न्यायाधीशों के परिवार कभी अपराध के शिकार नहीं होते, इसलिए उन्हें 12 साल की बच्ची से बलात्कार की वेदना समझ नहीं आती; बलात्कार का मामला पीछे हो गया, सामने रह गया आरोपी के घर को तोड़ने का

सुभाष चन्द्र

मैं यह बात बार बार कहता रहा हूँ कि जिस तरह अनेक अदालतों के जज बच्चियों और महिलाओं के बलात्कार के मामलों में निर्णय देते हैं या उन मामलों को डील करते हैं, उससे यह आभास होता है कि उनमें वेदना शून्य होती है जिसका कारण है कि वे और उनके परिवार के लोग कभी बलात्कार लूट और हत्या के अपराध का शिकार नहीं होते

नैनीताल के मल्लीताल में 73 साल का मोहम्मद उस्मान एक 12 वर्ष की बच्ची का रेप करता है और जब नगरपालिका उसके अवैध घर को ढहाने का नोटिस देती है तो हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस रवींद्र मैठाणी की पीठ ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए नगरपालिका का नोटिस वापस करवा दिया और बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगा दी

आरोपी एक 73 साल का मुसलमान एक हिंदू बच्ची पर यौन अपराध करता है और उसके लिए वकील खड़ा होता है कांग्रेस के हरीश रावत का करीबी एक हिन्दू वकील कार्तिकेय हरी गुप्ता जो दलील देता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 15 दिन का नोटिस जरूरी है लेकिन नगरपालिका ने केवल 3 दिन का नोटिस दिया है 

ये वकील और दोनों जज बस इस नोटिस के 3 दिन की Technicality को समझे और जो अपराध बच्ची पर हुआ उसे भूल कर नोटिस वापस करा दिया गैर कानूनी मान कर अरे अगर नोटिस 3 दिन का दिया था तो आप उस नोटिस की अवधि 15 दिन की कर देते - ऐसा करने से आपको कौन रोकता था और वह हर तरह से उचित होता बेशर्म वकील और जजों को नोटिस में कानूनी कमी को देखने से पहले यह सोचना चाहिए था कि मोहम्मद उस्मान ने किस कानून में बच्ची पर यौन अपराध किया

कोर्ट के जजों और हरी गुप्ता वकील की नज़र में बच्ची पर हुए अपराध पर ध्यान देना जरूरी नहीं था लेकिन उसके घर को बचाना जरूरी था क्योंकि वह एक मुसलमान का केस था इतना ही नहीं जजों की मैं इसे महाबेशर्मी कहूंगा जो उन्होंने प्रशासन को बलात्कार के आरोपी मोहम्मद उस्मान से गलत नोटिस देने के लिए “माफ़ी” मांगने के निर्देश दिए 

इसका मतलब साफ़ है कोर्ट के जजों ने मोहम्मद उस्मान द्वारा किए बलात्कार को एक तरह जायज बता दिया और अन्य लोगों को भी प्रोत्साहित कर दिया कि रेप करो, मुकदमा 10 साल चलेगा, घर हम तोड़ने नहीं देंगे और उसमे रह कर मौज करना क्योंकि थोड़े बहुत दिन बाद हम बेल भी दे देंगे

अदालतों के इसी आचरण की वजह से अपराध बढ़ रहे हैं और अपराधियों के हौंसले बढे हुए हैं, मुस्लिम तो हिंदू बच्चियो,लड़कियों और महिलाओं का रेप करना तो अपना मौलिक अधिकार समझ चुके हैं आजकल एक कांड भोपाल का भी चर्चा में है जिसमें फरहान खान समेत कई मुसलमान शामिल हैं और फरहान ने कहा कि उसे अपने कृत्य पर कोई अफ़सोस नहीं है क्योंकि यह उनके लिए एक उनके धर्म का काम था

पिछले दिनों याद होगा इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने रेप की नई परिभाषा गढ़ते हुए कहा था कि लड़की के स्तनों को दबाना, नाड़ा खोलना और पुलिया के नीचे ले जाना रेप की कोशिश नहीं है अब दिल्ली में एक प्रतिष्ठित पत्रकार के साथ वैसा ही प्रयास एक पुलिसवाले ने किया उलटे सीधे फैसले देंगे तो समाज का तो सर्वनाश होना तय है

मैं सभी न्यायाधीशों को चेतावनी देता हूँ कि यौन अपराधों जैसे संवेदनशील मामलों में अपनी अक्ल जरूरत से ज्यादा चला कर गुड़ गोबर मत किया करो एक दिन आप लोगों पर ईश्वर का कोप बरसेगा और तब आप कहीं के नहीं रहोगे अभी बच गए केरल हाई कोर्ट के 3 जज पहलगाम में और अगर उन्हें कुछ हो गया होता तो आप लोग तो अदालतों में तांडव कर रहे होते

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