आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
आजाद भारत के अधिकांश समय सत्ता पर कांग्रेस पार्टी का शासन रहा है और उस पर गांधी परिवार की प्रमुखता। लेकिन गांधी परिवार द्वारा जनक की खूब अवहेलना की गई। फिरोज गांधी के नाम पर शायद ही कोई सड़क, कोई योजना कोई संग्रहालय आपको दिखाई दे जाए! जब कभी संसद में बोलने के खड़े होते थे, ससुर जवाहरलाल के पसीने आने लगते थे। सत्तारूढ़ पक्ष के होते हुए, एक सशक्त विपक्ष की तरह बोलते थे।
जबकि समय परिवर्तन ने सबकुछ ही बदल दिया। फिरोज जिसने कभी घोटाले बर्दाश्त नहीं किए, उन्ही फिरोज का परिवार आज घोटालों में लिप्त है। शायद यही कारण है कि जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव और संजय गाँधी तक के जन्म एवं मृत्यु दिवस पर उनका गुणगान किया जाता है, लेकिन फिरोज गाँधी यानि सोनिया गाँधी के ससुर और राहुल-प्रियंका के दादा को स्मरण करने का किसी को होश नहीं। बहु और पौत्रों पर लगते भ्रष्टाचार के आरोपों को सुन, रोती होगी उनकी भी आत्मा।
अगर आप गूगल पर 'राष्ट्रीय दामाद' सर्च करेंगे तो रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ी जानकारियां आपके सामने आ जाएंगी। रॉबर्ट वाड्रा सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति हैं। बाबा रामदेव कभी चुटकी लेते हुए कहा करते थे, 'जिस तरह राष्ट्रीय पशु-पक्षी हैं उसी तरह से राष्ट्रीय दामाद हैं। जिनके पास हजारों करोड़ रुपये की जमीन है।' अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रंजन भट्टाचार्य के बारे में भी कुछ ऐसी ही 'राष्ट्रीय दामाद' वाली बातें प्रचलित थी। अगर कुछ देर के लिए राष्ट्रीय दामाद की थ्योरी पर भरोसा कर लें तो देश का पहला राष्ट्रीय दामाद फिरोज गांधी को कहा जा सकता है। कमजोरों के पक्ष में खड़ी एक ऐसी शख्सियत जो सही का साथ देने के लिए सत्ता के खिलाफ भी खड़ा हो जाता था। आजाद भारत के पहले 'व्हिसिल ब्लोवर'
इंदिरा गांधी के पति तथा राजीव-संजय गांधी के पिता फिरोज गांधी के बारे में हमेशा कहा जाता है कि उन्हें वह शोहरत नहीं मिली, जिसके असल हकदार थे। आज राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप के बाद मंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं होते है, लेकिन करीब 60 साल पहले भ्रष्टाचार का एक मामला सामने आने के बाद फिरोज ने अपने ससुर जवाहर लाल नेहरू से बगावत कर दी थी और नतीजा यह हुआ कि नेहरू को अपने सबसे पसंदीदा मंत्री को मंत्रिमंडल से हटाना पड़ा। इस मंत्री का नाम टीटी कृष्णामचारी था और घोटाला था मूंदडा-एलआईसी घोटाला।
उन्होंने एलआईसी घोटाले का खुलासा किया था जिसके बाद नेहरू के करीबी तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णमाचारी श्रीकांत को इस्तीफा देना पड़ा था। फिरोज़ गांधी के इस रवैये से नेहरू खुश नहीं थे। लेकिन फिरोज अपने स्टैंड पर अडिग रहे। उन्होंने 16 दिसंबर 1957 को संसद में एलआईसी घोटाले पर कहा था, 'मिस्टर स्पीकर, आज मैं सदन में शार्प शूटिंग करूंगा। यह कुछ लोगों को चुभ सकता है क्योंकि जब मैं प्रहार करता हूं तो वो बहुत मारक होता है और उम्मीद से कहीं ज्यादा।' इसीलिए फिरोज गांधी को आजाद भारत का पहला व्हिसिल ब्लोवर कहा जा सकता है।
इंडिया के रियल आर्किटेक्ट में से एक थे फिरोज
उन्होंने एलआईसी घोटाले का खुलासा किया था जिसके बाद नेहरू के करीबी तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णमाचारी श्रीकांत को इस्तीफा देना पड़ा था। फिरोज़ गांधी के इस रवैये से नेहरू खुश नहीं थे। लेकिन फिरोज अपने स्टैंड पर अडिग रहे। उन्होंने 16 दिसंबर 1957 को संसद में एलआईसी घोटाले पर कहा था, 'मिस्टर स्पीकर, आज मैं सदन में शार्प शूटिंग करूंगा। यह कुछ लोगों को चुभ सकता है क्योंकि जब मैं प्रहार करता हूं तो वो बहुत मारक होता है और उम्मीद से कहीं ज्यादा।' इसीलिए फिरोज गांधी को आजाद भारत का पहला व्हिसिल ब्लोवर कहा जा सकता है।
इंडिया के रियल आर्किटेक्ट में से एक थे फिरोज
फिरोज गांधी आजादी के बाद के उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने इंडियन इकोनॉमी का रियल आर्किटेक्ट तैयार किया।
फिरोज गांधी को देश में बहुत सी संस्थाओं के नेशनलाइजेशन का श्रेय जाता है।
उन्होंने एलआईसी के नेशनलाइजेशन की शुरुआत की।
कॉरपोरेट भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले वह शुरुआती लोगों में से एक थे।
खांटी समाजवादी और विद्रोही थे फिरोज
फिरोज गांधी भारतीय राजनीति के खांटी समाजवादी नेताओं में से एक रहे।
आजादी के बाद कई कंपनियों के राष्ट्रीयकरण में उन्होंने बड़ी भूमिका अदा की।
हालांकि वह विद्रोही थे। जब भी भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने आया वह अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े हो गए।
उनके सामने नेहरू को भी झुकना पड़ा और टीटी कृष्णामचारी जैसे अपने सबसे भरोसेमंद मंत्री को पद से हटाना पड़ा।
1.2 करोड़ रुपए का हुआ था घोटाला
मूंदड़ा घोटाले को आजाद भारत का पहला बड़ा घोटाला माना जाता है। यह 1956 के आसपास सामने आया था।
दरअसल LIC ने कोलकाता के कारोबारी हरिदास मुंदड़ा की 1 नॉन परफॉर्मिंग कंपनी के एक करोड़ 26 लाख रुपए के शेयर खरीद लिए थे।
बाद में इसके चलते LIC को करीब 37 लाख रुपए का घाटा हुआ, जो उस वक्त बेहद बड़ी रकम थी।
यही शेयरों की बिक्री में भी अनियमितता बरती गई। शेयर खरीदते समय दूसरी किसी कंपनी को मौका भी नहीं दिया गया।
एलआईसी ने मुंधड़ा कंपनी से बातचीत की और उसके शेयर खरीद लिए। माना गया कि यह हाईलेवल सेटिंग के जरिए किया गया।
फिरोज की बगावत ने नेहरू को किया मजबूर
मामला मीडिया में आया। फिरोज गांधी ने लोकसभा में जोरदार ढंग से उठाया।
इस घोटाले पर 16 दिसंबर 1957 को लोकसभा में दिया गया फिरोजगांधी का भाषणा बेहद यादगार है।
इस मामले को लेकर दो बार जांच भी हुई। तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी को मंत्रिमंडल से निकालने का दबाव बढ़ने लगा।
फिरोज संसद के भीतर और बाहर लगातार इस मसले को लेकर सरकार पर हमला बोल रहे थे।
बाद में टीटी कृष्णामंचारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
पारसी परिवार में जन्म और इलाहाबाद में परवरिश
फिरोजगांधी 12 सितंबर 1912 को मुंबई में पैदा हुए थे। उनके पिता इंजीनियर थे।
हालांकि बाद में पिता की मौत के बाद वह अपनी मां के साथ मुंबई से इलाहाबाद चले आए।
यहां फिरोज पढ़ाई के दौरान नेहरू परिवार के संपर्क में आए।
कमला नेहरू की बीमारी के दौरान स्विट्जरलैंड में फिरोज और इंदिरा पास आए।
हालांकि शादी के बाद दोनों के के विचार नहीं मिला और कुछ सालों बाद फिरोज और इंदिरा अलग हो गए।
बनती-बिगड़ती लव स्टोरी
फिरोज उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में एक संपन्न पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके खानदान की नेहरू परिवार से जान पहचान थी। 16 साल के फिरोज को 13 साल की इंदिरा से प्यार हो गया। प्यार को मन में दबाकर रखने से बेहतर उन्होंने जाहिर करना समझा लेकिन इंदिरा ने उसे स्वीकार नहीं किया। इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान इंदिरा और फिरोज का प्यार परवान चढ़ा और फिर दोनों ने साथ रहने का फैसला कर लिया। लेकिन जवाहर लाल नेहरू इस रिश्ते के पक्ष में नहीं थे।
महात्मा गांधी ने दिया अपना सरनेम
फिरोज की मौत पर इंदिरा और नेहरू राजीव गांधी के साथ। |
वास्तव में नेहरू परिवार मुस्लिम ही है, जवाहर लाल नेहरू के दादा गंगा धर कोई और नहीं मुग़ल युग में दिल्ली के कोतवाल ग्यासुद्दीन थे। ब्रिटिश पुलिस से अपनी जान बचाने हिन्दू नाम धारण किया था।
अवलोकन करें:-
48 साल की उम्र में निधन
फिरोज गांधी काम की धुन में ऐसे लगते थे कि स्वास्थ्य की चिंता ही रहती। उन्होंने तीन मूर्ति भवन छोड़कर सरकारी सांसद आवास में रहना शुरू कर दिया था। इंदिरा गांधी की नाराजगी भी उनको चिंतित करती थी। दो हार्ट अटैक उन्हें आ चुके थे और खान-पान में लापरवाही के चलते उन्हें तीसरा अटैक भी पड़ा। उन्हें आनन-फानन अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन डॉक्टर भी बचा नहीं सके। 8 सितंबर 1960 को महज 48 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।
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