पाकिस्तान को सबक सिखाने की शुरुआत हो चुकी है! जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 हिंदू पर्यटकों के नृशंस नरसंहार के बाद भारत ने पड़ोसी मुल्क की नकेल कसना शुरू कर दिया है। सीमा पर दोनों देशों की सेनाएँ आमने-सामने हैं, और भारत ने अपनी सेना को खुली छूट दे दी है। लेकिन यह केवल सैन्य मोर्चे की बात नहीं है; भारत ने पानी के मोर्चे पर भी पाकिस्तान को करारा झटका दिया है। चेनाब नदी पर बने बगलिहार डैम के फाटक बंद कर दिए गए हैं, जिससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में पानी की भारी किल्लत होने वाली है।
यह कदम सिंधु जल संधि को तोड़ने के महज 10 दिनों बाद उठाया गया है, जिसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में 1960 में लागू किया गया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बगलिहार डैम, जो रन-ऑफ-द-रिवर हाइड्रो पावर प्लांट के रूप में बनाया गया था, अब पानी के प्रवाह को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले इस डैम से बिना रुकावट पानी बहता था और बिजली पैदा की जाती थी, लेकिन अब भारत ने इसे हथियार बना लिया है। चेनाब नदी का पानी पाकिस्तान के पंजाब में खेतों की सिंचाई के लिए जीवन रेखा है। इस कदम से वहाँ की कृषि और अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान होगा।
इतना ही नहीं, भारत अब झेलम नदी पर बने किशनगंगा डैम के जरिए भी पानी रोकने की तैयारी कर रहा है। इन डैमों से भारत पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है, यानी बिना चेतावनी के पानी कम या ज्यादा कर सकता है, जो पाकिस्तान के लिए तबाही ला सकता है।
सिंधु जल संधि के तहत छह नदियों का बँटवारा हुआ था। पूर्वी नदियाँ (सतलुज, ब्यास, रवि) भारत को और पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, चेनाब, झेलम) पाकिस्तान को मिली थीं। लेकिन भारत में लंबे समय से इस संधि पर सवाल उठते रहे हैं। कई लोग मानते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें जरूरत से ज्यादा उदारता दिखाई। 1965, 1971 और 1999 की जंगों में भी भारत ने यह संधि नहीं तोड़ी, लेकिन इस बार पाकिस्तान की आतंकी हरकतों का जवाब देने के लिए भारत ने कड़ा रुख अपनाया है।
पहलगाम हमले के बाद संधि को निलंबित कर चेनाब का पानी रोकना भारत का कूटनीतिक और रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक है। पाकिस्तान, जो अपनी 80% कृषि के लिए सिंधु नदी सिस्टम पर निर्भर है, अब जंग की धमकी दे रहा है। लेकिन भारत का यह वाटर अटैक तो बस शुरुआत है, आगे और सबक सिखाए जाएँगे!
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