कपिल सिब्बल आज खुल कर जस्टिस यशवंत वर्मा के पक्ष में खड़ा हो गया। उसने कहा है कि “सुप्रीम कोर्ट का वर्मा के मामले में जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करना एक खतरनाक ट्रेंड है और जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी जिम्मेदार नागरिक को इस मामले में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। जब तक कोई व्यक्ति दोषी नहीं पाया जाता तब तक उसे निर्दोष माना जाता है, इस मामले में अभी तक जांच पूरी नहीं हो पाई है और जांच पूरी होने तक किसी को टिप्पणी नहीं करनी चाहिए”।
यह दर्द सिब्बल का यशवंत वर्मा के लिए क्यों छलका है? क्या उनका यह निजी बयान है या इसे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का बयान माना जाना चाहिए? अगर यह बयान बार का है तो क्या उसे बार की जनरल बॉडी मीटिंग में तय किया गया। सिब्बल इस मामले में खुद चौधरी नहीं बन सकता। यह तो जज वर्मा हैं, सिब्बल तो हर अपराधी का वकील होता है।
![]() |
लेखक चर्चित YouTuber |
6 हाई कोर्ट की बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलकर वर्मा के ट्रांसफर का विरोध किया और सिब्बल उसके साथ खड़े हैं, कुछ तो गड़बड़ जरूर है।
सिब्बल पहले दिन से वर्मा के पक्ष में बयानबाजी कर रहा है। इसका मतलब यह भी निकलता है कि वह यशवंत वर्मा के गड़बड़झाले में लिप्त है जिसकी पूरी संभावना है। आज एक संसदीय समिति ने कहा है कि एक ही पद पर लंबे समय तक बैठे अधिकारी भ्रष्टाचार बढ़ाते हैं। यह बात सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भी लागू होती है क्योंकि वहां भी 8-8 साल तक जज कुर्सी संभाले रहते हैं और इतना ही नहीं सिब्बल, सिंघवी, प्रशांत भूषण आदि जो वकील अदालतों में लंबे समय से प्रैक्टिस कर रहे हैं, उनके जजों के साथ ऐसे संबंध बने होते हैं जो अदालतों में भ्रष्टाचार का जरिया बनते हैं।
जजों के साथ सौदेबाजी ऐसे वकील ही करते हैं और यशवंत वर्मा के घर मिले धन से साबित होता है कि यह सौदेबाजी होती है। सिब्बल लोगों को टिप्पणी करने से भी रोकना चाहता है जिसका मतलब वह लोगों के मौलिक अधिकारों पर भी लगाम लगाना चाहता है। अगर यशवंत वर्मा को सिब्बल निर्दोष मानता है तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग करे कि उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम करने से न रोका जाए। यशवंत वर्मा के मामले में प्रशांत भूषण का मुंह बंद है जो अभी तक कुछ नहीं बोला है।
जब एक दो वकील हाई कोर्ट से सीधे जज बना दिए जाते हैं तो इसका मतलब साफ़ होता है कि चढ़ावा चढ़ा कर ही जज बने हैं। यशवंत वर्मा भी सीधे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हुए जज बने थे और उनके पास मिला धन बता रहा है कि मोटा चढ़ावा चढ़ा कर ही ऊपर चढ़े होंगे जिसकी भरपाई उन्होंने तबियत से की।
अभी 5 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के दो वकीलों अमिताभ कुमार राय और राजीव लोचन शुक्ला को इलाहाबाद हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया है जबकि उस कोर्ट में तो हज़ारों वकील प्रैक्टिस करते होंगे। फिर केवल दो पर उंगली कैसे रख दी गई और इसका क्या पैमाना होता है किसी को कुछ पता नहीं, अलबत्ता एक चढ़ावे का पैमाना ही समझ आता है। ऐसे होता है अदालत में भ्रष्टाचार जिसका किसी को कुछ पता नहीं चलता।
सिब्बल वही वकील है जिसने जस्टिस रामास्वामी पर चले महाभियोग में उसका लोकसभा में बचाव किया था और मुझे पूरी उम्मीद है कि अगर यशवंत वर्मा पर महाभियोग चला तो उसे भी बचाने के लिए सिब्बल ही खड़ा होगा। सिब्बल किस जांच की बात कर रहे हैं, जांच बिना CBI/ED के बिना कभी पूरी नहीं होगी। 3 जजों की कमेटी को कुछ नहीं मिलेगा।
No comments:
Post a Comment