सुभाष चन्द्र
सुप्रीम कोर्ट के वकील Mathews J Nedumpara ने सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की अनुमति मांगी थी लेकिन कल कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइया ने उनकी याचिका पर सुनवाई से मना कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से बीते 8 मई को जारी प्रेस रिलीज़ के अनुसार सीजेआई ने आंतरिक जांच रिपोर्ट और उस पर संबंधित जज का जवाब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया था। हम नहीं जानते और आप भी नहीं जानते कि आतंरिक जांच रिपोर्ट में क्या था। इसलिए पहले आप उन लोगों (राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री) से कार्रवाई का अनुरोध करें जिनके समक्ष यह मामला लंबित है।
अब सीजेआई ने मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजते हुए क्या लिखा, यह भी कहीं नहीं बताया गया। मीडिया में इतना कहा गया कि “सूत्रों के अनुसार सीजेआई ने वर्मा के खिलाफ महाभियोग शुरू करने के लिए कहा था”। लेकिन यह कहीं नहीं कहा गया कि सीजेआई ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को वर्मा के खिलाफ आपराधिक मुकदमा शुरू करने के लिए भी कहा था, जबकि आपराधिक केस दर्ज करने के लिए तो चीफ जस्टिस की मंजूरी जरूरी होती है, उसमे प्रधानमंत्री क्या करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए नेदुमपरा ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले CJI से अनुमति लेनी होगी। उन्होंने उस फैसले गलत घोषित करने की भी मांग की और कहा कि वर्मा के घर से नकदी मिलने के मामले में पुलिस को FIR दर्ज करने का आदेश दिया जाए।
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सुप्रीम कोर्ट वर्मा के मामले में अपनी जिम्मेदारी से भागते हुए उसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज कर संतुष्ट होकर बैठ गया जबकि सुप्रीम कोर्ट को स्वयं ही वर्मा के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दायर करने के आदेश देने चाहिए थे।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने अगर महाभियोग शुरू करने के लिए कहा तो उन्हें पता था यह सरल काम नहीं है। उसके लिए प्राथमिक नियमों का पालन करने के बाद प्रस्ताव को पहले लोकसभा या राज्यसभा से पारित होना जरूरी है। प्रस्ताव पारित होने के लिए प्रावधान है -
“The motion for removal is required to be adopted by each house of parliament by: (i) a majority of the total membership of that house; and (ii) a majority of at least two-thirds of the members of that house present and voting. If the motion is adopted by this majority, the motion will be sent to the other house for adoption”.
आज संसद में विपक्ष का संख्याबल देख कर यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि प्रस्ताव दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पारित हो सकेगा। और इस तरह यशवंत वर्मा को परोक्ष रूप से बचाने का काम किया है सुप्रीम कोर्ट ने।
कोर्ट ने नेदुमपरा से कहा कि यदि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपेक्षित कार्य नहीं करते तब आप हमारे सामने फिर से याचिका लेकर आ सकते हैं। तो फिर आपको राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए भी समय सीमा तय करनी चाहिए थी जिसमे उन्हें कार्रवाई करने को कहा जाता। ऐसी समय सीमा तय करने में तो सुप्रीम कोर्ट निपुण है जैसे राज्यों के विधेयकों के बारे में की थी।
सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस वर्मा के मामले में आचरण यह दर्शाता है वह न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। जजों को खुली छूट दे रहा है कि जितना मर्जी जैसे मर्जी कमाई करो, आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा।



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