चीफ जस्टिस बीआर गवई द्वारा भगवान विष्णु पर किए कटाक्ष की तुलना आक्रांता अकबर से और अटॉर्नी जनरल की अकबर के फौजी से की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी: कोर्ट की अवमानना में Aggrieved Party कौन है ? जब चीफ जस्टिस ने कुछ भी कार्रवाई करने से मना कर दिया फिर राकेश किशोर पर कोर्ट की अवमानना का केस क्यों? न्यायाधीश पूरे हिंदू समाज की अवमानना करे तो जिम्मेदार कौन?

सुभाष चन्द्र

ऐसी शंका है कि सुप्रीम कोर्ट में सनातन विरोधियों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। वकील राकेश किशोर पर मुकदमा चलाने के लिए आरोपित किसे बनाया है? क्या जजों को हिन्दू देवी-देवताओं पर कटाक्ष करने की खुली छूट है? चीफ जस्टिस बीआर गवई द्वारा भगवान विष्णु पर किए कटाक्ष की तुलना अगर आक्रांता अकबर से और अटॉर्नी जनरल की अकबर के फौजी से की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिसे अभिनेता-निर्माता-निर्देशक दारा सिंह ने अपनी फिल्म "भक्ति में शक्ति" में दर्शाया है। 

जब ज्वाला माता भक्त ध्यानु अपने घोड़े के साथ माता के दर्शन करने जा रहा होता है, तब अकबर के फौजी उसे गिरफ्तार कर अकबर के आगे पेश करते हैं और अकबर ध्यानु भक्त के घोड़े का सिर काट कहता है कि "तेरी देवी में शक्ति है तो घोड़े का सिर जोड़कर दिखाए। माता रानी अपने परमभक्त की इस अग्नि-परीक्षा में घोड़े का कटा सिर लगा घोड़े को भी जीवित कर देती है।"        

अटॉर्नी जनरल ने चीफ जस्टिस बीआर गवई पर कथित तौर पर जूता फेंकने वाले 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का आपराधिक केस चलाने की अनुमति दी है। उन्होंने कहा है - “Kishore's conduct amounted to "criminal contempt" and that his actions were "not only scandalous but also calculated to demean the majesty and authority of the Supreme Court".

 

इस विषय पर कई सवाल उठने स्वाभाविक हैं। सबसे पहली बात यह कि जब उसी दिन चीफ जस्टिस गवई ने राकेश किशोर के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई करने से मना कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार कार्यालय ने पुलिस में कोई शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया तो राकेश किशोर पर हर तरफ से कार्रवाई क्यों की जा रही है? सबसे पहले बार कौंसिल ने उन्हें सस्पेंड किया, फिर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने उन्हें बार एसोसिएशन से निष्कासित किया और अब अटॉर्नी जनरल ने उन पर कोर्ट की अवमानना का आपराधिक केस चलाने की अनुमति दे दी, क्या है ये तमाशा?   

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एक प्रश्न यह उठता है कि कोर्ट की अवमानना में Aggrieved Party कौन है? क्या स्वयं कोर्ट है या चीफ जस्टिस  हैं? कोर्ट तो कोई व्यक्ति नहीं है तो उसकी अवमानना कैसे हो सकती है? यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि केजरीवाल ने अपने विरुद्ध defamation case में कहा था गुजरात यूनिवर्सिटी तो कोई व्यक्ति नहीं है और इसलिए उसे defamation केस दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। तो क्या कोर्ट राकेश किशोर के केस में जब सुनवाई करेगा तो क्या चीफ जस्टिस गवई पीड़ित पक्ष के रूप में हाजिर होंगे? और यह मांग राकेश किशोर कर सकते हैं कि चीफ जस्टिस गवई को सुनवाई में बतौर गवाह पेश किया जाए। 

राकेश किशोर गवई साहेब से सवाल कर सकते हैं कि आप  पूरे हिंदू समाज का अपमान कैसे  कर सकते हैं और यह अपमान 2 दिन पहले जस्टिस सूर्यकांत ने भी किया है, तो समाज के अपमान के लिए आप के ऊपर क्या कार्रवाई होनी चाहिए?

सितंबर 2022 में अजीत भारती के खिलाफ भी अटॉर्नी जनरल ने 2 अनुमति दी थी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के आपराधिक केस चलाने की लेकिन आज 3 साल हो गए, सुप्रीम कोर्ट ने उन पर सुनवाई नहीं की जिसका कारण हो सकता है कि अजीत भारती ने कोर्ट के जजों के सामने कुछ  “असहज” सवाल खड़े कर दिए तो क्या होगा? 

शायद इसलिए ही 16 अक्टूबर को  जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बागची ने एक सुनवाई में “expressed wariness about pursuing a contempt case. They were concerned that it might provide "fresh fodder" for those glorifying Kishore's action, especially on social media, and that it could give further publicity to the incident. The court suggested letting the matter "die a natural death".

अब सुप्रीम कोर्ट दीपावली की छुट्टी के बाद निर्णय करेगा कि राकेश किशोर पर केस चलाया जाए या नहीं

अभी झारखण्ड हाई कोर्ट के एक वकील के खिलाफ भी अवमानना की कार्रवाई शुरू हुई है और एक जूता प्रकरण गुजरात की भी एक अदालत में हुआ है। 

अदालतों में बैठे जजों को संयम से काम लेना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने विवाह प्रथा को महिलाओं को गुलाम बनाने की प्रक्रिया बता दिया और वह केवल हिंदू समाज के लिए कहा गया। ऐसे बयान देने का क्या औचित्य है? क्या हिम्मत है कहने की कि विश्व में एक ऐसा भी समुदाय है जिसमे 6 साल की लड़की से विवाह हो जाता है और 9 साल में वैवाहिक संबंध?

आपका सम्मान तो सम्मान है और स्वामी प्रसाद मौर्य भगवान राम का अपमान करे तो आप कहते हैं कि वो उसकी Line of thought है। जनता के मन में आपके प्रति कुछ Line of thought हो सकती है, उसे सहना सीखने की जरूरत है। 

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