सुभाष चन्द्र
मैं अपनी कई लेखों में बता चुका कि समय समय पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट PMLA, 2002 कानून की नई नई व्याख्या करके उसे कमजोर करने और ED को नीचा दिखाने के प्रयास में लगे हैं जैसे ED कोई अपराध कर रही हो। कांग्रेस और विपक्ष यही आरोप लगाते है कि मोदी ED/CBI का दुरूपयोग कर रहा है। न्यायपालिका भी घड़ी घड़ी ED पर हमले कर विपक्ष के एजेंडे को पूरा करने का काम कर रही है।
PMLA, 2002 के कानूनों की व्याख्या और ED पर प्रहार तब से ज्यादा हो रहे हैं जब 2022 में जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच ने एक्ट में ED को दी गई रेड करने और जब्ती करने की शक्तियों को उचित ठहराया था। खानविलकर अब देश के लोकपाल हैं और उनकी भी एक जज के खिलाफ चल रही जांच पर जस्टिस गवई ने रोक लगाईं हुई है।
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अब नवीनतम मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ए जी मसीह की पीठ ने सभी सीमाएं पार करते हुए ED पर टिप्पणी करके हुए कहा कि “ED सभी सीमायें लांघ रही है और संघीय अवधारणा का उल्लंघन कर रही है”।
इस मामले में ED की टीएएसएमएसी (तमिलनाडु राज्य विपणन निगम) पर मनी लांड्रिंग में छापेमारी और जांच पर रोक लगा दी। यह मामला 1000 करोड़ के भ्रष्टाचार का है जिसके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट ED की तलाशी और छापे को सही कह चुका था। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ निगम और तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट अपील में गई।
कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले की जांच रोक कर एक तरह भ्रष्टाचार में लिप्त कथित आरोपियों को बचाने का काम किया।
इस मामले में निगम और तमिलनाडु सरकार के वकील कपिल सिब्बल और अमित आनंद तिवारी ने कहा कि निगम शराब की दुकानों के लाइसेंस दे रहा है। राज्य सरकार ने गड़बड़ियां मिलने पर 2014 से लाइसेंस देने के मामले में 40 से अधिक FIR दर्ज की हैं लेकिन ED 2025 में राज्य विपणन निगम के मुख्यालय पर छापा मार कर सभी फ़ोन आदि सामान ले गई।
इसी बात पर कोर्ट ने ED से सवाल किया कि आप निगम के खिलाफ आपराधिक केस कैसे दर्ज कर सकते हैं, आप केवल व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज कर सकते हैं।
निगम पर आपराधिक केस इसलिए बन सकता है कि तमिलनाडु सरकार का कोर्ट में गडबडियां मिलने पर 40 FIR दर्ज करना ही बताता है कि विपणन निगम ने घोटाला तो किया वरना सरकार FIR दर्ज क्यों करती। दूसरी बात, निगम के अधिकारी लाइसेंस निजी तौर पर तो जारी नहीं करते होंगे, वे लाइसेंस निगम की तरफ से ही जारी होते होंगे और इसलिए अधिकारी एवं निगम दोनों पर आपराधिक केस बनता है।
याद कीजिये 2022 में जस्टिस चंद्रचूड़ ने सेना की 37 महिला अधिकारियों को Permanent Commission न देने पर “पूरी सेना और सेना प्रमुख” पर कोर्ट की अवमानना का केस चलाने की धमकी दी थी। अगर पूरी सेना को आप कटघरे में खड़ा कर सकते हैं तो तमिलनाडु विपणन निगम पर केस क्यों नहीं दर्ज हो सकता।
एक अन्य मामले में कुछ दिन पहले नोएडा में एक सिविल केस को क्रिमिनल केस में बदलने पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि लगता है “उत्तर प्रदेश में कानून का शासन ध्वस्त हो गया है”। यानी एक छोटे से मामले में आपने पूरे राज्य की कानून व्यवस्था पर दाग लगा दिया और यहां तमिलनाडु के निगम पर केस चलने से आपको संघीय ढांचे पर प्रहार दिखाई दे गया।
सुप्रीम कोर्ट के आचरण में अक्सर दोहरा मापदंड अपनाता दिखाई देता है। ED को कमजोर मत कीजिए। ED पर प्रहार कर आप विपक्ष के साथ खड़े दिखाई देते हैं।


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