उत्तर प्रदेश : संभल में जहाँ मिली 3 मंजिला बावड़ी, वह कभी हिंदू बहुल इलाका था: रानी की पोती आई सामने, बताया- हमारा बचपन यहीं बीता, बदायूँ के अनेजा ने प्लॉट काट मुस्लिमों को बेच दिए

राजकुमारी शिप्रा और रानी की बावड़ी (साभार: भास्कर)
उत्तर प्रदेश स्थित संभल जिले के चंदौसी क्षेत्र में राजस्व विभाग ने एक प्राचीन बावड़ी को भी खोज निकाला है। इसे ‘रानी की बावड़ी’ कहा जा रहा है। इसकी साफ-सफाई का काम जोर-शोर से जारी है। चंदौसी नगरपालिका की सफाई एवं खाद्य निरीक्षक प्रियंका सिंह का कहना है कि यहाँ खुदाई मैन्युअली की जा रही है। 40-50 मजदूर काम कर रहे हैं।

प्रियंका सिंह का कहना है कि ये बावड़ी है और इसकी खुदाई में किसी प्रकार की हानि ना हो इसलिए मशीनों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। खुदाई का ये काम चंदौसी के लक्ष्मणगंज इलाके में हो रहा है। साल 1857 तक ये क्षेत्र हिन्दू बहुल हुआ करता था। हालाँकि, हिंदुओं के पलायन के बाद इस बावड़ी पर कब्जा कर लिया गया और उसे भर दिया गया।

दरअसल, इस जगह की खुदाई की माँग को लेकर संभल के जिलाधिकारी को एक प्रार्थना पत्र मिला था। प्रार्थना पत्र में लक्ष्मणगंज के अंदर बिलारी की रानी की प्रचीन बावड़ी होने का दावा किया गया था। इसी शिकायत का संज्ञान लेकर राजस्व विभाग की टीम लक्ष्मणगंज पहुँची थी। बस्ती के बीच में एक जगह चिन्हित कर के खुदाई शुरू हुई। कुछ ही देर बाद जमीन के नीचे प्राचीन इमारतें मिलनी शुरू हो गईं। 

रामपुर से सटे सहसपुर-बिलारी राजपरिवार द्वारा इसे बनवाया गया था। रानी की बावड़ी की खुदाई के बाद से यहाँ तीन मंजिला बावड़ी मिली है। वहीं, यहाँ रानी रहीं सुरेंद्र बाला की पोती राजकुमारी शिप्रा बाला ने बताया कि यह इलाका पहले हिंदू बहुल था। बाद में इस राजपरिवार के कई हिस्सेदार होने के बाद यहाँ की जमीनों को बदायूँ के अनेजा को बेच दिया। अनेजा ने इसकी प्लॉटिंग करके मुस्लिमों के बेच दिया।

राजकुमारी शिप्रा ने बताया, “यह दादी सुरेंद्र बाला और बाबा जगदीश कुमार की संपत्ति है। उनके बेटे लल्ला बाबू विष्णु कुमार की पाँच बेटियों में मैं सबसे छोटी हूँ। यहाँ हमारा पुश्तैनी फार्म हाउस था। फार्म हाउस में गन्ने की खेती हुआ करती थी। हम लोगों के लिए यहाँ एक कुआँ भी था। हम लोग यहाँ मम्मी-पापा के साथ पिकनिक मनाते थे। हमारा बचपन यहीं बीता है। यहाँ पर कोठी से जुड़ा हुआ लक्ष्मणगंज है।”

शिप्रा बाला का कहना है कि कोई भाई नहीं था। बकौल राजकुमारी, “अकेला आदमी अपनी संपत्ति पर ध्यान नहीं दे पाता है। इसके कारण लोग उसकी जमीन हथियाना शुरू कर देते हैं।” यही हाल परिवार से जुड़ी जमीनों का भी यही हुआ। ये मामला सहसपुर राजपरिवार से जुड़ा हुआ है। 1857 के सिपाही विद्रोह के समय सहसपुर की रानी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में इसे छावनी के तौर पर इस्तेमाल करती थीं।

स्थानीय लोगों के अनुसार, यह बावड़ी बिलारी के राजा के नाना (सहसपुर के राजा) के समय की है। इसमें एक कूप और 4 कमरे हैं। बावड़ी के अंदर का दृश्य मंदिर जैसा दिखाई देता है। इसके अंदर एक सुरंग भी है। लगभग 150 साल पुरानी इस बावड़ी का प्रयोग पानी जमा करने और सैनिकों के आराम करने के लिए किया जाता था। इसके सिर्फ 150 मीटर दूर इलाके का सबसे प्रसिद्ध क्षेमनाथ तीर्थ मंदिर भी है।

यह बावड़ी करीब 10-12 मीटर लंबी और 28 फीट गहरी बताई जा रही है। संभल के डीएम राजेंद्र पैंसिया ने बताया कि इस बावड़ी में नीचे के दो मंजिल मार्बल के हैं और सबसे ऊपर का मंजिल ईंटों का बना है। उन्होंने बताया कि यह 400 वर्गमीटर क्षेत्र में फैला है। वर्तमान में 210 वर्गमीटर ही है और बाकी हिस्सों पर कब्जा किया गया है। जिलाधिकारी ने बताया कि जल्द ही उन्हें भी खाली करा लिया जाएगा।

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