फेक न्यूज फैलाने वाले ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ का नॉन प्रॉफिट दर्जा वापस : रोने लगा जॉर्ज सोरोस के पैसों पर पलने वाले पत्रकारों का गैंग; भारत में गरीबी पर फैलाया था झूठ

डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बने अमेरिका के लेकिन मातम भारत में। भारत की राजधानी दिल्ली में चुनाव और बजट संसद सत्र लगभग शांति। महामहिम के भाषण पर कुछ टिप्पणियां जरूर हुई लेकिन उन टिप्पणियों पर भी विपक्ष को मुंह की खानी पड़ रही है। Deep State से लिए धन को हलाल तो करना था। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से पहले देश में चुनाव हो या संसद सत्र Deep State के टुकड़ों पर पलने वाले आन्दोलनजीवी और उनके आका कोई न कोई हंगामा करते रहते थे। हाँ, अगर कमला हैरिस अमेरिका राष्ट्रपति बन गयी होती, भारत में Deep State की बल्ले-बल्ले हो गयी थी। पिछली लोकसभा में जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलने के खड़े हुए विपक्ष ने लोकसभा को चील-कौओं की तरह ऐसे चीखना-चिल्लाना शुरू किया मानो लोकसभा लोकसभा नहीं मछली मंडी है। वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब फरवरी 4 को बोलने के लिए खड़े हुए, कुछ अपवाद को छोड़, सदन में शांति रही। 

Deep State पर कार्यवाही अमेरिका में हो रही है, लेकिन उसका असर भारत में भी देखा जा सकता है। यही असली कारण है की भारत हितैषी डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के लिए जगह-जगह यज्ञ करवा रहे थे। यानि अब जनता को भी समझना होगा कि विपक्ष कोई जनहित में आन्दोलनजीवियों से आंदोलन नहीं करवाते थे बल्कि Deep State की भीख से देश की जनता को गुमराह कर उपद्रव करवा रहे थे। अभी तो ट्रम्प की शुरुआत है आगे-आगे देखो अब क्या गुल खिलते हैं। जो विपक्ष विदेशी भीख पर पल रहा हो देशहित के बारे में नहीं सोंच सकता।         

मोदी सरकार ने भारत को लेकर लगातार झूठी खबरें फैलाने वाले कथित पत्रकारों के एक समूह ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ को दी गई रियायतें छीन ली है। मोदी सरकार ने इसका नॉन प्रॉफिट दर्जा वापस ले लिया है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने भारत को लेकर लगातार कई झूठी खबरें फैलाई थी। इसको जॉर्ज सोरोस से पैसा आता था।

रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने 28 जनवरी, 2025 को यह जानकारी दी। उसने ट्विटर पर लिख कर बताया कि मोदी सरकार ने उससे नॉन प्रॉफिट ट्रस्ट का दर्जा वापस ले लिया है। कुछ दिन पहले उसने एक झूठी रिपोर्ट में दावा किया था कि केंद्र सरकार भारत में गरीबी की दर के डाटा में गड़बड़ी कर उसे कम करके बता रही है।

 रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने बताया कि वह जुलाई 2021 से ‘नॉन प्रॉफिट ट्रस्ट’ के रूप में मौजूद था। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने आरोप लगाया कि सरकार ने अब इसका यह छीन लिया जो सही नहीं है। इसने कहा कि पत्रकारिता से किसी को मुनाफा नहीं होता, ऐसे में इसका नॉन प्रॉफिट दर्जा हटाया जाना ठीक नहीं है।

रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने दावा किया कि उसका नॉन प्रॉफिट दर्जा रद्द किए जाने से अब वह अपना पत्रकारिता का काम करने में कठिनाई आएगी। सोरोस के दान के पैसे से चलने वाले रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने आरोप लगाया कि इससे उनकी क्षमता को गहरा धक्का लगेगा। उसने कहा कि मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ कानूनी कदम उठाएगा।

झूठ फैलाता रहा है रिपोर्टर्स कलेक्टिव

रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने 18 दिसंबर, 2024 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि मोदी सरकार ने भारत में गरीबी में कमी दिखाने के लिए गरीबी सूचकांक में हेराफेरी की है। इसमें दावा किया गया कि 10 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की सरकार की रिपोर्ट झूठी थी क्योंकि सरकार ने वैश्विक सूचकांक में दो महत्वपूर्ण पैरामीटर जोड़ दिए थे।
रिपोर्ट में कहा गया था कि अच्छे नतीजे दिखाने के लिए मोदी सरकार ने खुद का ही एक इंडेक्स बनाया क्योंकि वैश्विक एजेंसियाँ सच्चाई दिखा देती। आरोप था कि खुद के बनाए सूचकांक में अपने हिसाब से डाटा में गड़बड़ी की गई। हालाँकि, रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने अपनी इस रिपोर्ट में यह दावा किस आधार पर किया, इस संबंध में कोई सबूत नहीं दिए।
दुनिया में गरीबी के विषय में बताने वाले ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स को OPHI और UNDP ने विकसित किया था। मोदी सरकार ने भारत में गरीबी का सही आँकड़ा मापने के लिए नीति आयोग के माध्यम से एक गरीबी सूचकांक बनाया था।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव की रिपोर्ट में खुद उल्लेख किया गया है कि नीति आयोग ने सूचकांक विकसित करने के लिए OPHI और UNDP के साथ साझेदारी की थी। आश्चर्य की बात यह है कि भारत के डाटा पर वैश्विक एजेंसियाँ सहमत हैं लेकिन रिपोर्ट्स कलेक्टिव वाले यह बात नहीं मानते।

अमेरिका के डीप स्टेट से है कनेक्शन

रिपोर्टर्स कलेक्टिव को कहाँ से खाद-पानी मिल रहा है, यह भी देखने वाला है। एक बार नजर डालने पर पता चलता है कि इसे भी उन्हीं भारत विरोधी संस्थानो से पैसा मिलता है, जो बाकी संस्थाओं और NGO को फंडिंग देते रहे हैं। भारत में रिपोर्टर्स कलेक्टिव को नेशनल फ़ाउंडेशन फ़ॉर इंडिया नाम का एक FCRA लाइसेंस वाला NGO चलाता है।
नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया को फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन, जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन, ओमिडयार नेटवर्क और रॉकफ़ेलर फ़ाउंडेशन सहित अन्य संगठनों से फ़ंड मिलता है। ये सभी संगठन अमेरिकी डीप स्टेट नेटवर्क का हिस्सा हैं और उन्होंने कई भारत विरोधी अभियानों को पैसा दिया है।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव अमेरिकी डीप स्टेट का हिस्सा है। दिसंबर, 2024 में इसके द्वारा प्रकाशित फर्जी खबरें जॉर्ज सोरोस और उसके ओपन सोसाइटी फाउंडेशन द्वारा द्वारा भारत में अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने की पहल का भी एक हिस्सा है।

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