पुराणों में भी हिंदू आस्था का महाकुंभ : 1400 साल पहले ह्वेनसांग ने लिखा संगम में स्नान से धुल जाते हैं पाप; अकबर 1567 में प्रयाग आया, आक्रांता तैमूर ने अर्धकुंभ मेले में किया था नरसंहार


नागों के राजा भगवान वासुकी की मदद से समुद्र मंथन के समय निकले ‘अमृत कुंभ’ का महापर्व इस बार प्रयागराज इसी महीने से शुरू होने जा रहा है। प्रयागराज में वैसे तो हर वर्ष एक महीने का माघमेला होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु और साधु-संत आते हैं। पर हर छठे वर्ष अर्धकुंभ और बारहवें वर्ष पर कुंभ में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी की छटा अद्वितीय होती है। प्रयागराज उन चार शहरों में है, जहां हर 12 साल पर कुंभ होता है। कुंभ का संदर्भ वेद-पुराणों में मिलता है। कुंभ का इतिहास सदियों पुराना है। 

चीनी यात्री फाहियान (399 से ई.) वाराणसी आया और गंगा से जुड़े किस्से लिखे। एक अन्य यात्री दुनिया चीनी ह्वेनसांग ने संस्मरण के जरिए को कुंभ से जोड़ा। सम्राट हर्षवर्धन के समय आए ह्वेनसांग ने 16 वर्षों तक देश के विभिन्न हिस्सों में अध्ययन किया। करीब 1400 साल पहले (644 ईस्वी) में वह सम्राट हर्षवर्धन के साथ प्रयाग कुंभ का साक्षी बना। ह्वेनसांग ने अपनी किताब ‘सी-यू-की’ में लिखा- ‘देशभर के शासक धार्मिक पर्व में दान देने प्रयाग आते थे। संगम किनारे स्थित पातालपुरी मंदिर में एक सिक्का दान करना हजार सिक्कों के दान के बराबर पुण्य वाला माना जाता है। प्रयाग में स्नान करने मात्र से ही सारे पाप धुल जाते हैं। 

यूनानी यात्री मेगस्थनीज की ‘इंडिका’ में संगम कुंभ मेले का वर्णन
प्रयागराज में हर वर्ष लगने वाला माघ मेला हो, 6 वर्ष पर अर्धकुंभ या 12 वर्ष पर कुंभ… यहां आने वाले महापर्व की अलौकिकता से अभिभूत हो जाते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व जब कुंभ को लोकप्रिय बनाना शुरू किया, तब कोई नहीं समझ सका था कि अनवरत चलने वाली ऐसी सनातन यात्रा प्रारंभ हो रही है, जो काल खंड में बांधी न जा सकेगी। इसके बाद सदियां बीतती गई और कुंभ का वैभव बढ़ता गया। भारतीय अध्यात्म परंपरा ही नहीं, सदियों पहले से यहां आने वाले विदेशी यात्रियों ने भी अपने संस्मरण में कुंभ को दर्ज किया। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के समय (302 ईसा पूर्व) यूनानी यात्री मेगस्थनीज भारत आया। उसने अपनी किताब ‘इंडिका’ में गंगा किनारे लगने वाले मेले का वर्णन किया है।

अकबर 1567 में प्रयाग आया, तैमूर ने अर्धकुंभ मेले में किया नरसंहार
मुगल बादशाह अकबर 1567 में पहली बार प्रयाग पहुंचा था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह कुंभ और नागा साधुओं से भी परिचित था। अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ में लिखा, ‘यह स्थान प्राचीन काल से पयाग (प्रयाग) कहलाता था। बादशाह के मन में विचार था कि जहां गंगा-यमुना मिलती हैं और भारत के श्रेष्ठ लोग जिसे बहुत पवित्र समझते हैं, वहां दुर्ग बनाया जाए।’ विदेश आक्रांताः इससे पहले सन् 1398 में समरकंद से आए आक्रांता शुजा-उद-दीन तैमूर लंग ने हरिद्वार अर्धकुंभ मेले पर हमला किया। इस दौरान उसने लूटपाट और नरसंहार किया। तैमूर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में इसका जिक्र किया है।

सदियों पहले भी लाखों लोग कुंभ में डुबकी लगाते थे
1400 साल पहले ह्वेनसांग ने प्रयागराज को मूर्तिपूजकों का महान शहर बताया और लिखा कि इस उत्सव में 5 लाख से अधिक लोग शामिल होते हैं।’ दूसरी ओर, महमूद गजनवी के शासनकाल में 1030 ईस्वी के आस-पास अबू रेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल- बिरूनी ने ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी। इसमें उसने वाराहमिहिर के साहित्य के आधार पर समुद्र मंथन और अमृत कुंभ को लेकर हुए देव-दानव संघर्ष का वर्णन किया है।

इसीलिए चार नदी तटों पर हर 12 साल पर होता है कुम्भ
कुंभ का संदर्भ पुराणों में मिलता है। कहते हैं, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर प्रकट हुए, तो देव और दानव खुशी से झूम उठे। होड़ मच गई कि कौन पहले अमृत प्राप्त करेगा। भगवान विष्णु ने अमृत को दानवों से बचाने के लिए देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को संकेत दिया कि वह कुम्भ लेकर चले जाएं। सबकी नजर बचाकर जयंत अमृत कुंभ लेकर देवलोक की ओर उड़ चले, लेकिन दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें देख लिया। देखते ही देखते देव-दानवों में युद्ध शुरू हो गया। अंत में देवता अमृत कुंभ बचाए रखने में तो सफल रहे, लेकिन इस आकाशीय संघर्ष के दौरान देवलोक में 8 और पृथ्वी लोक में 4 स्थानों पर अमृत की बूंदें छलक पड़ीं। पृथ्वी पर अमृत की ये बूंदें प्रयाग और हरिद्वार में प्रवाहमान गंगा नदी, उज्जैन की क्षिप्रा और नासिक की गोदावरी नदी में गिरीं… बस तभी से चारों स्थानों में अमृत कुंभ जागृत करने की परंपरा शुरू हो गई। यह देव-दानव संघर्ष 12 ‘मानवीय वर्ष’ तक चलता रहा। कहते हैं इसीलिए इन नदी तटों पर हर 12 साल पर कुंभ होता है।

महाकुंभ की अनंत-अशेष महिमा अपरंपार

  • 14वीं शताब्दी के प्रमुख संत नृसिंह सरस्वती (1378-1459) ने मराठी में रचित अपनी पुस्तक ‘गुरुचरित्र’ में नासिक में होने वाले कुंभ मेले का विस्तार से वर्णन किया है।
  • त्रिस्थली में प्रयाग प्रकरणमः 16वीं सदी के मध्य में समाज गायन के प्रवर्तक नारायण भट्ट द्वारा रचित ‘त्रिस्थली सेतुः’ में वर्णित ‘अथ प्रयाग प्रकरणम’ में भी कुंभ का विस्तृत वर्णन है।
  • कुंभ का एक लिखित प्रमाण मुगलकालीन गजट खुलासत-उत-तवारीख’ में भी मिलता है। इसे औरंगजेब के शासनकाल (1695) में सुजान राय खत्री ने लिखा था। उन्होंने लिखा कुंभ मेला हजारों वर्षों से हो रहा है।
कुंभ मेले में 50 दिन में 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आएंगे
प्रयागराज का कुंभ मेला धर्म, आस्था और आध्यात्मिकता की त्रिवेणी के साथ-साथ संस्कृतियों, परंपराओं और भाषाओं का एक जीवंत मिश्रण है। यह एक “लघु भारत” को प्रदर्शित करता है, जहां पर करोड़ों धर्मावलंबी बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के एक साथ आते हैं। आस्था-विश्वास का महापर्व महाकुम्भ इस साल 13 जनवरी से प्रयागराज में शुरू हो रहा है। 50 दिन से ज्यादा चलने वाले इस पर्व में देश-दुनिया से करोड़ों लोग स्नान करने आएंगे। मान्यता है कि गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं! महाकुम्भ मेला प्रशासन जिस प्रकार से 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं को समायोजित करेगा, उसे जीवंत देखना, जानना और समझना अपने आप में मैनेजमेंट की पूरी किताब है। कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, जिसमें करोड़ों तीर्थयात्री पवित्र नदियों के संगम तट पर स्नान करते हैं। यह स्नान आध्यात्मिक शुद्धि और नवीनीकरण का प्रतीक है। यह हर 12 साल में चार बार क्रमिक रूप से गंगा पर हरिद्वार में, शिप्रा पर उज्जैन में, गोदावरी पर नासिक और प्रयागराज में, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है।
महाकुंभ मेला 2025: आध्यात्मिकता और नवीनता का एक नया युग
2025 का महाकुंभ मेला प्रयागराज में आध्यात्मिकता, संस्कृति और इतिहास का एक अनूठा मिश्रण होगा। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक, तीर्थयात्री न केवल आध्यात्मिक अनुष्ठानों की एक श्रृंखला में शामिल होंगे, बल्कि एक ऐसे सफ़र पर भी निकलेंगे जो भौतिक, सांस्कृतिक और यहाँ तक कि आध्यात्मिक सीमाओं से परे है। शहर की जीवंत सड़कें, चहल-पहल भरे बाज़ार और स्थानीय व्यंजन इस अनुभव में एक समृद्ध सांस्कृतिक परत जोड़ते हैं। अखाड़ा शिविर एक अतिरिक्त आध्यात्मिक आयाम प्रदान करते हैं, जहां पर साधु और तपस्वी चर्चा, ध्यान और ज्ञान साझा करने के लिए एक साथ आते हैं। ये महाकुंभ मेला 2025 को आस्था, संस्कृति और इतिहास का एक असाधारण उत्सव बनाते हैं, जो सभी उपस्थित लोगों को एक समृद्ध अनुभव प्रदान करता है।
2017 में यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी
यह आयोजन विभिन्न पृष्ठभूमियों से तपस्वियों, साधुओं, कल्पवासियों और साधकों को एक साथ एक स्थान पर लाता है, जो भक्ति, तप और एकता का प्रतीक है। 2017 में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त, कुंभ मेला बहुत अधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। 2025 में प्रयागराज अनुष्ठानों, संस्कृति और खगोल विज्ञान के मेल इस भव्य आयोजन की 13 जनवरी से 26 फरवरी तक फिर से मेजबानी करेगा। इसके महामैनेजमेंट का हर किसी की जीवन में एक बार व्यक्तिगत अनुभव करना चाहिए।
नावों के ट्रैफिक जाम से बचने के लिए यह एक अनोखा प्रयोग
महाकुम्भ में प्रबंधन का इनोवेशन जो सबका ध्यान खींचता है वह है यमुना के पानी पर डिवाइडर ! नावों के ट्रैफिक जाम से बचने के लिए यह एक अनोखा प्रयोग है। संगम पर यह डिवाइडर तैरते हुए क्यूब से बना है, जो बिल्कुल रामायण में सुग्रीव की सेना द्वारा ‘रामसेतु’ बनाते समय जमा पत्थरों की तरह दिखता है। जो तैरते हुए चिपके रहते हैं। भीड़ बढ़ती है तो डिवाइडर लचीला होने से कितना भी खिंच सकता है। यानी डिवाइडर की लंबाई बढ़ने के बाद कोई नाव यमुना के एक बिंदु से निकलती है, तो लंबे चक्कर के बाद वहीं आ जाएगी। इससे नाव मिलने वाले घाटों पर भीड़ का दबाव कम होगा। इस आयोजन में संख्या प्रबंधन महत्वपूर्ण है।
आठ हजार से ज्यादा नाविकों को संकट प्रबंधन की ट्रेनिंग
प्रयागराज महाकुंभ के लिए आठ हजार से ज्यादा नाविकों को संकट प्रबंधन की ट्रेनिंग दी गई है। उनकी नावों को सुरक्षा जांच के बाद खूबसूरती देने के लिए रंग-रोगन किया गया है। मेला प्रशासन ने प्रोफेशनल्स के साथ मिलकर नाविकों को प्रशिक्षित किया कि कैसे शांत मन से और प्रसन्नचित्त के साथ तीर्थयात्रियों से बात करेंगे। इसका उद्देश्य यह है कि देश-दुनिया से यहां आने वाले श्रद्धालु परेशान न हों। दरअसल, बॉडी लैंग्वेज के जरिए मेहमाननवाजी के बिजनेस में मानवीय जुड़ाव की जरूरत बताई। नाविकों को प्रयागराज का ब्रांड एंबेसडर बनने के लिए प्रेरित किया गया, ताकि अगले 12 वर्ष उन्हें इसके लिए याद किया जाए। यह व्यवस्था की गई है कि हर नाव में 10 यात्री सुरक्षा जैकेट पहने होंगे। दोनों सिरों पर 1-1 नाविक होंगे।
इस साल महाकुंभ के लिए मिशन ‘जीरो फायर कॉल’
इस साल महाकुंभ के लिए मिशन ‘जीरो फायर कॉल’ है। इस दौरान प्रयागराज में लोग टेंट, बांस, तिरपाल आदि के शिविरों में रहेंगे। इसलिए फायर ब्रिगेड प्रबंधन भी अहम है। इनके पेशेवर ‘कुम्भ क्षेत्र’ में चौबीसों घंटे काम करते हैं। यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां बिना कॉल किए 120 से अधिक वाहनों के साथ 50 फायर बिग्रेड सदस्यों को चलते हुए देख सकते हैं। फायर ब्रिगेड स्टेशन को आधुनिक बनाने वाले सभी उपकरण यहां हैं। इनमें उन्नत बचाव टेंडर, फायर ब्रिगेड बोट, कहीं भी पहुंचने वाले वाहन हैं। वॉटर जेट कंबल, फायर बाइक, जो भारी भीड़ से आगे जाकर आग में पहला रक्षा कवच बनती हैं। दिलचस्प यह कि सभी पेशेवर कोड वर्ड में बात करेंगे, ताकि भीड़ में दहशत न फैले। उदाहरण के लिए, आग लगने पर, वे किसी भी कीमत पर ‘आग’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
महज 4 महीने में बेहतरीन सुविधाओं वाला शहर बसा दिया
महाकुंभ के विशाल आयोजन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह मुस्तैद है। सीएम योगी तो कुंभ की सारी व्यवस्थाओं पर फोकस कर ही रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पिछले माह प्रयागराज जाकर आए हैं। ताकि कुंभ के इंतजाम पूरी तरह चाक-चौबंद हो जाएं। उत्तर प्रदेश सरकार ने सारी चुनौतियों से पार पाकर महज 4 महीने में बेहतरीन सुविधाओं वाला शहर बसा दिया है। इन चार महीने में 300 किमी लंबाई वाली सड़क बनाई गई हैं। एक किमी लंबाई के 30 फ्लोटिंग पुल भी बांध दिए हैं। समय सीमा को देखते हुए सभी लोग 15-15 घंटे तक काम कर रहे हैं। छुट्टी, ओवरटाइम, टीए-डीए की उन्हें चिंता नहीं है। उन्हें लगता है कि सेवा करके उन्हें और उनके परिवारों को ‘असीमित पुण्य’ मिलेगा।
आंखों का अस्पताल, मोतियाबिंद के पांच लाख ऑपरेशन होंगे
महाकुंभनगर में आंखों का अस्पताल भी बनाया गया है। मेले के दौरान तीन लाख चश्मे देने की तैयारी है। मेला प्रशासन का दावा है कि यह दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा अस्थायी अस्पताल है, जहां 45 दिनों में 5 लाख मोतियाबिंद के ऑपरेशन होंगे। 3 लाख गरीबों को चश्मे देने की भी तैयारी है। यहां पर लगे कर्मचारियों को अपने काम पर गर्व हो रहा है। इसके अलावा शहर को आधुनिक सुविधाओं से लैस करने वाले लाखों कर्मचारियों में गर्व की भावना रहे। इसका भी पूरा ध्यान रखा गया है। कुम्भ क्षेत्र के हजारों सफाई कर्मचारियों, नाविकों से लेकर सिविल इंजीनियरों तक में गर्व की यह भावना दिख रही है।
संगम तट पर अस्थायी शहर बनाम ‘महाकुंभ यूनिवर्सिटी’
प्रयागराज में संगम तट पर बने इस अस्थायी शहर को ‘महाकुंभ यूनिवर्सिटी’ कह सकते हैं। क्योंकि इसमें हर उस कमी का समाधान है, जिसके लिए शहर जूझते रहते हैं। इस प्रभावी प्रबंधन व कर्मचारियों के शांत व्यवहार को समझने के लिए उज्जैन के एडीजी उमेश जोगा भी पहुंचे हैं। क्योंकि अगला कुम्भ उन्हीं के शहर में होना है। सैकड़ों ट्रेनों, हजारों बसों और कारों से लाखों लोग आएंगे। कोई अव्यवस्था न फैले इसके लिए अधिकारी एक साथ कई मॉडल्स पर काम कर रहे हैं, जैसे-भीड़ को अलग-अलग जगहों पर बांटना, घाटों की संख्या बढ़ाना आदि। इस पूरी व्यवस्था पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नजरें बनाए हुए हैं।
महाकुंभ के 50 दिनों में 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आएंगे
प्रयागराज महाकुंभ के 50 दिनों के इस आयोजन में करीब 40 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। इसे देखते हुए यहां पीने के पानी व सीवेज जैसी पर्याप्त सुविधाएं जुटाई गई हैं। यहां पर समृद्धों के लिए फाइव स्टार डोम हैं, तो जरूरतमंदों के लिए डॉरमेट्री भी बना दी है। रोजाना फीडबैक, तुरंत समस्या का समाधान, अफसर रात तक डटे रहते हैं। इस महाआयोजन में आधुनिक प्रबंधन से सीख ली गई है। सबसे बड़ा सबक यह है कि काम वक्त पर शुरू करें, अगर बाधा आए तो ‘बुलडोजर’ सी ताकत का इस्तेमाल करें। जैसा कि सड़कों के चौड़ीकरण के लिए हुआ। हर वर्टिकल से रोजाना फीडबैक लेने के साथ रिव्यू किया जा रहा है ताकि समस्या पता लगे। फोकस इस बात पर नहीं है कि काम कैसे पूरा होगा, बल्कि काम कौन बेहतर तरीके से करेगा। यानी गुणवत्ता से समझौता न हो।

No comments: