चुनाव आयोग का रोना क्यों? दबाव में खुद आए, अखिलेश की साइकिल पंचर हो गई लगती है

सुभाष चन्द्र

चुनाव आयोग ने दिल्ली मतदान से पहले रोना रोया कि आप पार्टी के नेताओं ने उस पर झूठे आरोप लगाते हुए उन्हें बदनाम करने और उन पर आक्रामक तरीके से दबाव बनाने का दाव चलाया बार बार तथ्यों को गलत तरीके से पेश करके गलत नेरेटिव गढ़ने की कोशिश की गई आयोग इन बातों पर गंभीरता से संज्ञान ले रहा है उन्हें सोचना चाहिए कि आयोग एक सदस्यीय नहीं है बल्कि उसमे तीन सदस्य हैं आयोग ऐसे किसी भी आरोप से प्रभावित हुए बिना समझदारी और और धैर्य से अपना काम करता है। 

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आज अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग को अपमानित करने की सभी सीमाएं तोड़ते हुए कहा कि “चुनाव आयोग मर गया है, उसे सफ़ेद कपड़ा (कफ़न) भेंट करना पड़ेगा” लगता है मिल्कीपुर में साइकिल पंचर हो गई है और दिल्ली में झाडू बिखर रही है कांग्रेस तो कही नज़र ही नहीं आ रही और इसलिए 8 फरवरी को EVM का “आप” सपा और कांग्रेस द्वारा सामूहिक बलात्कार होना तय है 

लेकिन चुनाव आयोग किसी दबाव में तो जरूर आया जो उसने केजरीवाल पर पानी में जहर मिलाने के आरोपों पर कोई कार्यवाही नहीं की जबकि यमुना पानी में जहर मिलाने का बहुत गंभीर आरोप था। चुनाव आयोग जवाब दे अगर यही आरोप बीजेपी ने लगाया होता क्या तब भी चुप रहता? 

आयोग ने 30 जनवरी को केजरीवाल की कहानी सुनकर उसे अगले दिन तक हरियाणा द्वारा दिल्ली के पानी में जहर मिलाने के सबूत देने के लिए कहा था लेकिन केजरीवाल ने 31 जनवरी को भी आयोग को ऐसे कोई सबूत नहीं दिए

इसका मतलब साफ़ था कि केजरीवाल ने मनघडंत आरोप लगाए जो सत्यापित नहीं हो सकते थे और यह आयोग को भी स्पष्ट हो गया लेकिन फिर भी आयोग ने केजरीवाल पर कोई कार्यवाही नहीं की जिससे साफ़ लगता है कि आयोग पर कोई न कोई ऐसा दबाव था जिसकी वजह से आयोग चुप बैठ गया। 

यह बहुत गंभीर आरोप थे जो केजरीवाल ने लगाए और दो राज्यों के बीच नफरत फ़ैलाने और दंगे भड़काने की कोशिश की जबकि उसके पास आरोप सिद्ध करने के लिए कोई सबूत नहीं थे ऐसे में चुनाव आयोग को उस पर चुनाव प्रचार से 24 घंटे का तो प्रतिबंध लगाना बनता ही था और साथ में आपराधिक मुकदमा दायर भी करना चाहिए था लेकिन आयोग ने न जाने क्या सोच कर उसे बचा लिया

अब चुनाव हो गया और दो दिन बाद नतीजे आ जाएंगे उसके बाद तो कोई कार्यवाही बेमानी होगी और इसलिए चुनाव आयोग को अपने खिलाफ लगे आरोपों पर विलाप करने से बेहतर था, ईमानदारी से बताया जाता कि केजरीवाल को क्यों छोड़ा गया

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