अभी गूगल सर्च किया तो पता चला कि इफ्तार पार्टी क्या है? उसमें बताया गया है कि :
“इफ्तार रमजान के धार्मिक अनुष्ठानों में से एक है और अक्सर एक समुदाय के रूप में किया जाता है, लोगों को एक साथ अपने उपवास को तोड़ने के लिए इकट्ठा किया जाता है। इफ्तार को मग़रिब समय के बाद लिया जाता है, जो सूर्यास्त के आसपास है”।
यानी यह रोजे रखने वाले मुस्लिमों के लिए एक सामूहिक भोज होता है। सुबह रोजा शुरू होने से पहले सूर्य उदय होने से पहले सहरी खाई जाती है।
इसका मतलब साफ़ है कि यह इफ्तार केवल रोजेदार मुस्लिमों के लिए होता है। लेकिन मजे की बात है यह इफ्तार “काफिर” हिंदू नेता भी देते हैं और मुस्लिमों द्वारा आयोजित इफ्तार में वे “काफिर हिंदू” शामिल भी होते हैं जबकि वे रोजा नहीं रखते। रोजा इफ्तार में रोजा न रखने वालों को बुलाना क्या इस्लाम के विरुद्ध नहीं? यानि रोजा इफ्तार कोई सामाजिक आयोजन नहीं एक सियासत का अखाडा है, कोई इस्लामिक रस्म नहीं।
क्या इफ्तार पार्टी में गैर मुस्लिम भी जा सकते हैं, उसके उत्तर में भी कहा गया है कि वे भी इसमें जा सकते हैं क्योंकि इफ्तार एक सामुदायिक भोज है और यह सभी के लिए खुला है, चाहे वे मुस्लिम हों या गैर-मुस्लिम। लेकिन ऊपर दी हुई परिभाषा का मतलब है यह उसी समुदाय के व्यक्तियों के एक साथ उपवास तोड़ने के लिए है।लेखक
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लेकिन सच बात है कि इफ्तार वर्षों से एक सामूहिक भोज न होकर राजनीतिक जमघट लगाने का तरीका बन गया है। और विपक्षी दल के नेता इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं केवल मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए लेकिन ऐसे “राजनीतिक जमघट” में आपको कोई साधारण लोग नहीं मिलेंगे, केवल विशिष्ठ लोग ही मिलेंगे।
सोनिया गांधी, जया बच्चन, खड़गे, लालू का कुनबा सब गए इफ्तार पार्टी में लेकिन महाकुंभ के लिए इन लोगों ने सब तरह की अभद्र बातें कहीं। जया बच्चन ने संगम को सबसे गंदी जगह कहा तो ममता बनर्जी ने “मृत्यु कुंभ” कहा और खड़गे तो बहुत ही आगे बढ़ कर बोले कि क्या कुंभ स्नान से गरीबी दूर होती है, क्या भूखे को रोटी मिलती है और क्या बेरोजगारों को नौकरी मिलती है? जबकि उसे पता नहीं कि महाकुंभ में 3 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हुआ।
जो कुछ भी महाकुंभ के लिए कहा इन नेताओं ने, वह क्या रमजान और इफ्तार के लिए कह सकते हैं? इतना ही कह दो कि जब एक तरफ रोजे रखे जाते है, तो वे रोजा रखने वालों के पास इतनी ताकत कैसे आती है कि नागपुर को ही जला देते हैं और इंदौर को फूंक देते हैं?
वैसे मुस्लिम हिंदुओं के त्योहारों में उत्पात करते है लेकिन अभी रामनवमी भी आएगी और उसके पहले नवरात्र व्रत होगा जिसके बाद अष्टमी या नवमी को हिंदू परिवारों में कन्या पूजन और उनके लिए भोज होता है। आप उसमे देख सकते हैं कि अनेक मुस्लिम लड़कियां पहुंचती हैं जिनका कन्या पूजन से कुछ लेना देना नहीं होता। लेकिन रामनवमी की शोभा यात्रा पर पत्थरबाजी जरूर की जाती है।
1 comment:
यह तो सनातन विरोधी विपक्षी पार्टियों. की फितरत है। इन्हें तो कटुओ के जूंठे पत्तल चाटना है तथा जी भर कर सनातन परम्पराओं को कोसना है तथा वास्तविकता की खिल्ली उड़ानी है।
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