बिहार : ‘पॉलिटिकल टूर’ पर राहुल गाँधी, दशरथ माँझी की मूर्ति को 2 बार पहनाई ‘एक हाथ’ से माला और देखा तक नहीं: माउंटेन मैन के परिवार से मिलना दलित प्रेम या सियासी मजबूरी?

                           दशरथ माँझी, माल्यार्पण करते राहुल गाँधी (फोटो साभार: X_ANI/Prabhat Khabar)
राहुल गाँधी इन दिनों बिहार के राजनीतिक पर्यटन पर निकले हैं। गया पहुँचे, दशरथ माँझी के गाँव गए, उनकी मूर्ति पर माला चढ़ाई, परिवार से मिले और पूरे तामझाम के साथ दलित प्रेम का ढोंग रचाया। इस पूरे तामझाम का मकसद था – ‘दलित प्रेम’ का प्रदर्शन। लेकिन जो हुआ, उसने सियासत की पोल खोल दी।

दशरथ माँझी को पहनाई माला, लेकिन ढंग से देखा तक नहीं

दरअसल, गयाजी जिले के गहलौर गाँव में राहुल गाँधी दशरथ माँझी मेमोरियल पहुँचे। वहाँ माउंटेन मैन की मूर्ति पर माला चढ़ाई। लेकिन जिस तरह से उन्होंने ये किया, वो देखकर किसी का भी मन खट्टा हो जाए। दो बार माला चढ़ाई, लेकिन नजरें मूर्ति की तरफ उठी तक नहीं।

राहुल गाँधी ने एक हाथ से, तिरछे होकर जैसे जबरदस्ती कोई काम कर रहा हो, इसी तरह से इस ‘काम’ को निपटाया। चेहरे के हाव-भाव, मूर्ति की ओर नजरें और माला पहनाने का अंदाज – सब कुछ साफ बता रहा था कि राहुल गाँधी के लिए यह श्रद्धा नहीं, मजबूरी थी। एक हाथ से तिरछी माला, बिना नजरें मिलाए जल्दी-जल्दी दो बार माला चढ़ाना और आगे बढ़ जाना।

लोग भी तंज कस रहे हैं कि राहुल बाबा को माला चढ़ाने में भी मेहनत नहीं करनी। शायद सोच रहे होंगे कि बस फोटो खिंच जाए, बाकी तो जनता वैसे ही वोट दे देगी।

कौन थे दशरथ माँझी, जिनके घर सियासत चमकाने पहुँचे राहुल गाँधी

दशरथ माँझी, जिन्हें माउंटेन मैन कहा जाता है, उन्होंने 22 साल तक पहाड़ काटकर रास्ता बनाया। आज दशरथ माँझी का नाम है, तो वो राहुल गाँधी के ही परिवार, खानदान, पार्टी की वजह से। क्योंकि दशरथ माँझी की पत्नी फाल्गुनी की मौत जिस अव्यवस्था के कारण 1959 में हुई, वो उस समय की कांग्रेस सरकार की देन थी। 1960 से 1982 तक माँझी ने अकेले दम पर पहाड़ काटा, लेकिन कॉन्ग्रेस की सरकारें सोती रहीं।

इससे पहले भी भारत देश और बिहार की राजनीति पर कांग्रेस का ही वर्चस्व था और उसके बाद भी कांग्रेस का लंबे समय तक राज रहा, लेकिन विकास कार्यों की जगह कांग्रेस पार्टी ने आम जनता की तकलीफों और परेशानियों के प्रति मुँह मोड़े रखा। न कोई सड़क बनी, न अस्पताल, न कोई मदद मिली। माँझी ने अपनी मेहनत से जो रास्ता बनाया, उसकी सुध लेने में कांग्रेस को 22 साल लगे नहीं, बल्कि कभी सुध ली ही नहीं। आज राहुल गाँधी उन्हीं दशरथ माँझी के परिवार से मिल रहे हैं और महानता का बखान कर रहे हैं।

दलितों की अनदेखी का लंबा इतिहास

कांग्रेस का इतिहास देखें तो दलितों और गरीबों की अनदेखी की कहानियाँ भरी पड़ी हैं। दशरथ माँझी के समय से लेकर बाद तक, कांग्रेस ने बिहार में लंबा राज किया। लेकिन क्या बदला? गाँवों में सड़कें नहीं, अस्पताल नहीं, स्कूल नहीं। माँझी जैसे लोग अपनी जान जोखिम में डालकर पहाड़ काटते रहे और कांग्रेस की सरकारें कुर्सी की राजनीति में मस्त रहीं। बाद में जब लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकारें आईं, जो कांग्रेस की सहयोगी थीं, तब भी माँझी की कोई सुध नहीं ली गई। 15 साल तक लालू-राबड़ी ने बिहार को जंगलराज में धकेला, लेकिन माँझी जैसे लोगों के लिए कुछ नहीं किया।

वो तो भला हो नीतीश कुमार और बीजेपी की जोड़ी का, जिन्होंने माँझी के बनाए रास्ते को पक्का करवाया। नीतीश ने माँझी को सम्मान दिया, उनके नाम पर सड़क बनवाई और पद्मश्री के लिए उनका नाम भेजा। यही नहीं, मृत्यु के बाद राजकीय सम्मान के साथ विदाई भी दी। लेकिन राहुल गाँधी आज माँझी के गाँव में जाकर उनकी महानता का बखान कर रहे हैं। अरे भाई, अगर तुम्हारी पार्टी ने उस समय थोड़ा सा ध्यान दिया होता, तो शायद माँझी को 22 साल तक हथौड़े-छेनी से पहाड़ तोड़ने की जरूरत ही न पड़ती।

माँझी का परिवार और कांग्रेस की टिकट की सियासत

अब बात करते हैं माँझी के परिवार की। दशरथ माँझी के बेटे भगीरथ माँझी कॉन्ग्रेस में शामिल हो चुके हैं। परिवार अब कांग्रेस से विधानसभा चुनाव का टिकट माँग रहा है। ये वही परिवार है, जिसे कांग्रेस ने दशरथ माँझी के जीते-जी कभी पूछा तक नहीं। माँझी 2007 तक जिंदा रहे, लेकिन कांग्रेस ने उनकी सुध लेने की जहमत नहीं उठाई। अब जब बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, राहुल गाँधी को माँझी का गाँव याद आ गया। भगीरथ माँझी का हाथ पकड़कर फोटो खिंचवाए, वीडियो बनवाए और सोशल मीडिया पर वायरल करवाया। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सब दलितों के लिए सच्चा प्रेम है, या फिर वोटों की खातिर किया गया नाटक?

कांग्रेस की चाल समझने की जरूरत है। दरअसल, कांग्रेस ने बिहार में पूरी लीडरशिप ही दलितों के इर्द-गिर्द रखी है। प्रदेश में पार्टी की कमान राजेश राम को सौंपी है। वो दरभंगा पहुँचे, तो भी बिना अनुमति ही आँबेडकर हॉस्टल में घुस गए और दलित छात्रों से संवाद करने लगे। पटना पहुँचे तो फुले फिल्म देखने लगे। राजगीर पहुँचे, तो दलितों-आदिवासियों के साथ संवाद कार्यक्रम किया।

और अब माउंटेन मैन के घर जाकर, माला चढ़ाकर वो इसी कड़ी को आगे बढ़ा रहे हैं। शायद, वो माँझी के परिवार को विधानसभा चुनाव का टिकट भी दे दें, ताकि खुद को दलितों का मसीहा साबित कर सकें… लेकिन जनता सब समझती है। अगर कांग्रेस को दलितों की इतनी ही फिक्र थी, तो 22 साल तक माँझी को क्यों भूल गए? 27 साल बाद उनकी मौत के बाद भी क्यों नहीं सुध ली? अब जब वोटों की जरूरत पड़ी, तो माला चढ़ाने और फोटो खिंचवाने का ड्रामा शुरू हो गया।

गाँधी परिवार का दलित विरोधी इतिहास

गाँधी परिवार का दलितों के प्रति रवैया हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। इंदिरा गाँधी के समय बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनने से रोका गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो दलित थे। इतना ही नहीं, उनके बेटे का सेक्स स्कैंडल इंदिरा ने अपनी बहू के अखबार में छपवाया, ताकि जगजीवन राम की छवि खराब हो। ये है गाँधी परिवार का दलित प्रेम? आज राहुल गाँधी बिहार में दलितों के घर जा रहे हैं, लेकिन उनका मन वहाँ है ही नहीं। माला चढ़ाते वक्त उनका चेहरा देख लीजिए, लगता है जैसे कोई जबरदस्ती करवा रहा हो।

राहुल गाँधी का ये बिहार दौरा उनका पाँचवाँ दौरा है पिछले पाँच महीनों में। पहले दरभंगा, पटना, समस्तीपुर, पश्चिम चंपारण और अब गया, राजगीर, बोधगया। हर जगह वही ड्रामा – माला चढ़ाओ, फोटो खिंचवाओ और सोशल मीडिया पर वायरल करवाओ। राजगीर में जरासंध स्मारक गए, बाबासाहेब आंबेडकर की मूर्ति पर माला चढ़ाई और फिर अति पिछड़े समाज के लोगों से मुलाकात की। लेकिन ये सब कितना सच्चा है? अगर दलितों और पिछड़ों की इतनी ही चिंता थी, तो कांग्रेस ने अपने 60 साल के शासन में उनके लिए क्या किया? बीजेपी भी यही आरोप लगा रही है।

राहुल गाँधी का बिहार दौरा और दशरथ माँझी के गाँव जाना, एक सोचा-समझा सियासी ड्रामा है। माला चढ़ाने का ढोंग, परिवार से मिलने का नाटक और सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो – ये सब वोटों की खातिर है। कांग्रेस का इतिहास रहा है दलितों और गरीबों की अनदेखी का। दशरथ माँझी ने 22 साल तक पहाड़ काटा, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने उनकी सुध नहीं ली क्योंकि कॉन्ग्रेस का इतिहास रहा है वादे करने का, नारे देने का… लेकिन काम करने का नहीं। आज राहुल गाँधी माँझी के गाँव जाकर उनकी महानता का बखान कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि माँझी को वो सम्मान नहीं मिला, जो उन्हें कांग्रेस के राज में मिलना चाहिए था।

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