों के साथ खड़ी दिखाई दी है। वह पीएम मोदी और भाजपा के विरोध में कई बार राष्ट्र विरोध तक पहुँची है। चाहे उसके नेताओं का सेना प्रमुख को गुंडा कहना हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रश्न उठाना। इन घटनाओं ने उसके सशक्त विपक्ष होने की साख पर प्रश्न खड़े किए हैं। उसके इन स्टैंड के कारण वह चीन और पाकिस्तान की भाषा बोलते दिखाई दी है। उसकी जीत को लेकर भी पाकिस्तान से समर्थन आता रहा है।
तीसरी बार भी विपक्ष में बैठने के सन्देश को कांग्रेस स्वीकार करने की जगह वह अपनी विपक्ष की जिम्मेदारी से भाग रही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष खरगे ने साफ़ किया कि वह सहयोगियों से सरकार बनाने को लेकर बात करेंगे जो कि दिखाता है कि वह पुनः तोड़फोड़ वाली राजनीति में विश्वास कर रही है।
इसके अलावा यह भी सूचना आई कि INDI गठबंधन की तरफ से नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से शरद पवार ने सम्पर्क साधा है। हालाँकि, इन खबरों का खंडन हुआ लेकिन राजनीति में ऐसी खबरें और उनके खंडन को पूरी तरह से सच और झूठ नहीं मानना चाहिए। राजनीति में शब्दों का कहने से अधिक एक्शन में मतलब होता है।
भाजपा की सीटें घटी हैं, यह बात सत्य है लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि देश की जनता ने कांग्रेस को अपना विकल्प माना है। स्थानीय चुनावी कारणों से भाजपा के प्रदर्शन में अंतर जरूर आया है लेकिन जनादेश उसी के पास है। पीएम मोदी, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी के बाद तीसरे ऐसे नेता होने जा रहे हैं जो तीन बार प्रधानमंत्री बनेंगे। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, ऐसे में कांग्रेस का अतिउल्लास दिखाना काफी भौंडा लगता है।

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