ये दोनों मामले दिल्ली हाई कोर्ट के हैं जिनमें एक ही विषय था कि क्या पढ़ी लिखी पत्नी जो कमा कर अपनी जीविका चला सकती है, पति से CRPC, 1973 के section 125 में निर्वाह व्यय यानी गुजारा भत्ता (Alimony) का दावा कर सकती है।
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने मेघा खेत्रपाल बनाम रजत कपूर केस में 19 मार्च, 2025 को पत्नी की याचिका यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि -
"A well educated and able bodied wife who deliberately chooses not to work to seek maintenance cannot claim interim financial relief from her husband, the judgement affirmed the lower court's reasoning that she has not demonstrated an inability to maintainherself".
पत्नी ने Family court में 2021 में पति और उसके परिवार पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए Alimony का दावा किया। दोनों की शादी 2019 में हुई थी जब पत्नी सिंगापुर में रहती थी और फरवरी 2021 में भारत लौट आई और आरोप लगाया कि उसके पति ने उसका Spouse Visa भी रद्द करा दिया और उसे भटकने पर मजबूर कर दिया और उसे अपने गहने बेचने पड़े। वो अपने माता पिता के परिवार पर निर्भर है।
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Family Court ने पत्नी का दावा 5 नवंबर, 2022 को ख़ारिज कर दिया और उसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने उस पर मुहर लगा दी।
दूसरा केस भी ऐसा ही है जिसमें 26 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट की ही जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि “highly qualified wife, who is unemployed, has a right to be supported and managed by the husband till she is able to get gainful employment or develop a source of income”.
इस मामले में पति ऑस्ट्रेलिया का नागरिक है जिसे family court ने पत्नी को एक लाख रुपए महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया और हाई कोर्ट ने उसे बरक़रार रखा। पति ने कहा कि
"His wife was a highly qualified and accomplished individual with an extensive academic background and a strong professional trajectory and capable of gainful employment but had voluntarily chosen not to work and that her financial dependency was a matter of personal choice rather than a necessity".
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कोई दलील मानने से मना कर दिया और कहा कि -
"Though the wife was highly qualified and had excellent skills in HR and may, with effort, be able to get a job, it cannot be overlooked that there was nothing to show that she was presently employed".
महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के लिए आज क्या क्या नहीं कर रही लेकिन दूसरे केस में कोर्ट का रुख बिलकुल ऐसा है जैसे वह पत्नी को मुफ्त का मलीदा पेलने का अधिकार दे रहा है। पहले केस में जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने पढ़ी लिखी पत्नी से कहा कि काम करो और आत्मनिर्भर बनो और दूसरे मामले में जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने तलाक के बाद भी उसकी परवरिश का ठेका पति के कंधों पर डाल दिया। अगर पत्नी काम भी करने लगेगी, तब भी यह सवाल उठा कर वह Alimony मांगेगी कि इस कमाई से वह अपना स्टैण्डर्ड का जीवन यापन नहीं कर सकती।
CRPC के सेक्शन 125 में दिए गए प्रावधान की व्याख्या अलग अलग जज अपने विवेक से करते हैं जैसा हैं दोनों उपरोक्त मामलों में देख सकते हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई, 2024 के निर्णय में कह चुका कि महिला किसी भी धर्म से हो, उसे सेक्शन 125 में गुजारा भत्ता मिलने का अधिकार है। यह निर्णय मुस्लिम महिलाओं के लिए उनकी याचिका पर दिया था। ऐसे ही 1986 के शाह बानो के निर्णय को राजीव गांधी ने पलट दिया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अब भी फैसले को चुनौती देने की बात कर रहा है।
एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ कल का फैसला समाज में महिलाओं को पति पर ही निर्भर बनाने की कोशिश करेगा।
एक विषय, एक हाई कोर्ट और दो विपरीत फैसले कहां तक उचित हैं।
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