राहुल गाँधी कोलंबिया में बेतुकी बात कर उड़वा रहे अपनी खिल्ली; ‘मोटरसाइकल से भारी होती है कार ताकि इंजन बचाए ड्राइवर की जान’: समझ से परे है तर्क

                                           राहुल गाँधी का कोलंबिया में गाड़ी के इंजन पर बेतुका बयान 

राहुल गाँधी के बयानों को देख लगता है जब तक कांग्रेस का पतन नहीं होगा राहुल चुप नहीं बैठने वाले। राहुल भारत में बोले या भारत से बाहर उनका हर बयान कांग्रेस के पतन का कारण बन रहा है। यानि योगी आदित्यनाथ की बात शत-प्रतिशत सत्य साबित हो रही है। जब राहुल को अध्यक्ष बनाने की चर्चा ही चल रही थी तब योगी ने कहा था कि "जितनी जल्दी हो राहुल बाबा को अध्यक्ष बनाइए।" योगी एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक योगी भी हैं। राहुल के उल्टे-पुल्टे बयान ही बीजेपी को सत्ता में बनाये रखे हैं।     

अपने कोलंबिया के दौरे में राहुल गाँधी ने एनविगेडो में स्थित एआईए विश्वविद्यालय में एक भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने कार और मोटरसाइकिल पर एक बेतुका दावा किया जिसके बाद भाजपा और नेटीजंस ने उनको आधे हाथों ले लिया।

राहुल ने विकेंद्रीकरण यानी डिसेंट्रलाइजेशन को मोटर इंजीनियरिंग, क्रैश सेफ्टी और इलेक्ट्रिक मोटर के फायदे जैसी बातों से अपने दावे को समझाने की कोशिश की। इसमें उन्होंने कार और मोटरसाइकिलों के बीच तुलना करके अपने बिंदुओं को समझाया।

राहुल गाँधी ने पहले पूछा कि कार 3000 किलोग्राम तक भारी क्यों होती हैं, जबकि एक मोटरसाइकिल का वजन सिर्फ 100 किलोग्राम होता है। राहुल ने कहा, “एक यात्री को ले जाने के लिए आपको 3000 किलोग्राम के कार की जरूरत पड़ती है लेकिन 100 किलोग्राम की मोटरसाइकिल दो यात्रियों को लेकर जा सकती है। तो ऐसे में दो लोगों को ले जा सकने वाली मोटरसाइकिल का वजन सिर्फ 150 किलोग्राम ही क्यों और कार को 3000 किलोग्राम के वजन की जरूरत क्यों पड़ती है?”

उन्होंने कहा, “मोटरसाइकिल में जब कोई दुर्घटना होती है तो इंजन आपसे अलग हो जाता है। ऐसे में इंजन आपको नुकसान नहीं पहुँचाता। कार की दुर्घटना होने के दौरान इंजन कार के अंदर आने लगता है, इसलिए कार इस तरह से डिजाइन की जाती है ताकि इंजन आपको मार ना सके।”

फिर राहुल गाँधी ने सुझाव दिया कि इलेक्ट्रिक कारें इस समस्या का हल देती हैं, क्योंकि उनमें कई मोटर लगाई जा सकती हैं। उन्होंने कहा, “इलेक्ट्रिक मोटर आपको यह सुविधा देती है कि आप एक मोटर यहाँ लगाएँ, एक वहाँ लगाएँ और एक वहाँ भी लगाएँ। यानी इलेक्ट्रिक मोटर शक्ति का विकेंद्रीकरण है। यही इसकी असली ताकत है।”

राहुल गाँधी और उनके समर्थकों को लग सकता है कि यह बहुत तर्कसंगत बात है, लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस नेता के ये सारे दावे बेबुनियाद हैं। बीजेपी ने तो इसे ‘गिबरिश’ यानी बकवास तक कह दिया। आइए जानते हैं क्यों।

वाहन के वजन की बात करें तो

पहला, चार पहियों वाली कार और दोपहिया वाहन के वजन में फर्क होना जाहिर है, लेकिन राहुल गाँधी ने इसे बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर बताया। उन्होंने कहा कि एक आम कार को सिर्फ एक यात्री को ले जाने के लिए 3,000 किलो धातु की जरूरत होती है, जबकि मोटरसाइकिल सिर्फ 100 किलो धातु में दो लोगों को ले जाती है।

असल में, आम पैसेंजर कारों का वजन इससे काफी कम होता है, अमूमन 1,000 से 2,000 किलो के बीच। 3,000 किलो का आँकड़ा भारी-भरकम गाड़ियों के लिए होता है, न कि आम कारों के लिए।

उदाहरण के तौर पर, भारतीय बाजार में, प्रसिद्ध मॉडल जैसे मारुति सुजुकी ऑल्टो का वजन करीब 680-800 किलोग्राम होता है। टाटा नैनो, जिसे कभी दुनिया की सबसे सस्ती कार कहा गया था, उसका वजन भी लगभग 600-800 किलोग्राम था। ये कारें शहरी इलाकों में आसानी से चलती हैं और राहुल गाँधी के बताए वजन के पास भी नहीं पहुँचतीं।

आज के लोकप्रिय मॉडलों जैसे सुजुकी स्विफ्ट, टाटा नेक्सॉन, हुंडई क्रेटा जैसी सभी 1500 किलो से कम वजन की हैं। कुछ बड़े SUV जरूर भारी होते हैं, लेकिन वे भी 2,000 किलो से ज्यादा नहीं होते। सिर्फ कुछ अमेरिकी मसल कारें जैसे हमर ही 3,000 किलोग्राम से अधिक की होती हैं।

इसके अलावा, ज्यादातर मोटरसाइकिलों का वजन 100 किलो से ज्यादा होता है। आम मॉडल का वजन 150-300 किलो के बीच होता है। उदाहरण के लिए, भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली हीरो स्प्लेंडर का वजन लगभग 110-120 किलो होता है और बजाज पल्सर सीरीज का वजन 140-160 किलो तक होता है।

रॉयल एनफील्ड की ज्यादातर मोटरसाइकिलें करीब 200 किलो की होती हैं। यहाँ तक कि स्कूटर भी 100 किलो से ज्यादा वजन के होते हैं।

कारें भारी होती हैं क्योंकि उसका इंजन ड्राइवर को मार सकता है?

राहुल गाँधी ने कार और मोटरसाइकिल के वजन में फर्क को लेकर तर्क दिया कि कारें इसलिए भारी होती हैं ताकि एक्सीडेंट में उनका इंजन ड्राइवर को ‘मार’ न दे, जबकि मोटरसाइकिल का इंजन टक्कर में ‘उड़’ कर अलग हो जाता है। ये तर्क सामान्य समझ और वैज्ञानिक नियमों के बिल्कुल उलट है।

कारण बहुत ही सरल है। जब कोई कार एक्सीडेंट का शिकार होती है, तो इंजन केबिन की तरफ नहीं आता, बल्कि आगे की दिशा में जाने की कोशिश करता है। इसका कारण है न्यूटन का पहला नियम, जिसे जड़त्व का नियम कहते हैं। जब कोई कार चल रही होती है, तो उसमें मौजूद हर चीज उसी गति से चलती है। अगर अचानक ब्रेक लगे या टक्कर हो जाए, तो कार तो रुक जाती है लेकिन अंदर की चीजें अपनी गति बनाए रखने की कोशिश करती हैं। यही कारण है कि एक्सीडेंट में यात्री डैशबोर्ड से टकरा जाते हैं। इंजन भी यही प्रवृत्ति दिखाता है।

दुर्घटना में केवल यात्री और ढीली या कार से न जुड़ी हुई चीजें आगे बढ़ती हैं, लेकिन इंजन जैसे हिस्से वाहन के चेसिस से मजबूती से जुड़े होते हैं। कार का इंजन, गियरबॉक्स और अन्य हिस्सों से जुड़ा होता है और इतनी मजबूती से फिट किया जाता है कि वह टक्कर के बाद भी अपनी जगह से नहीं हिलता। इसलिए राहुल गाँधी का यह दावा कि इंजन अंदर घुसकर ड्राइवर को मार सकता है, पूरी तरह गलत है।

ठीक इसी तरह, मोटरसाइकिल का इंजन भी फ्रेम से मजबूती से जुड़ा होता है। यह कोई सेफ्टी मेकेनिज्म नहीं है कि टक्कर के समय इंजन ‘उड़ जाए’ या अलग हो जाए। आम सड़क दुर्घटनाओं में मोटरसाइकिल का इंजन अपनी जगह पर ही रहता है, चाहे टक्कर कितनी भी जोरदार क्यों न हो।

दोपहिया वाहन चालकों को एक्सीडेंट के बाद इंजन से चोट नहीं लगती क्योंकि टक्कर के समय झटका इतना तेज होता है कि सवार आमतौर पर वाहन से बाहर फेंका जाता है। यह न्यूटन के जड़त्व के नियम के कारण होता है। सिर्फ कुछ खास रेसिंग घटनाओं जैसे MotoGP में कभी-कभी इंजन अलग होता दिखता है, लेकिन आम सड़क दुर्घटनाओं में जो मोटरसाइकिलें चलती हैं, उनका इंजन फ्रेम से जुड़ा ही रहता है।

कार और मोटरसाइकिल दोनों में इंजन चेसिस से मजबूती से जुड़ा होता है ताकि गाड़ी की स्थिरता, प्रदर्शन और सुरक्षा बनी रहे। ये इंजन न तो आमतौर पर ड्राइवर को चोट पहुंचाते हैं और न ही एक्सीडेंट में अलग हो जाते हैं, जैसा कि राहुल गाँधी ने दावा किया।

इसके अलावा, आधुनिक कारों में ऐसी तकनीक होती हैं जैसे क्रम्पल जोन, फायरवॉल और ब्रेकअवे माउंट्स आदि टक्कर के समय इंजन को केबिन से दूर मोड़ देती हैं। ये हिस्से दुर्घटना के समय ऊर्जा को सोखते हैं और इंजन को अंदर घुसने से रोकते हैं।

भारत में अब कई गाड़ियों में ऐसी सुरक्षा तकनीक आ चुकी हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि एक्सीडेंट के समय इंजन नीचे की ओर खिसक जाए और यात्रियों को कोई खतरा न हो।

कारें मोटरसाइकिल से भारी क्यों होती हैं?

यह बात तो बिल्कुल जाहिर है, कारें और मोटरसाइकिल दोनों ही स्टील और अन्य धातुओं से बनी होती हैं, लेकिन कारों का आकार मोटरसाइकिल से कहीं बड़ा होता है। कारों में बड़ा चेसिस होता है, ज्यादा पहिए होते हैं (स्पेयर टायर समेत), ज्यादा सीटें होती हैं और इंजन भी बड़ा और भारी होता है जिसमें आमतौर पर ज्यादा सिलेंडर होते हैं। ट्रांसमिशन सिस्टम भी बड़ा होता है।
कारों में कई ऐसे फीचर्स होते हैं जो मोटरसाइकिल में नहीं होते, जैसे विंडशील्ड, खिड़कियाँ, एयर कंडीशनिंग, म्यूजिक सिस्टम, सुरक्षा उपकरण (जैसे एयरबैग) और कई इलेक्ट्रॉनिक, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल हिस्से। इन सबकी वजह से कार का वजन बढ़ता है। कारों में बैटरी भी मोटरसाइकिल की तुलना में अधिक बड़ी होती है।
भले ही मोटरसाइकिल दो लोगों को ले जा सकती है और कारों का इस्तेमाल कई बार सिर्फ एक व्यक्ति करता है, लेकिन कारें असल में 4 से 5 लोगों और उनके सामान को ले जाने के लिए बनाई जाती हैं। इसलिए कार और मोटरसाइकिल की तुलना करना ही गलत है। यह पूरी तरह से बेमतलब है।

इलेक्ट्रिक मोटर की ताकत ‘शक्ति का विकेंद्रीकरण’ है?

राहुल गाँधी ने अपने भाषण में कहा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ताकत ‘शक्ति के विकेंद्रीकरण’ में है, यानी मोटर को गाड़ी के अलग-अलग हिस्सों में लगाया जा सकता है जिससे ऊर्जा का बेहतर वितरण होता है।
कुछ इलेक्ट्रिक गाड़ियों में ऐसा होता है कि हर पहिए पर अलग मोटर होती है, जिससे ट्रैक्शन और एफिशिएंसी बेहतर होती है। लेकिन यह कोई सामान्य सेटिंग नहीं है। ऐसी तकनीक सिर्फ कुछ महँगी और हाई-एंड गाड़ियों में मिलती है। ज्यादातर इलेक्ट्रिक गाड़ियों में सिर्फ एक या दो मोटर ही होते हैं।
अगर गाड़ी में ज्यादा मोटर लगाए जाएँ, तो उसकी कीमत बढ़ जाती है और बिजली की खपत भी ज्यादा होती है। हर ग्राहक को चार मोटर वाली गाड़ी चाहिए, ऐसा भी जरूरी नहीं है।
इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की मजबूती कई दूसरे पहलुओं से भी आती है। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रिक मोटर ऊर्जा को बहुत कुशलता से बदलती है (इनकी एफिशिएंसी 80–90% तक होती है, जबकि पेट्रोल या डीजल इंजन की दक्षता सिर्फ लगभग 25% होती है) इसके अलावा, इलेक्ट्रिक मोटर तुरंत टॉर्क देती है, जिससे गाड़ी तेजी से चलती है और ये प्रदूषण भी बहुत कम करती हैं।
हालाँकि यह मान लेना कि EV हल्की होती हैं- सही नहीं है। इनकी बैटरी बहुत भारी होती है, जिससे इनका कुल वजन पेट्रोल गाड़ियों जितना या उससे ज्यादा हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, Tata Nexon का पेट्रोल मॉडल लगभग 1300 किलो वजन का होता है, जबकि Tata Nexon EV का वजन करीब 1400 किलो होता है। EV मोटर भले ही हल्की होती है, लेकिन भारी बैटरी पैक कुल वजन को बढ़ा देता है।

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