राहुल गाँधी क्यों कांग्रेस का समय से पहले ही शमशान/कब्रिस्तान पहुँचाने में लगे हो? तुम्हारे भ्रमित और भड़काऊ बयानों की वजह से अब कांग्रेस की छवि राष्ट्रवादी नहीं राष्ट्र विरोधी पार्टी की बननी शुरू हो चुकी है। राहुल को पार्टी अध्यक्ष बनाने की चर्चा शुरू होने पर जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि "जितनी जल्दी हो राहुल बाबा को अध्यक्ष बनाइये" शत-प्रतिशत चरितार्थ हो रहा है। आखिर योगी की बात गलत कैसे गलत हो सकती है। क्योकि अपनी विदेश यात्रा से आने के बाद तुम्हारे झूठे बयानों कांग्रेस ने अपना जनाधार भी खोना शुरू कर दिया है। जहाँ तक वोट चोरी का सवाल है इतना मालूम होना चाहिए कि चुनाव आयोग की साठगांठ से बीजेपी वोट चोरी कर रही होती तुम भाई बहन का संसद जाना तो दूर, कांग्रेस का कोई सदस्य नगर निगम से लेकर लोकसभा नहीं पहुँचता। कांग्रेस की नितरोज गिरती साख में गाँधी परिवार जिम्मेदार है कोई और नहीं। चुनाव आयोग को लिखित में देने का मतलब राहुल अच्छी तरह जानते है कि आरोप झूठे निकलने पर कोई जेल जाने से नहीं रोक सकता।
राहुल तो क्या कांग्रेस भी अच्छी तरह जानती है कि जाँच में आरोप गलत मिलते ही धरने/प्रदर्शन भी राहुल को 7 सालों के लिए जेल जाने से कोई नहीं रोक सकता और 7 साल का मतलब जिन्दगी में कभी चुनाव नहीं लड़ सकते। इसलिए INDI गठबंधन को राहुल या कांग्रेस की वकालत करने की बजाए जितनी जल्दी हो अपने अस्तित्व की खातिर कांग्रेस से दूरी बनाए क्योकि कांग्रेस डूबेगी तो तुम्हे भी डूबने से कोई बचा नहीं पाएगा।
वैसे तो कांग्रेस के जनाधार का उसी दिन से गिरना शुरू हो चुका था जब सोनिया गाँधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने के लिए परिवार के गुलामों ने तत्कालीन दलित अध्यक्ष सीताराम केसरी को दफ्तर से बाहर फेंक दिया था और उनकी धोती भी खुल गयी थी। और कांग्रेस को तेजी से नीचे गिराने में राहुल और अब प्रियंका वाड्रा लगी हुई है। देश जानना चाहता है कि आखिर राहुल की विदेश यात्राओं का क्या रहस्य है? विदेशों में जाकर किन देश विरोधियों के साथ मुलाकातें होती है? चीन के साथ क्या MoU किया है? इन गंभीर मुद्दों पर कांग्रेस गुलाम मीडिया भी क्यों खामोश है?
राहुल गाँधी ने 5 नवंबर 2025 को दावा किया कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर पोस्टल बैलट में कांग्रेस आगे थी, वहाँ वोट चोरी हुई क्योंकि फाइनल रिजल्ट में हार गए। उनका कहना था कि पोस्टल बैलट काउंटिंग में कांग्रेस कुछ सीटों पर बीजेपी से आगे थी, लेकिन ईवीएम वोटिंग के बाद बीजेपी जीत गई। अगर उनका दावा सही होता तो हर सीट पर यही होता। लेकिन सच इससे बहुत दूर है।
ऑपइंडिया ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के सभी सीटों के फाइनल रिजल्ट चेक किए और पाया कि चार सीटें ऐसी थीं जहाँ बीजेपी पोस्टल बैलट में आगे थी लेकिन फाइनल में कॉन्ग्रेस से हार गई।
चुनाव आयोग द्वारा जारी डाटा का स्क्रीनशॉटचुनाव आयोग की वेबसाइट के डेटा के मुताबिक जुलाना, हाथिन, नाँगल चौधरी और आदमपुर में बीजेपी पोस्टल बैलट में कांग्रेस से आगे थी। लेकिन अंत में पार्टी कांग्रेस से हार गई।
राहुल गाँधी के दावों पर विचार करते हुए सिर्फ वो उदाहरण चुनना जहाँ कांग्रेस पोस्टल बैलट में आगे थी और जहाँ पीछे थी उन्हें नजरअंदाज करना… जैसा राहुल गाँधी ने किया। यह दिखाता है कि पोस्टल बैलट फाइनल रिजल्ट एनालिसिस के लिए भरोसेमंद आधार नहीं हैं।
फाइनल रिजल्ट एनालिसिस के लिए भरोसेमंद आधार नहीं पोस्टल बैलट
अब जब राहुल गाँधी के दावे गलत साबित हो गए हैं, तो समझना जरूरी है कि पोस्टल बैलट को फाइनल रिजल्ट एनालिसिस का आधार क्यों नहीं बनाया जा सकता। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “दूसरी हैरान करने वाली बात यह थी कि हरियाणा में पहली बार पोस्टल वोट रिजल्ट से अलग थे। पोस्टल बैलट में कांग्रेस को 73 सीटें मिलीं जबकि बीजेपी को 17 सीटें।”
सबसे पहले ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में पोस्टल बैलट की संख्या कुल वोटों की तुलना में बहुत कम होती है। ज्यादातर मामलों में यह 1% से भी कम होती है। इसलिए कुल रिजल्ट पर इनका कोई खास असर नहीं पड़ता जब तक जीत-हार का अंतर बहुत कम न हो।
उदाहरण के लिए गुहला सीट पर कुल पोस्टल बैलट 589 थे, जबकि ईवीएम वोट 1,33,287 थे, यानी पोस्टल बैलट सिर्फ 0.44% थे। कांग्रेस के देवेंद्र हंस ने 22,880 वोटों के अंतर से बीजेपी के कुलवंत राम बाजीगर को हराया। ऐसे सीटों पर पोस्टल बैलट का बड़ा रोल बताना बेवकूफी होगी।
उदाहरण के लिए गुहला सीट पर कुल पोस्टल बैलट 589 थे, जबकि ईवीएम वोट 1,33,287 थे, यानी पोस्टल बैलट सिर्फ 0.44% थे। कांग्रेस के देवेंद्र हंस ने 22,880 वोटों के अंतर से बीजेपी के कुलवंत राम बाजीगर को हराया। ऐसे सीटों पर पोस्टल बैलट का बड़ा रोल बताना बेवकूफी होगी।
तीसरे पोस्टल बैलट पहले गिने जाते हैं, लेकिन ये ग्राउंड लेवल वोटर टर्नआउट पैटर्न या बूथों पर देर से होने वाले उछाल को नहीं दिखाते जहाँ लोकल फैक्टर बहुत असर डालते हैं।
‘वोट चोरी’ की कहानी फर्जी
इन उदाहरणों और पोस्टल बैलट की प्रकृति को नजरअंदाज न करें। जिसमें राहुल गाँधी की ‘वोट चोरी’ कहानी सिर्फ कहानी ही लगेगी, न कि फैक्ट बेस्ड। वही डेटा पॉइंट्स जिनका वे जिक्र करते हैं, आसानी से उल्टा साबित करने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जिससे उनका तर्क आँकड़ों के आधार पर भी खोखला हो जाता है।

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