Organiser Weekly के तत्कालीन संपादक प्रो वेद प्रकाश भाटिया अपने बहुचर्चित स्तम्भ Cabbages & Kings में अक्सर लिखा करते थे कि "...burqa is not an Islamic culture..." कभी किसी ने न विरोध किया और न ही कोई खंडन, जबकि कई मुस्लिम विद्वान और नेता उनके इस स्तम्भ के प्रशसंक थे। ये लोग साप्ताहिक मिलने पर सबसे पहले Page 13 पर उनके स्तम्भ को ही पढ़ते थे और समाचार बाद में। फिर क्यों बुर्का/हिजाब पर विवाद खड़ा किया जाता है? क्या यह विवाद कट्टरपंथी अपनी तिजोरियां भरने के लिए मासूम मुसलमानों के जज्बातो से खिलवाड़ करते है? सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर मुस्लिम देशों से सलाह लेनी चाहिए, क्योकि गैर-मुस्लिम ही नहीं बल्कि कई मुस्लिम मुल्कों में भी इस पर बहुत नरमाई बरती जा रही है, फिर भारत में क्यों कट्टरपंथी विवाद खड़ा करते रहते हैं?
वर्ष 2022 में 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने सरकार के स्कूलों में ड्रेस कोड को उचित ठहराते हुए हिज़ाब की अनुमति नहीं दी थी। हिज़ाब के लिए कांग्रेस ने पूरे राज्य में कई महीने तक बवाल काटा था। उस फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट गया लेकिन CJI रमना ने 2 जजों की बेंच बना दी। 13 अक्टूबर को दोनों ने अलग अलग फैसला देकर रायता फैला दिया और इसलिए फैसला हुआ ही नहीं।
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क्योंकि 2 जजों का फैसला बेमानी था, तो इसके लिए 3 जजों की बेंच बनाई जानी थी लेकिन वह नहीं बनाई गई। 23 जनवरी, 2023 को CJI चंद्रचूड़, जस्टिस वी रामसुब्रमन्यन और जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने कहा कि हम कर्नाटक के स्कूलों में हिज़ाब पहनने के मामले पर 3 जजों की बेंच बनाने पर विचार करेंगे। 10 नवंबर, 2024 को चंद्रचूड़ रिटायर हो गए लेकिन करीब 2 साल तक उन्होंने 3 जजों की बेंच नहीं बनाई जबकि बाकी मामलों की सुनवाई दौड़ दौड़ कर करते थे।
अपने 13 अक्टूबर, 2023 के लेख में मैंने लिखा था कि “सुप्रीम कोर्ट और अन्य सभी अदालतों में अगर मुस्लिम वकील और जज काला कोट उतार कर हिज़ाब पहन कर आना शुरू कर दें तो मैं देखता हूं, कौन सी अदालत उन्हें आर्टिकल 14, 19, 21 और 25 में ऐसा करने की अनुमति देती है।
मैंने जो कल्पना की थी वह साकार हो गई। आज खबर है कि 27 नवंबर को जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट में एक मुस्लिम महिला वकील, सैयद एनैन कादरी, बुर्का पहन कर जस्टिस राहुल भारती और जस्टिस मोक्ष खजुरिया काज़मी की कोर्ट में पहुंच गई। जस्टिस भारती ने उस महिला वकील कादरी से नकाब हटाने को कहा तो उसने मना कर दिया और जोर देकर कहा कि चेहरा ढकना उसका “मौलिक अधिकार” है और कोर्ट उससे जबरन ऐसा करने को नहीं कह सकता।
जस्टिस भारती ने रजिस्ट्रार से रिपोर्ट मांगी और पाया कि BCI के ड्रेस कोड के अनुसार कोर्ट में आने के लिए ऐसी कोई पोशाक नहीं पहनी जा सकती।
कर्नाटक में भी यह एक प्रयोग किया गया था जबकि वहां के स्कूलों में भी ड्रेस कोड था लेकिन मुस्लिम छात्राओं को भड़का कर हिज़ाब पहनाया गया, फिर भी ड्रेस कोड को नज़रअंदाज करके जस्टिस धुलिया ने हिज़ाब के पक्ष में निर्णय दिया। अब क्या सुप्रीम कोर्ट BCI के नियमों के खिलाफ जाकर महिला वकीलों को बुर्के में चेहरा ढक कर कोर्ट में आने देगा?
जैसा प्रयोग कर्नाटक के स्कूलों में किया गया और मुस्लिम कठमुल्लाओं और कट्टरपंथियों ने हिज़ाब के लिए हल्ला बोला और वह चिंगारी कई राज्यों में भी फैली, वैसा ही प्रयोग एक हाई कोर्ट से शुरू किया गया है, और अब फिर इस पर मुस्लिम संगठन बखेड़ा खड़ा करेंगे। टीवी चैनलों पर बहस की जाएंगी और आरोप लगाया जाएगा कि मुस्लिम महिला वकीलों का दमन हो रहा है।
अब मामला सुप्रीम कोर्ट के लिए टेढ़ा हो गया। अगर वह स्कूलों की ड्रेस कोड के खिलाफ हिज़ाब की अनुमति देते हैं तो मुस्लिम महिला वकीलों को भी BCI के ड्रेस कोड के खिलाफ बुर्का पहनने की इज़ाज़त देनी पड़ेगी। और लटकाए रखों मुस्लिमों के मामलों को, अब फंस गए न!
साथ में सुप्रीम कोर्ट को यह भी फैसला देना चाहिए कि वोट डालते हुए भी चेहरा ढका नहीं होना चाहिए।
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