जस्टिन ट्रूडो सही मायने में पनौती साबित हुआ; उसके पाले हुए “खालिस्तान” समर्थक चुनाव में पिट गए और उसके न होने से उसकी पार्टी भी जीत गई

सुभाष चन्द्र

एक वीडियो बाजार में घूम रहा है, आज मैंने भी पोस्ट किया है जिसमे गुरपतवंत सिंह पन्नू डींग मार रहा है खालिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों की लेकिन उसे शायद पता नहीं कि आज कनाडा के चुनाव में ट्रूडो के पाले हुए “खालिस्तानी” बुरी तरह पिट गए हैं जबकि पन्नू का तो कोई राजनीतिक अस्तित्व है ही नहीं 

पन्नू के पास कनाडा की भी नागरिकता है और वह कनाडा के खालिस्तानियों को भी खाद पानी देता होगा लेकिन क्या हाल हुआ वह उनकी NDP का और यहां भारत के लिए पन्नू कह रहा है कि भारत की फौज को पंजाब पार करके पाकिस्तान पर हमला नहीं करने देंगे

लेखक चर्चित YouTuber
कनाडा में सिखों की आबादी मात्र 2.1% है फिर भी जगमीत सिंह की NDP ने पिछले 2020 के चुनाव में 25 सीट सीट जीती थी और वोट मिले थे 17.82% यानी NDP को केवल सिखों के ही वोट नहीं मिले बाकी हिंदुओं और गोरों के भी वोट मिले और जगमीत सिंह सत्ता में बैठ कर ट्रूडो को नाच नचाता रहा 

लेकिन इस बार जगमीत सिंह खुद लिबरल पार्टी के वेड चांग से हार गया चांग को 40% वोट मिले और जगमीत को केवल 27% जगमीत सिंह की NDP को केवल 7 सीट मिली और वोट मात्र 6.3% यानी पिछले चुनाव से 11.52% वोट कम मिले और सीट घटी 18 अब NDP राष्ट्रीय पार्टी भी नहीं रहेगी क्योंकि उसके लिए संसद में 12 सीट होना जरूरी है

अगर लिबरल पार्टी ने कनाडा और पार्टी के लिए बन चुके “पनौती” ट्रूडो को बाहर न किया होता उसका भी बुरा हाल होता लेकिन “पनौती” दूर होने के बाद पार्टी को पिछले चुनाव से 22 सीट ज्यादा मिली और वोट भी 11.08% ज्यादा लिबरल पार्टी की इस बार 169 सीटें हैं और वोट 43.7% मार्क कार्नी को प्रधानमंत्री बना कर लिबरल पार्टी ने अपनी साख बचा ली 

दूसरी तरफ conservative party का प्रदर्शन भी काफी अच्छा रहा है उसे भी पिछले चुनाव के मुकाबले 23 अधिक मिली और वोट भी 7.56% ज्यादा पार्टी को 144 सीट और 41.3% वोट मिले

चौथी पार्टी Bloc Québécois (BQ) भी सीटों के हिसाब से बड़े घाटे में रहीउसे 22 सीट मिली जो पिछले चुनाव से 10 कम हैं और उसे भी वोट 6.3 % वोट मिले जैसे NDP लेकिन इस पार्टी की वोट पिछले चुनाव से मात्र 1.34% कम रही

कनाडा चुनाव में इस बार 68.7% वोट पड़े जबकि पिछली बार 62.2% यानी साढ़े 6% ज्यादा

कनाडा की सीख लेकर भारत की विपक्षी पार्टियों को भी अपनी अपनी “पनौती” दूर कर लेनी चाहिए लेकिन एक बात स्पष्ट हो गई कि जो हाय तौबा “खालिस्तान” के नाम की मचा रखी थी कनाडा में ट्रूडो ने और उनकी पार्टी ने जिसके लिए भारत को शत्रु बना लिया, वह एक बुलबुला मात्र थाऐसा ही भारत में किसान आंदोलन के नेताओं का हुआ था जो लोकसभा चुनाव में अपनी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके

अब देखना होगा कि क्या मार्क कार्नी भी भारत को शत्रु भाव से देखते हैं  या मित्र भाव सेशत्रु भाव से देखना तो कठिन लगता है ट्रूडो की दुर्दशा देख करलेकिन अभी भारतीय छात्रों को कनाडा जाने से बचना ही चाहिए क्योंकि जिन पार्टियों का संख्या बल कम हो जाता है वो और ज्यादा खूंखार और उत्पाती हो सकती है

No comments: