21से 29 दिसंबर सिख इतिहास : हिन्दुओं और सिखों को गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानी नहीं भूलनी चाहिए ; क्रिसमस नहीं बलिदान दिवस मनाना चाहिए

आज जब कुछ भटके हुए सिख मलेछो के साथ मिलकर कभी कनाडा से कभी अमेरिका से और कभी पाकिस्तान से भारत के खिलाफ प्रपंच रचते हैं तो दिल में दुख भरी टीस उठती है.

20 दिसम्बर की वो रात गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने परिवार और 400 अन्य सिंखो के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया था और निकल पड़े.....उस रात भयंकर सर्दी थी और बारिश हो रही थी.... सेना 25 कि.मी.दूर सरसा नदी के किनारे पहूंची ही थी कि मुगलों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया, बारिश के कारण नदी में उफान था कई सिख शहीद हो गए,कुछ नदी में बह गये।*
*इस अफरा तफरी में परिवार बिछड़ गया माता गूजर कौर और दो छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गये ... दोनों बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे।*
*उस रात गुरू जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया अब उनके साथ दोनों बड़े साहिबजादे और 20 सिख यौद्धा थे। शाम तक अपने चौधरी रुपचंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्भाल लिया अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास मे*
*2nd Battle of chamkaur sahib के नाम से जाना जाता है।*
*21से 29 दिसंबर सिख इतिहास में ही नहीं देश के इतिहास में बहुत बड़ी शहादत का दिन है।*
*28 दिसम्बर गुरु गोविंद सिंह जी 40 सिख फौजों के साथ चमकौर की गढ़ी एक कच्चे किले में 10 लाख मुगल सैनिकों से मुकाबला करते हैं एक-एक सिख दस लाख मुगलिया फौज पर भारी पड़ता है गुरु गोविंद सिंह जी के बड़े बेटे जिनकी उम्र मात्र 17 वर्ष की है साहेबजादा अजीत सिंह ने मुगल फौजों में भारी तबाही की, सैकड़ों मुगलों को मौत के घाट उतारा लेकिन दस लाख मुगलिया फौजों के सामने साहेबजादा अजीत सिंह शहीदी को प्राप्त करते हैं।*
*छोटे साहिबजादे जिनकी उम्र मात्र 14 वर्ष की है,बड़े भाई की शहादत को देखते हुए पिता गुरु गोविंद सिंह जी से युद्ध के मैदान में जाने की अनुमति मांगी एक पिता ने अपने हाथों से पुत्र को सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा लाखों मुगलों पर भारी साहेबजादा जुझार सिंह ने युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये और लड़ते -लड़ते वीर गति को प्राप्त हूए...*
*अपने दोनों लाल की शहादत पर पिता गुरु गोविंद सिंह जी के यह वाक्य चरितार्थ हूए...*
*मेरा मुझमें कुछ नहीं,जो कुछ है सो तेरा*
*तेरा तुझको सौंप के, क्या लागे मेरा*
*गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनो छोटे बेटे साहिबजादा जोरावर सिंह साहिबजादा फतेह सिंह जिनकी उम्र 5 वर्ष और 7वर्ष की थी अपनी दादी माता गूजर कौर जी के साथ युद्ध के दौरान पिता गुरु गोविंद सिंह जी से बिछड़ जाते हैं रसोईया "गंगू ब्राह्मण" की नमक हरामी की वजह से ईनाम के लालच में सरहिंद के नवाब वजीर खान के पास बंदी बना लिये जाते हैं, दोनों छोटे -छोटे मासूम बच्चों को इस्लाम कबूल करवाने तरह -तरह की तकलीफ़े दी जाती है, माता गूजर कौर और छोटे -छोटे माता जी के पोतों को एक किले के ठंडे बुर्ज में कैद कर रखा जाता है, दिसम्बर का महिना खून जमा देने वाली ठंड उस पर किले का वह वह ठंडा बुर्ज जहां सामान्य दिनों में कपकपा देने वाली ठंड पड़ती है दादी अपने पोतों को अपनी ममता की छांव में सुलाती है।*
*27 दिसंबर का वह दिन वजीर खान के दरबार में दोनों छोटे साहिबजादो को हाजिर करने का फरमान जारी होता है। दादी अपने पोतों को सजा कर माथे में कलंगी लगाकर भेजती है।*
*कचहरी में घुससते ही नवाब के समक्ष शीश झुकाना है। जो सिपाही साथ जा रहे थे वे पहले सिर झुका कर खिड़की के द्वारा अंदर दाखिल हुए। उनके पीछे साहिबजादे थे। उन्होंने पहले खिड़की में पैर आगे किये और फिर सिर निकाला।*
*थानेदार ने बच्चों को समझाया कि वे नवाब के दरबार में झुक कर सलाम करे। किन्तु बच्चों ने इसके विपरीत उत्तर दिया और कहा- यह सिर,,,,हमने,,,,,अपने ,,, पिता,,, गुरु,,, गोविंद सिंह के हवाले किया हुआ है, इसलिए इसे कहीं और झूकानें का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।*
*कचहरी में नवाब वजीर खान के साथ और बड़े-बड़े दरबारी बैठे हुए थे। दरबार में प्रवेश करते ही जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह दोनों भाईयों ने गर्ज कर जयकारा लगाया:-*
*वाहे गुरु जी,,,का,,, खालसा, वाहे गुरु जी,,,की,,,फतेह ।*
*नवाब तथा दरबारी, बच्चों का साहस देखकर आश्चर्य में पड़ गये। मुगलिया फरमान बच्चों को सुनाया गया मुसलमान बनना स्वीकार नहीं करोगे तो कष्ट देकर मार दिये जाओगे और तुम्हारे शरीर के टुकड़े सड़कों पर लटका दिये जाएंगे, ताकि भविष्य में कोई सिक्ख बनने का साहस न कर सके। इस्लाम कबूल करने से तो हमें सिक्खी जान से अधिक प्यारी है। दुनिया का कोई भी लालच वह भय हमें सिक्खी से नहीं गिरा सकता। हम पिता गुरु गोविंद सिंह के शेर बच्चे हैं तथा शेरों की भांति किसी से नहीं डरते। हम इस्लाम धर्म कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। तुमने जो करना हो, कर लेना।*
*हमारे दादा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने शहीद होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु विचलित नहीं हुए।*
*बच्चों की बातें सुनकर नवाब वजीर खान तिलमिला गया और छोटे -छोटे बच्चों को नींव में चिनवाने का आदेश दिया, दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व व बाशल बेग ने जोरावर सिंह व फतेह सिंह को किले की नींव में खड़ा करके उसके आसपास दीवार चिनवाना प्रारंभ कर दी।*
*बनते-बनते दीवार जब फतेह सिंह के सिर के निकट आ गई तो जोरावर सिंह दुखी ! दिखने लगे। काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गये है और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जाएंगे। उनसे दुखी होने का कारण पूछा गया। तो जोरावर सिंह बोले मृत्यु भय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूं कि मैं बड़ा हूं,फतेह सिंह छोटा है। दुनिया में मैं पहले आया था। इसलिए यहां से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है। फतेह सिंह को धर्म पर बलिदान होने का सुअवसर मुझसे पहले मिल रहा है। छोटे भाई फतेह सिंह ने गुरुवाणी की पंक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को सांत्वना दी।*
*चिंता ताकि कीजिये जो अनहोनी होय,*
*इह मारगि‌ संसार में नानक थिर नहि कोय!!*
*दोनों छोटे साहिबजादे धर्म की रक्षा के लिए शहीद हो गये। खबर जब माता गुजर कौर जी तक पहूंची तो उन्होंने भी अपने शरीर का त्याग कर दिया चारों साहिबजादो की शहादत के बाद भी गुरु गोविंद सिंह जी विचलित नहीं हुए उनके मुख से यही वाक्य निकला:-*
*इन पुत्रन के शीश‌ पर वार दिये सूत चार...!*
*चार मुए तो क्या हुआ जीवत कई हजार !!*
*21से 29 दिसंबर यह देश के इतिहास में सबसे बड़ा शहीदी दिवस है। परन्तु अफसोस यह देश ईद,बकरीद,मोहर्रम की तारीखें चांद निकलने पर अवकाश घोषित करने का इंतजार करता रहता है क्रिसमस की तैयारीयों में पुरा देश हफ्तों सांताक्लोज बना फिरता है हम अपनी गुलामी को जो बरसो-बरस मुगल और अंग्रेजी हुकूमत में जकड़े रहे और जिस गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी चारों बेटे साहिबजादा # अजित सिंह #जुझार सिंह # जोरावर सिंह # फतेह सिंह जी#माता गुजर कौर जी धर्म की रक्षा की खातिर न्यौछावर कर दिया। उन्हें याद करने का हमारे पास बिल्कुल भी समय नहीं।*
*ये भारतवर्ष के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण व यादगार घटना है।*
*कृपया इसका जिक्र अपने बच्चों से जरूर करें।*
*वाहेगुरु जी का खालसा*
*वाहेगुरु जी की फतेह
साभार :गंगापुत्र भीष्म पितामह की वॉल से 

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