पिछले सप्ताह गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि BNS के शुरू होने के बाद 60 दिनों में 60% मामलों में आरोप पत्र दायर कर दिए गए। BNS लागू होते समय ऐसा भी कहा गया था कि ऐसे मामलों का निपटारा एक वर्ष में हो सकेगा। लेकिन मामले चलेंगे तो ट्रायल कोर्ट में और वहां लेटलतीफी होती है। आरोपियों को कानून के अनुसार ट्रायल कोर्ट के आदेश पर कमियां निकालने का पूरा मौका मिल जाता है। हालांकि BNS के अनुसार केस केवल 2 बार स्थगित किया जा सकता है (adjournment)। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री रहते हुए हरियाणा पर पानी में जहर मिलाने का आरोप लगाया था और उस पर मुकदमा दर्ज हुआ था। केजरीवाल 3 बार कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ। चौथी बार उनके वकील ने कहा कि केजरीवाल न तो विधायक हैं और न मुख्यमंत्री, इसलिए MP/MLA कोर्ट के पास उनके ट्रायल का अधिकार नहीं है। लेकिन वो भूल गए कि आरोप तो मुख्यमंत्री रहते हुए लगाया था।
सरकारी वकील ने भी कहा कि केजरीवाल के विधायक या सांसद न होने की वजह से उन पर स्पेशल कोर्ट में मुकदमा चलाने की जरूरत नहीं है और हरियाणा में MP/MLA कोर्ट हैं भी नहीं और इसलिए मामला स्थानीय अदालत में चलना चाहिए।
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राहुल गांधी के खिलाफ 2018 में अमित शाह को हत्यारा कहने पर तब से ट्रायल कोर्ट में केस लंबित है। ट्रायल कोर्ट ने समन जारी किए हैं जिसके खिलाफ वह अब इलाहाबाद हाई कोर्ट चला गया है। हाई कोर्ट ख़ारिज कर देगा तो सुप्रीम कोर्ट जाएगा जहां हो सकता है केस पर रोक लगा दी जाए। मतलब BNS तो गया घुईया के खेत में।
ऐसे ही वीर सावरकर के खिलाफ अपशब्द बोलने के लिए ट्रायल कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ केस चल रहा है। समन जारी हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने समन पर रोक लगाने से मना कर दिया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने समन को स्टे कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उसे फटकार जरूर मारी लेकिन केस तो बर्फ में लगा दिया।
एक और केस में सेना का अपमान करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने समन पर रोक लगाने से मना कर दिया लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट उसे भी कल को स्टे कर दे तो यह मुकदमा भी बर्फ में लग सकता है। ऐसे मुकदमों में अवरोध पैदा किया जाता है।
पुणे की अदालत ने राहुल गांधी की सावरकर के अपमान के केस में उसकी शिकायतकर्ता की Maternal Family की जानकारी मांगने की अर्जी ख़ारिज कर दी लेकिन कोर्ट ने कोई अगली तारीख तय नहीं की। जाहिर है इस आदेश के खिलाफ भी राहुल गांधी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जा सकता है, कोई तो उसकी बात मान लेगा।
सुब्रमण्यम स्वामी ने हेराल्ड केस में 2022 में अतिरिक्त दस्तावेज़ दाखिल करने की अनुमति मांगी थी ट्रायल कोर्ट से। माँ-बेटे हाई कोर्ट चले गए और आज 3 साल से मामला हाई कोर्ट ने लटकाया हुआ है। हाई कोर्ट खारिज कर देगा तो सुप्रीम कोर्ट विकल्प रहेगा। मतलब ट्रायल तो 20 साल तक शुरू भी नहीं होगा जबकि 12 वर्ष पहले ही बीत चुके हैं।
इसलिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को किसी भी ट्रायल कोर्ट की कार्रवाई में दखल नहीं देना चाहिए जब तक कानून से संबंधित कोई विशेष विषय न हो। अन्यथा कितना ही जोर लगा लिया जाए, अदालतें BNS को सफल नहीं होने देंगी।
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