सुप्रीम कोर्ट में CJI चंद्रचूड़, जस्टिस PS Narsimha और जस्टिस पारदीवाला की पीठ ने कल आदेश पारित करके उप राज्यपाल द्वारा 10 सदस्यों के MCD में नामांकन करने को सही ठहरा दिया और बेंच ने कहा कि MCD एक्ट 1957 में जो 1993 में संशोधन हुए उनके अनुसार उप राज्यपाल को शक्तियां प्राप्त है 10 Alderman नामांकित करने की।
“आप” के खलीफा संजय सिंह ने कहा है कि हम “सम्मान” के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति प्रकट करते हैं क्योंकि इस फैसले ने उपराज्यपाल को असीमित अधिकार देकर लोकतंत्र को झटका (Big Blow) दिया है। अब बताओ, कभी लोकतंत्र की जीत हो जाती है जब सुप्रीम कोर्ट केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे देता है और कभी democracy को खतरे में डाल देता है, बड़े कंफ्यूज है बेचारे आपिये।
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लेखक चर्चित YouTuber |
दूसरे मामले में केजरीवाल की CBI द्वारा गिरफ़्तारी और CBI रिमांड पर भेजने को दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कानूनी रूप से सही ठहरा दिया और उसकी याचिका ख़ारिज कर दी। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि “It can not be said that the arrest was made without any justiciable reasons or illegal”। उन्होंने केजरीवाल की जमानत अर्जी भी खारिज कर दी और सिटी कोर्ट जाने की अनुमति दी।
यहां भी सिंघवी की पिटाई हो गई अलबत्ता फीस “कमाई” का मीटर चल रहा है। लेकिन यह भी लोकतंत्र का गला घोटने वाली बात है कि हाई कोर्ट ने भी एक “ईमानदार” CM की बिना कसूर गिरफ्तारी को जायज कह दिया। सिंघवी, केजरीवाल और “आप” ये ही तो कहते फिरते हैं कि केजरीवाल निर्दोष है, उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं और उसके घर से एक चवन्नी भी नहीं मिली।
ऐसे ही केजरीवाल की ED द्वारा गिरफ़्तारी के खिलाफ याचिका हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने खारिज की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस दीपांकर दत्ता के साथ उस मामले को 3 जजों की बेंच के पास भेज दिया जिसका मतलब है सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के पास हाई कोर्ट के फैसले की कोई काट नहीं थी या दोनों में मतभेद थे।
अब सिंघवी इस फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट ले जाएगा और संजीव खन्ना का ही उसे इस मामले में सहारा होगा। लेकिन जब ED की गिरफ्तारी को जस्टिस खन्ना 3 जजों की बेंच के पास भेज चुके हैं तो यह CBI के गिरफ़्तारी के मामले को CJI को सीधा 3 जजों की बेंच के पास ही भेजना चाहिए जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना को नहीं होना चाहिए क्योंकि वे “निष्पक्ष” नज़र नहीं आते ऐसा विचार रखने का किसी को भी लोकतांत्रिक अधिकार है।
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