भारत-हिंदू विरोधी जोहरान ममदानी बना न्यूयॉर्क सिटी का नया मेयर (फोटो साभार : Aajtak)
न्यूयॉर्क सिटी को नया मेयर जोहरान ममदानी बन गया है। 34 वर्षीय डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ममदानी ने पूर्व गवर्नर एंड्रयू क्यूमो और रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लिवा को हराकर इस पद को हासिल किया है। युगांडा में जन्मे और भारतीय मूल के ममदानी ने जून 2025 के चुनाव में जीत हासिल कर न्यूयॉर्क के पहले भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम मेयर बनने का रिकॉर्ड बनाया। लेकिन उनकी जीत जितनी बड़ी है, विवाद उतने ही गंभीर हैं, खासकर भारत और हिंदू धर्म को लेकर उनके बयानों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
कौन हैं जोहरान ममदानी?
क्यों हैं जोहरान ममदानी हिंदू-विरोधी और भारत-विरोधी विवादों के केंद्र में?
ममदानी ने दावा किया था कि ‘गुजरात में अब कोई मुसलमान नहीं बचा है’, जो कि पूरी तरह से झूठा और भड़काऊ बयान है। यह दावा गुजरात की मुस्लिम आबादी के मौजूदा आँकड़ों के विपरीत है और इसे विभाजनकारी राजनीति के रूप में देखा जाता है।
ममदानी ने अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को ‘मस्जिद के विध्वंस का उत्सव’ और ‘हिंदुत्व फासीवाद’ का प्रतीक बताया। यह बयान भारत के लोकतांत्रिक और कानूनी प्रक्रिया के तहत आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नकारता है और करोड़ों हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुँचाता है। जनवरी 2024 में, ममदानी न्यूयॉर्क में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के खिलाफ आयोजित प्रदर्शनों में शामिल हुए। इन रैलियों के दौरान कथित तौर पर हिंदुओं के खिलाफ अपमानजनक नारे लगाए गए थे।
इन सभी बयानों से यह स्पष्ट है कि ममदानी केवल राजनीतिक आलोचना तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने सीधे तौर पर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों को निशाना बनाया, जिससे उन्हें हिंदू और भारत-समर्थक समुदायों के बीच एक अत्यधिक विवादास्पद छवि वाला नेता बना दिया।
कट्टरपंथी समूहों का साथ
जोहरान ममदानी के विवाद सिर्फ उनके बयानों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका जुड़ाव कुछ ऐसे संगठनों और व्यक्तियों से भी रहा है, जिन पर गंभीर आरोप हैं। इसके अलावा, पश्चिमी मीडिया के एक वर्ग ने भी उनकी विवादास्पद छवि को ढकने का प्रयास किया है।
जोहरान ममदानी का अब्बू आतंकियों का समर्थकममदानी ने हाल ही में इमाम सिराज वहाज से मुलाकात की थी, जिस पर 1993 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर बम धमाके के साजिशकर्ताओं से संबंध रखने के गंभीर आरोप लगे थे। इस मुलाकात के लिए उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प समेत कई नेताओं की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा।
जोहरान ममदानी इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) जैसे संगठनों से भी जुड़े बताए जाते हैं। इन समूहों पर भारत-विरोधी प्रचार चलाने, हिंदू समूहों पर ‘हिंदुत्व आतंकवाद’ का आरोप लगाकर डर और अविश्वास का माहौल बनाने का आरोप है।
वॉशिंगटन पोस्ट जैसे कुछ पश्चिमी मीडिया हाउसों ने ममदानी के स्पष्ट हिंदू-विरोधी बयानों को केवल ‘मोदी की कड़ी आलोचना’ बताकर हल्का करने की कोशिश की थी। आलोचकों का मानना है कि इस तरह से मीडिया एक निर्वाचित अधिकारी के घृणास्पद प्रचार को ‘राजनीतिक असहमति’ का जामा पहनाकर सही ठहरा रहा है।
गौरतलब है कि अतीत में इन्हीं मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने 2008 के मालेगाँव बम धमाके जैसे मामलों में ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था, जिससे वैश्विक स्तर पर हिंदू समुदाय की छवि को गहरी चोट पहुँची थी। आज यही मीडिया ममदानी की आलोचनाओं को दबाकर, हिंदू समुदाय की चिंताओं को पूरी तरह से अनदेखा कर रहा है।
अब्बू महमूद ममदानी: चरमपंथी विचारधारा का वैचारिक समर्थन?
जोहरान ममदानी के विवादित विचारों की जड़ें उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि तक जाती हैं। ममदानी के अब्बू, युगांडा मूल के प्रसिद्ध लेखक और प्रोफेसर महमूद ममदानी पर भी गंभीर वैचारिक आरोप लगे हैं। महमूद ममदानी पर आरोप है कि उन्होंने अपनी पुस्तकों और व्याख्यानों के माध्यम से इस्लामी चरमपंथ और हिंसा को वैचारिक रूप से ‘जायज’ (Justify) ठहराने की कोशिश की।
अपनी एक पुस्तक में ममदानी ने पाकिस्तान के निर्माण को ‘धार्मिक एकता की जरूरत‘ के रूप में चित्रित किया। आलोचकों के अनुसार, उन्होंने जिन्ना और इस्लामी उलेमा के विभाजनकारी व चरमपंथी रवैये पर पर्दा डालने की कोशिश की, यहाँ तक कि विभाजन के दौरान हिंदुओं के नरसंहार को भी वैचारिक रूप से हल्का दिखाने का प्रयास किया।
महमूद ममदानी ने यह दावा भी किया कि इस्लाम में ‘राष्ट्रवाद’ की अवधारणा नहीं है, बल्कि यह एक ‘उम्माह’ (एक वैश्विक मुस्लिम समुदाय) है, जिसे सीमाओं में नहीं बाँटा जा सकता। कई आलोचकों और भारतीय बुद्धिजीवियों का मानना है कि यह विचार परोक्ष रूप से ‘गजवा-ए-हिंद’ (संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप को इस्लाम के अधीन लाने की चरमपंथी भविष्यवाणी) जैसी घातक और अतिवादी सोच को बढ़ावा देता है।
भारतीय बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों का एक वर्ग यह मानता है कि महमूद ममदानी ने अपने लेखन में इस्लामी हिंसा और आतंक को वैचारिक रूप से सही ठहराने का प्रयास किया, जो अब उनके बेटे जोहरान ममदानी की विवादास्पद राजनीति में भी दिखाई देता है।
भारतीय-अमेरिकी समुदाय में आक्रोश और ममदानी के एजेंडे पर सवाल
जोहरान ममदानी की जीत के बाद न्यूयॉर्क सिटी में भारतीय-अमेरिकी और हिंदू समुदाय के बड़े वर्ग ने उनके विभाजनकारी बयानों पर गहरा रोष व्यक्त किया है। सिख समुदाय के नेता और मानवाधिकार वकील जसप्रीत सिंह ने ममदानी की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, “हमारे शहर में नफरत के लिए कोई जगह नहीं है… लेकिन जोहरान अपने मंच का इस्तेमाल हिंदू विरोधी बयानबाजी को बढ़ावा देने और हमें धर्म के आधार पर विभाजित करने के लिए कर रहे हैं।”
न्यूयॉर्क के कई हिंदू संगठनों ने ममदानी के बयानों को ‘धार्मिक घृणा का एजेंडा’ बताते हुए उनके इस्तीफे की माँग की है। समुदाय का कहना है कि हिंदुओं को ‘फासीवाद’ से जोड़ना और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करना बेहद आपत्तिजनक है।
राजनीतिक विश्लेषकों और आलोचकों का मानना है कि ममदानी की राजनीति ‘प्रगतिशील’ टैग के पीछे छिपी हुई एक खतरनाक विचारधारा को दर्शाती है। विश्लेषकों के अनुसार, ममदानी की ‘समाजवादी और प्रगतिशील’ छवि के पीछे उनका असली मकसद कट्टरपंथी राजनीति को वैध बनाना है। वह हिंदू धर्म को ‘फासीवाद’ और भारत को ‘धार्मिक तानाशाही’ बताकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश की छवि खराब करने में सक्रिय रूप से जुटे हैं।
जोहरान ममदानी का न्यूयॉर्क का मेयर बनना केवल एक राजनीतिक जीत नहीं है। जिस तरह से ममदानी ने बार-बार हिंदू धर्म, भारत और मोदी सरकार पर झूठे, अपमानजनक और भ्रामक आरोप लगाए हैं, उससे यह साफ है कि उनकी राजनीति घृणा और भ्रम फैलाने पर आधारित है। जब उनके अब्बू महमूद ममदानी के लेखन में भी इस्लामी आतंक समर्थक झुकाव दिखता है, तो यह परिवार एक विचारधारात्मक खतरे का प्रतीक बन जाता है, जहाँ ‘प्रगतिशीलता’ के नाम पर भारत और हिंदुओं के खिलाफ नफरत को जायज ठहराया जा रहा है।
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