सुप्रीम कोर्ट की CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कल नागरिकता कानून, 1955 में राजीव गांधी सरकार द्वारा जोड़े गए section 6 (A) वैध करार दे दिया और 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आये लोगों को वापस भेजने के आदेश दे दिए। बेंच में चंद्रचूड़ के अलावा Justices Surya Kant, MM Sundresh, Manoj Misra and JB Pardiwala थे। इनमे केवल पारदीवाला ने इस सेक्शन को वैध नहीं बताया।
फैसले में कहा गया कि -
-1 जनवरी, 1966 से पहले बांग्लादेश से आने वालों को नागरिकता का अधिकार है;
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इस मामले में गौर करने वाली बात है कि संविधान के अनुच्छेद 6 के अनुसार 19 जुलाई 1948 से पहले के पाकिस्तान से आए लोगों को नागरिकता दी गई लेकिन section 6A में।
एक जनवरी, 1966 से पहले बांग्लादेश से आए लोगों को नागरिकता का अधिकार देने का कोई औचित्य नहीं था। इसका मतलब तो पाकिस्तान के पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से 1 जनवरी 1966 तक आए लोगों को भी नागरिकता दे दी गई। पाकिस्तान के दोनों हिस्सों के लिए अलग अलग कानून बना दिए गए।
याचिकाकर्ताओं को इस बात को गलत माना था और कहा था 6A ने article 6 में बदलाव करके संविधान संशोधन कर दिया जो गलत था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना।
25 मार्च की cut off date भी इसलिए उचित है क्योंकि पाकिस्तान ने 26 मार्च, 1971 को Searchlight ऑपरेशन शुरू किया और भारत से युद्ध छिड़ गया था जो 16 दिसंबर, 1971 को ख़त्म हुआ और इसलिए यह डेट उचित थी बांग्लादेश से आने वाले प्रवसियों को भारतीय विभाजन के समय के प्रवासी मानने के लिए। यह तर्क बेबुनियाद है क्योंकि भारत का विभाजन 1947 में हुआ और बांग्लादेश से आने वालों को उस समय के migrant कैसे माने जा सकते हैं।
फिर 1 जनवरी, 1966 की तारीख का भी कहीं कोई औचित्य नहीं है। जस्टिस पारदीवाला वाला ने कहा है कि यह शायद असम में निकट भविष्य में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर किया था। वहां चुनाव 1967 में हुए। लेकिन इस तारीख में बहुत बड़ा झोल किया गया और बहुत घुसपैठियों को भारत में जगह दे दी गई।
मैंने अपने 16 और 17 अगस्त के 2 articles में विस्तृत जानकारी दी थी कि असम और बंगाल में मुसलमानों की संख्या किस तरह बढ़ी - इसलिए यह कानून दोनों राज्यों में लागू होना चाहिए। असम में 1971 में मुस्लिम 36 लाख थे जो 2011 में एक करोड़ हो गए जिसका मुख्य कारण घुसपैठ माना जा सकता है यानी करीब 65 लाख लोग बढे और 2024 तक अनुमान ही लगाया जा सकता है कितने बढे होंगे।
उधर बंगाल में 1971 में मुसलमानों की संख्या करीब 91 लाख थी जो 2021 में एक अनुमान के अनुसार 3 करोड़ 11 लाख हो गई यानी 2 करोड़ 20 लाख मुसलमान बढ़े और 9 जिलों में मुस्लिम सबसे ज्यादा बढे हैं। इसलिए 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आए मुसलमानों पर भी यह कानून यहां भी लागू होना चाहिए।
असम में मुसलमानों की संख्या 1951 में कुल आबादी की एक चौथाई थी लेकिन 2011 में यह एक तिहाई हो गई।
अब इस आदेश से यह तो साफ़ हो गया कि घुसपैठियों को निकाला जा सकता है लेकिन एक तुर्रा जो छेड़ा दिया सुप्रीम कोर्ट ने वह राह का रोड़ा बन सकता है। ऐसा कहा गया कि घुसपैठियों को “क़ानूनी प्रक्रिया” से ही बाहर भेज सकता है। ये प्रक्रिया ही मुसीबत की जड़ है क्योंकि उसी में अदालत भी टांग अड़ा सकती हैं कि यह प्रक्रिया सही नहीं है और वह सही नहीं है।
परंतु बांग्लादेश में हिंदुओं की हालत देख कर उन्हें बांग्लादेश भेजना खतरे से खाली नहीं होगा और केंद्र को कानून में संशोधन करके हिंदुओं को इस प्रक्रिया से अलग कर देना चाहिए।
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