एक कहावत है "गुड़ तो खाना है गुलगुलों से परहेज" जो सुप्रीम कोर्ट पर शायद सटीक बैठता है। पिछले कुछ समय से सुप्रीम कोर्ट के रवैये को देख शंका होती है कि सुप्रीम कोर्ट पर भ्रष्टाचारियों और जेहादियों का कब्ज़ा है। यही स्थिति लगभग मोदी सरकार की भी है। जो पहलगाम में धर्म पूछकर हिन्दू महिलाओं का सिन्दूर उजाड़ने वाले पाकिस्तानी आतंकियों पर बम बरसा सकती है, लेकिन देश में पल रहे हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित करने वाले जेहादियों पर चुप्पी साधे हुए है, क्यों? ऐसे जहरीले जेहादी आतंकियों से कहीं ज्यादा घातक है।
पिछले दिनों चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि न्यायिक सक्रियता होनी चाहिए लेकिन उसे न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदला जाना चाहिए। मतलब ऐसा हो रहा है।
नूपुर शर्मा दिल्ली की रहने वाली थी, उसके खिलाफ कथित आपत्तिजनक बयान के लिए 5 राज्यों में FIR दर्ज हुई थी। उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका की थी कि उसके मुकदमे एक जगह दिल्ली में ट्रांसफर कर दिए जाएं लेकिन जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत ने उसकी खुली अदालत में बखिया उधेड़ दी। उसके खिलाफ जजों का बयान सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की सबसे बड़ी Hate Speech थी। उन्होंने नूपुर के लिए कन्हैया लाल की हत्या का जिक्र आने पर यहां कहा कि “इसकी जुबान ने पूरे देश में आग लगा दी है”। उसके मुक़दमे दिल्ली ट्रांसफर करने को मना कर दिया और कहा कि अलग अलग अदालत में जाओ।
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लेखक चर्चित YouTuber |
इस केस को अब सुप्रीम कोर्ट भूल गया और बंगाल के वजाहत खान ने भी जब अपने अलग अलग राज्यों में दर्ज मुकदमों को एक जगह करने की अपील की तो बंगाल के अलावा किसी अन्य राज्य में दायर FIRs पर गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी। यह है एक और जुडिशल आतंकवाद या दूसरे शब्दों में कहा जाए मुस्लिम कट्टरपंथियों की गुलामी का उदाहरण?
यानी आरोपी का धर्म देख कर फैसले किए जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर अन्य राज्यों में केस स्टे किए क्योंकि वह बंगाल का रहने वाला है। दिल्ली, हरियाणा, असम में भी उस पर केस दर्ज हैं और वहां की पुलिस भी उसकी कस्टडी चाहती है। उसको नहीं कहा कि हर राज्य की अदालत में जाओ। बंगाल में दर्ज FIR पर वो गिरफ्तार हुआ था।
जस्टिस के वी विश्वनाथन और जस्टिस NK Singh के बेंच में सुनवाई के दौरान जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि FIRs दर्ज होने से पहले वजाहत खान ने अपनी विवादित पोस्ट डिलीट कर दी थी। उन्होंने कहा कि -
“"These hate speeches lead us nowhere; incitement to violence need not always be physical, it can be verbal too; Does it have to be physical violence? Or can it be verbal also? Wound inflicted by fire may heal, but not a wound inflicted with tongue."
वजाहत खान के कालनेमि हिंदू वकील दामा शेषाद्री नायडू ने कहा कि शर्मिष्ठा पनोली की आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद वजाहत की शिकायत के बाद उस पर केस दर्ज हुए हैं।
कहते हैं भगवान की निंदा करना और सुनना दोनों पाप हैं और इसलिए जो वजाहत लिखता था उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। माँ कामाख्या देवी और भगवान कृष्ण और अन्य देवी देवताओं के लिए उसकी भाषा घोर निंदनीय है और सुप्रीम कोर्ट फिर भी उस पर दया दृष्टि बना गया।
सुप्रीम कोर्ट को यह याद रखना चाहिए था कि शर्मिष्ठा ने भी माफ़ी मांग ली थी लेकिन फिर भी उसे जेल में डाल दिया गया। नूपुर शर्मा ने भी बिना शर्त अपनी गलती के खेद प्रकट कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजों ने उसकी इज़्ज़त भरे कोर्ट में उतार दी। सुप्रीम कोर्ट ने तो सनातन धर्म को मलेरिया और डेंगू कह कर ख़त्म करने वाले उदयनिधि स्टालिन की गिरफ़्तारी पर भी रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट का आचरण हिंदुओं के प्रति साफ़ भेदभावपूर्ण दिखाई देता है और यही न्यायिक आतंकवाद है। अपनी हेंकड़ी कैसे दिखा रही हैं अदालतें वो आज के जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के आदेश से पता चलता है जिसमें उन्होंने पाकिस्तान भेजी गई महिला को वापस बुलाने के आदेश दिए हैं।
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