क्या हुकुम का गुलाम है सुप्रीम कोर्ट? कल केरल ने कहा कि उनका मामला भी पारदीवाला की बेंच को दिया जाए और रात को ही चीफ जस्टिस ने हुक्म बजा दिया; क्या हर मामले पर गवर्नर को हस्ताक्षर करने चाहिए?

सुभाष चन्द्र 

अप्रैल 9 को ही जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की बेंच ने तमिलनाडु के गवर्नर पर समय सीमा में विधानसभा से पारित प्रस्तावों पर हस्ताक्षर करने का आदेश दिया और राष्ट्रपति के अधिकारों पर भी अंकुश लगा दिया और उसके तुरंत बाद केरल के मुख्यमंत्री ने चीफ जस्टिस से कहा कि उनके राज्य के जो बिल अटके हुए हैं, उनको भी पारदीवाला की बेंच को सौंप दिया जाए, और इस पर रात को ही चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने केरल के मामले भी पारदीवाला की बेंच को भेज दिए।  

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मतलब विपक्षी दल के राज्य की ऐसे हुक्म की तामील की जाएगी? क्या और कोई जज नहीं हैं सुप्रीम कोर्ट में जो केरल के मामलों की अलग से सुनवाई की क्षमता रखते हैं, हो सकता है उनकी पारदीवाला और महादेवन से जुदा राय हो लेकिन केरल के गवर्नर को भी लगता है चीफ जस्टिस ऐसी ही फटकार मारना चाहते हैं जैसी तमिलनाडु के गवर्नर को मारी गई? इन बातों से न्यायपालिका में जनता का विश्वास शून्य हो गया है

केरल ने CAA को लागू न करने के लिए भी प्रस्ताव पारित किया था और सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी लेकिन शायद वह अभी तक लंबित है हो सकता है वह बिल भी राज्यपाल के पास लंबित हो? तो क्या उस पर भी राज्यपाल को हस्ताक्षर करना होगा जबकि केंद्रीय कानून को लागू करना हर राज्य की जिम्मेदारी होती है कपिल सिब्बल ने केरल को कहा था कि आप केंद्रीय कानून को लागू करने से मना नहीं कर सकते

अभी हाल ही में कर्नाटक और तमिलनाडु ने प्रस्ताव पारित किए हैं कि उनके राज्य में वक़्फ़ संशोधन कानून लागू नहीं किया जायेगा क्या ऐसे प्रस्तावों पर भी राज्यपाल को अनुमति देनी चाहिए? फिर तो आप राज्यपाल को राज्य सरकार की कठपुतली मात्र बना देना चाहते हैं और उसे ऐसे प्रस्तावों को राष्ट्रपति के पास भेजने पर भी रोक लगा रहे हो?

संविधान के अनुसार केंद्र सरकार और राज्य सरकार Concurrent list के मुद्दों पर कानून बना सकते हैं यह लिस्ट क्या है और संविधान क्या कहता है, यह व्याख्या इसमें की गई है ➖

In the context of the Indian Constitution, a concurrent list is a list of subjects on which both the Union (central) and State governments can legislate, with the Union law prevailing in case of conflict.

Article 254(2) of the Indian Constitution addresses the doctrine of repugnancy, stating that if a state law on a concurrent list matter conflicts with a prior law by Parliament, the state law prevails if it has been reserved for the President's consideration and received his assent.

Parliament's Power:

The proviso to Article 254(2) clarifies that Parliament retains the power to enact laws on the same matter, including laws that add to, amend, vary, or repeal the state law. 

यानी राज्य सरकार के कानून पर केंद्र का कानून अधिमान रखता है और राज्य के कानून को केंद्र निरस्त भी कर सकता है

सुप्रीम कोर्ट का रुख केंद्र और राज्यों के बीच टकराव को और ज्यादा बढ़ाएगा जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है

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