अमेरिका : Deep State का खेल शुरू: ‘हर इंडियन को US से भगाओ’: US में भारतीयों-हिंदुओं के खिलाफ आग उगलने वाले मैट फोर्नी से मीडिया हाउस ने जोड़े हाथ

                                                      मैट फोर्नी (फोटो साभार - अमेजन)
क्या अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत के खिलाफ टैरिफ-टैरिफ का खेल अमेरिका पर भारी पड़ने जा रहा है? ट्रम्प और इनके सलाहकारों पर इस मुद्दे पर आत्मचिंतन की जरुरत है। ये खेल अमेरिका के हित में बहुत नुकसान देने वाला है। जिसके अंजाम सामने आने शुरू हो चुके हैं। ट्रम्प की टैरिफ का ही अंजाम है कि "खोजा समुदाय" का मुसलमान न्यूयॉर्क का मेयर बन जाता है। वह "खोजा समुदाय" जिसे मुसलमान मुसलमान नहीं समझता। ये अमेरिका को बहुत भारी पड़ने वाला है। ट्रम्प ही नहीं अमेरिकन सरकार को गंभीरता से लेना होगा। जब आमिर लोग अमेरिका छोड़ जाएंगे तब अमेरिका का क्या होगा? दूसरे, 
मैट फोर्नी भारतीयों को अमेरिका से भगाने का जहर फैला कर उस अमेरिका को अस्थिर करने का दूसरा प्रयास है। जिस दिन अमेरिका अस्थिर होना शुरू हो गया इसकी आर्थिक स्थिति पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, जिस वजह से डॉलर के नीचे गिरने से दुनियां से इसका दबदबा भी ख़त्म हो जाएगा। 

ट्रम्प को शायद नहीं मालूम कि Deep State इन मुद्दों को हवा देकर उन्हें ही नहीं अमेरिका के ही लिए जहर फैला रहा है। ट्रम्प को नहीं मालूम कि टैरिफ-टैरिफ के खेल को ही हथियार बनाया जा रहा है।         

अमेरिका में हिंदू और भारतीयों के प्रति जहर उगलने वाले मैट फोर्नी ने बुधवार (5 नवंबर 2025) को सोशल मीडिया पर दावा किया था कि वह टेक्सास स्थित मीडिया आउटलेट ‘द ब्लेज़’ में बतौर रिपोर्टर शामिल हो रहा है। लेकिन (7 नवंबर 2025) को उसी फोर्नी ने खुद बताया कि उसे ‘द ब्लेज़’ ने निकाल दिया है।

यह वही व्यक्ति है जिसने बार-बार भारतीयों और हिंदू संस्कृति के खिलाफ नफरत भरी टिप्पणियाँ की हैं, कभी दिवाली का मजाक उड़ाया, तो कभी हर भारतीय को देश से ‘निर्वासित’ करने की माँग की। ऐसे में ‘द ब्लेज़’ द्वारा उसे मौका देना और फिर तुरंत हटाना, इस बात का प्रमाण है कि उसकी जहरीली विचारधारा न सिर्फ समाज के लिए, बल्कि मीडिया संस्थानों की साख के लिए भी खतरा बन चुकी है। 

कौन है मैट फोर्नी और उसे भारतीयों से क्या है दिक्कत

मैट फोर्नी खुद को लेखक और पत्रकार कहता है, लेकिन उसकी लिखावट और बयानबाजी किसी पत्रकारिता से नहीं, बल्कि नफरत से भरी विचारधारा से निकलती है। उसका अतीत विवादों से भरा है, महिलाओं को लेकर अपमानजनक लेख लिखना, अश्लील किताबें प्रकाशित करना और अब भारतीयों के खिलाफ नस्लभेदी बातें फैलाना, ये उसका ‘कॅरियर प्रोफाइल’ है।
पिछले कुछ महीनों में उसने सोशल मीडिया पर लगातार भारत, हिंदुओं और भारतीय प्रवासियों को निशाना बनाया। उसने न सिर्फ भारत की आलोचना की, बल्कि भारतीयों के प्रति गहरी नफरत जाहिर करते हुए ट्वीट किया “DEI means Deport every Indian” यानी विविधता (Diversity), समानता (Equity) और समावेश (Inclusion) जैसे सकारात्मक शब्दों को भी उसने नफरत के हथियार में बदल दिया।
ऐसा लगता है कि भारत के विकास, तकनीकी बढ़त और वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रभाव से मैट फोर्नी जैसे लोगों की नींद उड़ गई है। पश्चिम में बैठे कुछ कट्टरपंथी अब यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे कि भारतवासी सिर्फ आउटसोर्सिंग मजदूर नहीं, बल्कि विश्व राजनीति और तकनीक के नेतृत्वकर्ता बन रहे हैं।

द ब्लेज ने नफरत को पत्रकारिता में बदल दिया

असली सवाल ये है की अगर कोई व्यक्ति खुलेआम भारतीयों के निर्वासन की बात करता है, तो कोई मीडिया संगठन उसे ‘भारतीय मामलों का रिपोर्टर’ क्यों बनाता है? यही हुआ द ब्लेज के साथ, जो खुद को एक रूढ़िवादी मीडिया संगठन बताता है।
फोर्नी ने हाल ही में दावा किया कि उसे द ब्लेज में भारत से संबंधित रिपोर्टिंग का काम मिला है। लेकिन विडंबना यह रही कि जैसे ही उसने झूठ फैलाना शुरू किया भारत ने पाकिस्तान पर हमला किया जैसे फेक ट्वीट किए, उसे तुरंत ही Community Notes ने झूठा करार दे दिया। यानी जिसे भारतीय मुद्दों की समझ सिखानी थी, वह खुद बुनियादी तथ्यों से अनजान निकला।
इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि पश्चिमी मीडिया अपने पत्रकारों की भर्ती में किस नैतिक स्तर तक गिर चुका है। जो व्यक्ति भारत के लोगों से नफरत करता है, वह भारतीय समाज पर रिपोर्टिंग कैसे कर सकता है? क्या पश्चिमी मीडिया अब ‘हिंदूफोबिया’ को भी ‘स्वतंत्र अभिव्यक्ति’ के नाम पर बेचने लगा है?

हिंदू विरोध की नई परंपरा: मजाक, झूठ और नस्लवाद

मैट फोर्नी के कई पुराने ट्वीट देखें तो पता चलता है कि उसका एजेंडा सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक नफरत से भरा है। उसने हिंदुओं के त्योहारों, खासकर दीवाली का मजाक उड़ाया, यहाँ तक कहा कि भारतीयों के कारण अमेरिका की IT कंपनियों का स्तर गिर गया है।
उसने कई बार यह भी इशारा किया कि भारतीय अमेरिकी नागरिक अमेरिकी नौकरियाँ छीन रहे हैं, जो वही पुरानी नस्लवादी सोच है जो कभी अश्वेतों और अब एशियाई लोगों पर थोप दी जाती है। यानी फोर्नी के लिए भारतीय सिर्फ एक समस्या हैं, चाहे वे डॉक्टर हों, इंजीनियर हों या शिक्षक।

पश्चिमी मीडिया का दोहरा चेहरा

पश्चिमी मीडिया अक्सर भारत को असहिष्णु देश बताने में सबसे आगे रहता है। लेकिन यही मीडिया तब खामोश हो जाता है जब उनके अपने पत्रकार हिंदुओं और भारतीयों के खिलाफ खुलेआम नफरत फैलाते हैं।
भारत में अगर कोई छोटा बयान भी किसी समुदाय के खिलाफ चला जाए, तो उसे तुरंत ‘hate speech’ बता दिया जाता है। मगर जब अमेरिका में कोई पत्रकार पूरे समुदाय के निर्वासन की बात करता है, तो वही बात ‘freedom of expression’ कहलाती है। यही है पश्चिमी उदारवाद का असली चेहरा दोहरे मानदंडों से भरा हुआ।

‘स्वतंत्र भाषण’ के नाम पर नफरत की आजादी

फोर्नी जैसे लोग ‘free speech’ का झंडा उठाते हैं, लेकिन इस झंडे के नीचे वे सिर्फ एक धर्म और एक समुदाय हिंदुओं पर वार करते हैं। वे जानते हैं कि हिंदू समाज शांतिप्रिय है, जवाब में हिंसा नहीं करेगा, इसलिए ये लोग हिंदू धर्म को निशाना बनाकर अपनी साहसिक पत्रकारिता का तमगा कमाते हैं।
लेकिन अगर यही बातें किसी और धर्म के खिलाफ कही जातीं, तो शायद फोर्नी अब तक अमेरिकी न्याय विभाग की जाँच का सामना कर रहा होता। यह दिखाता है कि अमेरिका और यूरोप में हिंदूफोबिया न केवल सामान्य है, बल्कि कई जगहों पर ‘acceptable hate’ बन चुका है।

भारतीयों के विकास से बौखलाहट

पिछले दशक में भारत का जो वैश्विक प्रभाव बढ़ा है, तकनीकी आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर उसने कई पश्चिमी बुद्धिजीवियों की नींद उड़ा दी है। अमेरिका में भारतीय मूल के सीईओ, प्रोफेसर, वैज्ञानिक और राजनयिक अब शक्ति के केंद्रों में हैं।
फोर्नी जैसे लोग इस उभार को खतरा मानते हैं, क्योंकि यह उनकी पुरानी धारणाओं को तोड़ता है कि एशियाई सिर्फ आदेश पालन करने वाले लोग हैं। इसलिए वे भारत के खिलाफ डर फैलाने की कोशिश करते हैं कभी आईटी आउटसोर्सिंग का डर, कभी इमिग्रेशन का डर, कभी हिंदू राष्ट्रवाद का डर। असल में यह डर भारत की ताकत का प्रमाण है, क्योंकि जो देश कमजोर होता है, उसके खिलाफ कोई प्रचार नहीं करता।

सोशल मीडिया से सड़कों तक नफरत का असर

फोर्नी जैसे लोगों की नफरत सिर्फ ट्वीट तक सीमित नहीं रहती। अमेरिका और कनाडा में कई बार भारतीय मंदिरों पर हमले हुए, हिंदू विद्यार्थियों को कैंपस में अपमानित किया गया और ब्राह्मण कहकर निशाना बनाया गया।
यह माहौल सोशल मीडिया से बनता है, जब एक पत्रकार भारत के खिलाफ खुलेआम गालियाँ देता है, तो आम लोग उसी नफरत को सही ठहराने लगते हैं। इसलिए यह केवल ऑनलाइन ट्रोलिंग नहीं, बल्कि हिंसा की वैचारिक तैयारी है।
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क्या यही है भारत पर रिपोर्टिंग?

फोर्नी जैसे व्यक्ति को भारत पर रिपोर्टिंग का जिम्मा देना वैसा ही है जैसे किसी नस्लभेदी को अफ्रीकी देशों पर रिपोर्टिंग का काम सौंपना। यह पश्चिमी मीडिया के नैतिक पतन का प्रतीक है।
जो व्यक्ति कहता है कि हर भारतीय को देश से बाहर निकालो, वह भारत के समाज, संस्कृति और राजनीति को निष्पक्ष नजर से कैसे देख सकता है? उसकी कलम पहले से ही जहर में डूबी है।

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