प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र : न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए सुझाव (Part -4)

सुभाष चन्द्र

गतांक से आगे (अंतिम भाग)

29.ड्रेस कोड का पालन हो या न हो, एक नियम होना चाहिए; स्कूलों और कॉलेजों में ड्रेस कोड न मानने के मुक़दमे सुनने से पहले सुप्रीम कोर्ट तय करे कि क्या वह अपनी कोर्ट में हिज़ाब जैसे परिधान की अनुमति देगा, यदि नहीं देगा तो कोई भी याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं होनी चाहिए;

30. बच्चियों पर हुए यौन अपराध / बलात्कार के लिए यदि ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा दी है और हाई कोर्ट ने पुष्टि की है तो सुप्रीम कोर्ट के उसकी फांसी की सजा माफ़ करने के अधिकार पर रोक लगनी चाहिए - अभी ऐसी फांसी माफ़ कर दी जाती है यह कह कर कि Every Sinner Has a Future; 

31.ट्रायल कोर्ट के फैसले पर हाई कोर्ट जांच करता है और हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी गलत हुआ तो फिर क्या ? इसलिए सुप्रीम कोर्ट के भी कुछ मामलों के फैसलों का Forensic Audit होना चाहिए; आज के समय में सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट अपराधियों, गैर हिंदुओं खासकर मुस्लिमों के पक्ष खड़े दिखाई देते और हिंदुओं के विरोध में, Forensic Audit से इस पर रोक लगेगी;

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32.Cases की लिस्टिंग के कोई नियम नहीं हैं, कुछ मामले तुरंत जल्द list हो जाते हैं और कुछ तुरंत या जल्दी Listing के लिए Reject कर दिए जाते हैं कि उनकी listing अपने समय पर होगी - यह Foul Play की तरफ इशारा करता है और cases की Listing 5 - 5 साल तक होना तो निश्चित रूप से Foul Play से ही हो सकती है; 

33.हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में practice करने वाले वकीलों की फीस क्या होती है, यह Public Domain में होनी चाहिए और उनकी भी assets & liability statement  पब्लिक में जारी होनी चाहिए और यह भी बताया जाना चाहिए कि उन्होंने हर साल कितना आयकर दिया है; वकीलों की फीस केवल Cheque से ही ली जानी चाहिए;

34.रोहियाओं के मुकदमे 2017 से लंबित हैं सुप्रीम कोर्ट में - 6 बड़े वकीलों से एफिडेविट मांगा जाए कि उनकी फीस किसने दी जिससे पता चले कि क्या किसी terror organisation से तो फंडिंग नहीं हुई - घुसपैठियों को देश में रखना है या नहीं, उन्हें शरण देनी है या नहीं, यह अधिकार सरकार का होना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट का इसमें कोई दखल नहीं होना चाहिए;

35.Contempt of court - 

(A) कोर्ट के आदेश के उल्लंघन के मामले में  तो फैसला संबंधित कोर्ट कर सकता है लेकिन यदि मामले किसी टिप्पणी या कोर्ट के विरुद्ध किसी आचरण का है तो उसका फैसला करने का अधिकार कोर्ट को नहीं होना चाहिए क्योंकि कोर्ट तो स्वयं एक Aggrieved Party है और ऐसे में वह निर्णय करने में सक्षम नहीं हो सकती;

(B) इसके लिए 7 Eminent Citizens की एक समिति का गठन किया जाए जो जांच करे कि क्या सच में अदालत की अवमानना हुई और उस समिति के सामने कोर्ट भी अपना पक्ष रखे;

36.हर एक कोर्ट के जज (हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट समेत) किसी के खिलाफ आपत्तिजनक और मर्यादाहीन टिप्पणियां न करें जबकि वे टिप्पणियां जजों के आदेशों का हिस्सा नहीं होती, कभी कभी तो सड़क छाप भाषा जैसी प्रयोग कर दी जाती है जैसे नूपुर शर्मा के लिए की गई थी और हिंदुओं के विरुद्ध आचरण हुआ था कोर्ट का कांवड़ मार्ग पर होटलों ढाबों में नेमप्लेट लिखने के विषय में -

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