क्या सुप्रीम कोर्ट कानून का मजाक बनाने के लिए है? सुप्रीम कोर्ट के एक ही जैसे विषय पर 2 विपरीत फैसले देकर क्या कानून का मज़ाक उड़ाना उचित है?

सुभाष चन्द्र

नवंबर, 2024 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक निर्णय दिया कि PMLA में मनी लॉन्ड्रिंग केस चलाने के लिए ED को राज्य या केंद्र सरकार से अनुमति लेना CRPC के section 197 में अनिवार्य है। जबकि इस section में ED के लिए यह अनुमति लेने का कोई प्रावधान नहीं है और न ही PMLA, 2002 में ऐसा कोई प्रावधान था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपना कानून बना दिया 

तकनीकी दृष्टि से फिर तो किसी भी केंद्रीय एजेंसी को सरकारी अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए राज्य या केंद्र सरकार की अनुमति लेना जरूरी होना चाहिए

लेकिन कल जस्टिस सीटी रवि कुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने एक फैसले में कहा कि CBI को केंद्र सरकार के अधिकारी के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेना जरूरी नहीं है यह फैसला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ CBI की अपील पर दिया गया सेंट्रल एक्साइज विभाग एक अधिकारी ए सतीश कुमार के खिलाफ रिश्वतखोरी के 2 मामलों में CBI जांच को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया

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सतीश कुमार ने दलील दी थी कि CBI को जांच की सामान्य सहमति (Common Consent) आंध्र प्रदेश सरकार ने 1990 में दी थी और जब 2014 में आंध्र प्रदेश से तेलंगाना पृथक राज्य बन गया तो बंटवारे के बाद दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टेब्लिशमेंट (DSPE) एक्ट 1946 के तहत Common Consent ख़त्म हो गई हाई कोर्ट ने यह दलील मानकर CBI के दोनों केस रद्द कर दिए 

अब सुप्रीम कोर्ट ने कल हाई कोर्ट के फैसले को ख़ारिज करते हुए कहा कि Undivide राज्य आंध्र प्रदेश में लागू कानून विभाजन के बाद दोनों राज्यों पर तब तक लागू रहेगा जब तक राज्य सरकार उसे बदल नहीं देती साथ ही यह मामला केंद्र सरकार के कर्मचारी के खिलाफ है और आरोप भी केंद्रीय कानून (भ्रष्टाचार निरोधक कानून) Prevention of Corruption Act, 1988 के तहत दर्ज किया गया था जिसके लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं थी

इस फैसले का मतलब यह भी निकलता है कि चाहे राज्य सरकार की CBI जांच के लिए Common Consent न भी हो, तब भी वह केंद्र सरकार के कर्मचारियों (Public Servants) के खिलाफ किसी भी राज्य में स्वत जांच कर सकती है फिर यह प्रावधान ED के मनी लांड्रिंग मामलों में भी लागू होना चाहिए लेकिन उसके लिए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ओका की बेंच ने नुक्ता लगा दिया कि मुकदमा चलाने के लिए राज्य या केंद्र सरकार की अनुमति जरूरी है

राज्य सरकार को अपने लोगों को बचाने के लिए मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना भी कर सकती हैं जैसे संदीप घोष के मामले में ममता बनर्जी अनुमति दबाए बैठी है

केजरीवाल ने भी कहा कि उस पर मुकदमा चलाने के LG ने मंजूरी नहीं दी है, मतलब घोटाला करेगा LG की बिना अनुमति लेकिन मुक़दमे के लिए अनुमति चाहिए जो अब दे दी है 

सुप्रीम कोर्ट के ED और CBI मुकदमों में दिए गए फैसले परस्पर विरोधी हैं, ऐसे फैसले मामलों को लटकाने में मदद करते हैं ऐसा कैसे हो सकता है कि ED को तो केंद्र सरकार के अधिकारियों पर कार्यवाही के लिए अनुमति जरूरी हो और CBI तो जरूरी न हो

DSPE Act, 1946 को बदलने की जरूरत है जिससे राज्यों की  Common Consent का कलेश ही ख़त्म किया जा सके राज्यों में बेतहाशा भ्रष्टाचार होता रहे और CBI को जांच का भी अधिकार न हो केवल इसलिए कि राज्य ने Common Consent नहीं दी या वापस ले ली है और विपक्ष की सरकार बनते ही पहला काम वह यही करती है कि CBI को दी हुई Common Consent वापस लेती है सुप्रीम कोर्ट को इसमें कुछ गलत नहीं दिखाई देता, और यह अफ़सोस की बात है

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