अभी तो CJI की कुर्सी पर बैठे भी नहीं और न्यायपालिका की निंदा करने वालों को चेतावनी दे दी; क्या बोलने का अधिकार भी छीन लेंगे? गवई साहेब बौद्ध हो तो 5% से कम आबादी को ही अल्पसंख्यक घोषित करो

सुभाष चन्द्र

चीफ जस्टिस बनने से पहले ही जस्टिस बीआर गवई ने सोशल मीडिया पर हो रही न्यायपालिका की निंदा के लिए चेतावनी देते हुए कहा है कि जो सोशल मीडिया पर कोर्ट को scandalise करने के लिए ट्रोल करते हैं और जजों पर निजी हमले करते हैं उन्हें Iron Hand से डील करना चाहिए। कुछ जजों के निशिकांत दुबे के लिए अलग विचार हो सकते हैं लेकिन ऐसी बातें सहन नहीं की जा सकती। I have no second opinion about that, if it is a matter of somebody hurting the dignity of the court, there is no compromise”.

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सवाल यह उठता है कि फिर निशिकांत दुबे को छोड़ क्यों दिया गया? उससे भी भयानक बयान तो पौने तीन साल पहले अजीत भारती ने दिए थे और AG की दो बार अवमानना के केस की अनुमति के बाद भी उस पर केस नहीं चलाया गया सच्चाई यह है कि ऐसे अवमानना के केस चलाने पर उनके द्वारा बहुत कुछ सामने लाया जा सकता था, इसलिए मामलों को बंद रखना ही उचित समझा गया

जस्टिस गवई ने तो उपराष्ट्रपति पर भी सीधा हमला बोला और कहा कि सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 में अपनी शक्तियों का उपयोग करता है उन्हें उपराष्ट्रपति ने Nuclear Missile कहा था, तब तो उपराष्ट्रपति पर भी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस चला देना चाहिए यह नहीं भूलना चाहिए कि जगदीप धनखड़ कोई राह चलते व्यक्ति नहीं हैं, जब उन्होंने ऐसा कहा तो कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा

कोर्ट के फैसलों की यदि आप सकारात्मक आलोचना का भी अधिकार जनता को नहीं देना चाहते तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है जस्टिस यशवंत वर्मा के भ्रष्टाचार को यदि दबा दिया जाएगा तो उसे लेकर पूरी न्यायपालिका पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है और न्यायपालिका की विश्वसनीयता रसातल में ही जाएगी

कोई जज यदि खुलेआम अपने को किसी राजनीतिक परिवार का सदस्य कहेगा तो उसकी विश्वसनीयता पर कोई कैसे सवाल नहीं उठाएगा? जस्टिस खन्ना यदि केजरीवाल को बिना मांगे जमानत देते हैं, तो सवाल तो उठेगा फिर अंतिम जमानत 12 जुलाई को देने के बाद 3 जजों की बेंच को उसकी गिरफ़्तारी की वैधता का फैसला करने के लिए भेज देने के बाद 10 महीने तक 2 चीफ जस्टिस अगर बेंच का गठन नहीं करते तो कैसे उसकी निंदा नहीं होगी?

एक चार साल की बच्ची का बलात्कार कर उसकी हत्या करने वाले की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल दी जाएगी यह कह कर कि Every Sinner Has A Future तो उसके खिलाफ आवाज़ उठना तो स्वाभाविक है

संवैधानिक विषयों पर अगर सुप्रीम कोर्ट के केवल 2 जज फैसला देंगे जिससे संविधान ही बदल दिया जाए तो सवाल तो उठेंगे आपने बंगाल के केस में कहा कि “हमारे ऊपर तो कार्यपालिका में दखल देने के आरोप लग रहे है, हम कैसे राष्ट्रपति को हस्तक्षेप करने के लिए कह सकते हैं” लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तो राष्ट्रपति को आदेश देकर संविधान में संशोधन ही कर दिया जिसका अधिकार केवल संसद को है इसलिए अब चीफ जस्टिस बनने के बाद आपको संवैधानिक मामले केवल संविधान पीठ को ही मामले सौंपने चाहिए

आम जन को केवल यही पता था कि बीआर गवई दलित समुदाय से आते हैं, फिर आपको यह बताने की जरूरत क्यों पड़ी कि आप एक “बौद्ध” हैं? आपका अल्पसंख्यक होने के नाते यह कर्तव्य बनता है कि आप अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय करें और सुनिश्चित करें कि केवल वह समुदाय अल्पसंख्यक माना जाए जिसकी आबादी 5% से कम हो इसी से देश का कल्याण संभव है

जज कोई भगवान नहीं होते, उनसे भी गलत फैसले हो सकते हैं और होते भी हैं, इसलिए सकारात्मक आलोचना के लिए लोकतंत्र में स्थान होना चाहिए और उसका स्वागत होना चाहिए 

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