अल-मतीन मस्जिद से निकली भीड़ ने ही बोला था 2020 में हिंदुओं पर धावा (साभार: ऑपइंडिया हिंदी, विशेष प्रबंध द्वारा)
उत्तर-पूर्वी दिल्ली का ब्रह्मपुरी इलाका इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में है। यहाँ की अल-मतीन मस्जिद के विस्तार को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। मस्जिद के सामने हर साल होलिका दहन होता है, लेकिन इस बार होली का त्योहार जुमे की नमाज और रमजान के महीने के साथ टकरा रहा है। ऐसे में स्थानीय लोगों के बीच डर और आशंका का माहौल है।हिंदू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा इसे 2020 के दिल्ली दंगों से जोड़कर देख रहा है, जब इसी मस्जिद से गोलियाँ चलने और हजारों की भीड़ जुटने की बात सामने आई थी। क्या ब्रह्मपुरी सचमुच एक इस्लामी एपिसेंटर में तब्दील हो रही है, या यह सिर्फ़ एक बनाया गया विवाद है? इसकी जड़ में जाने के लिए हमने स्थानीय लोगों से बात की और बैकग्राउंड को खंगाला।
क्या दिल्ली और केंद्र सरकार सतर्कता बरतते दोबारा इलाके को दंगा होने से रोक षड्यंत्रकारियों को गिरफ्त में लेगी? अगर इलाके में दोबारा दंगा होता है तो यह दिल्ली और केंद्र सरकारों की बड़ी नाकामी होगी?
मस्जिद विस्तार और ‘मकान बिकाऊ’ के नोटिस
अल-मतीन मस्जिद पहले से ही गली नंबर-13 में एक चार मंजिला मकान में चल रही थी। लेकिन हाल ही में इसके विस्तार की योजना बनी। अब इस मस्जिद को बगल के प्लॉट तक फैलाया जा रहा है। एक बेहद बारीक योजना बनाकर पहले तो मस्जिद के बगल की जमीन हिंदू परिवार से खरीदी गई और फिर उस एक मंजिला घर को तोड़कर वहाँ नई बिल्डिंग बनाई जा रही है, जो मूल-रूप से गली नंबर 13 की मस्जिद को विस्तार देने के लिए है।
इस पूरे वाकये को बहुत प्लानिंग के साथ अंजाम दिया गया। स्थानीय लोगों को डर है कि जैसे 25 फरवरी 2020 को हिंदुओं पर हमला बोला गया, इस अल-मतीन मस्जिद से निकली इस्लामी भीड़ द्वारा, अगर मस्जिद 2 गुनी बड़ी हो गई, तो सोचिए कि और कितने हमलावर एक साथ उनके ही दरवाजे पर जमा हो जाएगी। यही वजह है कि ब्रह्मपुरी की गली नंबर-12 के करीब 60 मकान हिंदू परिवारों में से 25-30 मकानों पर ‘मकान बिकाऊ है’ के नोटिस लग चुके हैं।
इस अल-मतीन मस्जिद के विस्तार का विरोध करने वाले शिकायतकर्ता पंडित शंकर लाल गौतम कहते हैं, “यह निर्माण अवैध है। MCD को गुमराह करके नक्शा पास कराया गया। मस्जिद के ठीक बगल में शिवालय है। अगर यहाँ मस्जिद का गेट खुला तो दोनों समुदाय आमने-सामने होंगे, और तनाव बढ़ेगा। हम 2020 जैसा कुछ नहीं चाहते।” शंकर लाल का आरोप है कि यह सिर्फ मस्जिद का विस्तार नहीं, बल्कि इलाके की डेमोग्राफी बदलने की साजिश है। उनके मुताबिक, दंगों के बाद से ज्यादातर मकान हिंदुओं ने बेचे और खरीदने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग हैं।
2020 का हिंदू विरोधी दंगा: एक जख्म जो अभी भरा नहीं
2020 के फरवरी महीने में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हुए दंगे आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। सीलमपुर, जाफराबाद और ब्रह्मपुरी जैसे इलाकों में हिंसा ने 53 लोगों की जान ले ली थी और सैकड़ों घायल हुए थे। इस दौरान अल-मतीन मस्जिद का नाम भी चर्चा में आया था। स्थानीय लोगों का दावा है कि मस्जिद से गोलियाँ चली थीं और अचानक हजारों की भीड़ वहाँ जमा हो गई थी। ऑपइंडिया के पास मौजूद वीडियो और तस्वीरें उस वक्त की भयावह स्थिति को बयान करती हैं – जलते हुए घर, सड़कों पर बिखरा मलबा और डरे हुए लोग। वीडियो फुटेज, जो अभी हार्ड ड्राइव में सुरक्षित हैं और पुलिस-कोर्ट के रिकॉर्ड में भी मौजूद हैं, इस बात की तस्दीक करते हैं कि हिंसा के दौरान यह इलाका एक युद्धक्षेत्र में बदल गया था।
उस वक्त के बाद से ब्रह्मपुरी में डेमोग्राफी तेजी से बदली है। हिंदू समुदाय के कई परिवारों ने अपने मकान बेच दिए और इलाका छोड़ दिया। स्थानीय निवासी दिनेश शर्मा (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “2020 के बाद यहाँ का माहौल बदल गया। दंगों में हमने अपने लोगों को खोया, घर जले और डर ऐसा बैठा कि कई लोग यहाँ से चले गए। अब मस्जिद का विस्तार देखकर लगता है कि फिर वही सब होगा।” रमेश की बात में एक गहरा डर झलकता है, जो सिर्फ उनके नहीं, बल्कि गली नंबर-12 के कई हिंदू परिवारों का है।
मुस्लिम पक्ष का आरोप – “विवाद जबरदस्ती पैदा किया जा रहा”
मस्जिद के सामने खड़े मिले अल-मतीन के नायब ईमाम सद्दाम हुसैन से हमारी बातचीत हुई। उनका कहना है, “हमारी आबादी बढ़ रही है, मौजूदा मस्जिद छोटी पड़ गई थी। दान में मिले प्लॉट पर विस्तार शुरू किया, इसमें गलत क्या है? कुछ लोग आपस में लड़वाना चाहते हैं, इसलिए इसे मुद्दा बना रहे।” सद्दाम हुसैन का दावा है कि मकान बेचना लोगों की अपनी मर्जी है। “यहाँ अच्छी कीमत मिल रही है, इसलिए लोग बेच रहे हैं। कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा। हम शांति चाहते हैं।”
सद्दाम हुसैन ने कहा कि गली नंबर 12 में मस्जिद का नहीं, बल्कि कम्युनिटी सेंटर के लिए जमीन ली गई है। हालाँकि स्थानीय मुस्लिमों का दावा है कि वहाँ मस्जिद ही बन रही है। मुस्लिम समुदाय के लोग यह भी कहते हैं कि वे बड़े दिल वाले हैं। हर साल मस्जिद के सामने होलिका दहन होता है, और उन्हें कोई आपत्ति नहीं। लेकिन हिंदू पक्ष इसे छिपी सच्चाई मानता है। एक महिला, जो अपना नाम नहीं बताना चाहतीं, कहती हैं, “ये लोग बाहर से शांति की बात करते हैं, लेकिन 2020 में क्या हुआ, सबको पता है। अब होली और रमजान साथ आए हैं, जुमे की नमाज होगी, और हमें डर है कि कोई बड़ा खेल न हो जाए।” ब्रह्मपुरी की गली नंबर – 13 में स्थित मस्जिद चौक, यहीं पर होता है होलिका दहन होली और रमजान का टकराव
इस बार होली का त्योहार 24 मार्च को है, जो जुमे की नमाज और रमजान के महीने के साथ पड़ रहा है। मस्जिद के सामने हर साल होलिका दहन होता है, लेकिन इस बार तनाव की वजह से लोग डरे हुए हैं। गली नंबर-12 के निवासी अजय कुमार कहते हैं, “पुलिस अभी शांति बनाए हुए है, लेकिन सिपाही चले गए तो क्या होगा? 2020 में भी पहले सब ठीक था, फिर अचानक हमला हुआ। हम अपने बच्चों को नहीं गँवाना चाहते।” अजय की बात में 2020 का डर साफ झलकता है, जब हिंसा ने पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लिया था।
खास बात ये है कि अल-मतीन मस्जिद एक निजी घर में चल रही थी। बात में इस जगह को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया और सोसायटी के नाम पर ‘जकात’ यानी दान दे दिया गया। गली नंबर 13 में स्थित मस्जिद 10 से 12 साल पुरानी है, जो धीरे-धीरे खड़ी की गई। अब ये 4 मंजिला है। जबकि इस जगह पर होलिका दहन बहुत पहले से होता रहा है।
दरअसल, गली नंबर 13 में स्थित अल-मतीन मस्जिद के बगल वाली जमीन ही गली नंबर 12 की तरफ है। यहीं पर गली नंबर 12 और 13 को जोड़ने वाला एक छोटा कट भी है। जहाँ मस्जिद का गेट बन सकता था, लेकिन गली नंबर 12 में जहाँ मस्जिद का गेट खोलने की कोशिश की गई थी, उसी के सामने शिव मंदिर है। इसी बात का विरोध हिंदू कर रहे हैं। क्योंकि शिव मंदिर 1984 का बना हुआ है। ये आज का नहीं है, जबकि मस्जिद अभी पिछले दशक ही बनी है। लोग होलिका दहन के दिन भी मंदिर में पूजा करते हैं। सिर्फ होलिका ही नहीं, महाशिवरात्रि से लेकर हर सोमवार को लोग पूजा करते हैं। ये रिपोर्ट पढ़ने के बाद अपने आप चीजें साफ हो जाती हैं कि असलियत क्या है। कौन पहले से है और कौन बाद में आया। 1984 में निर्मित मंदिर, मंदिर के सामने ही मस्जिद का गेट बनाने की कोशिश (दाईं तरफ- मंदिर निर्माण की जानकारी देता शिलापट) पुलिस और MCD की कार्रवाई
विवाद बढ़ता देख दिल्ली पुलिस ने इलाके में गश्त बढ़ा दी है। मौके पर सिपाही तैनात हैं और MCD ने निर्माण कार्य पर रोक लगा दी। अल-मतीन सोसाइटी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, जिसमें आरोप है कि गलत जानकारी देकर नक्शा पास कराया गया। पुलिस का कहना है कि दोनों समुदाय शांति की बात कर रहे हैं, और अभी कोई बड़ी घटना नहीं हुई। लेकिन स्थानीय बीजेपी निगम पार्षद का कहना है, “यह माहौल बिगाड़ने की कोशिश है। हम हिंदुओं को पलायन नहीं करने देंगे।”
डेमोग्राफी बदलाव का आरोप
हिंदू समुदाय मस्जिद निर्माण को एक ‘मोडस ऑपरेंडी’ मानता है। उनका कहना है कि पहले मस्जिद बनती है, फिर माहौल बदलता है, और हिंदू पलायन को मजबूर हो जाते हैं। 2020 के बाद से ब्रह्मपुरी में यह ट्रेंड देखने को मिला है। एक बुजुर्ग निवासी कहते हैं, “पहले यहाँ हिंदू-मुस्लिम साथ रहते थे। दंगों के बाद सब बदल गया। अब मस्जिद का विस्तार देखकर लगता है कि हमें यहाँ से भगाने की तैयारी है।”
ब्रह्मपुरी की विवादित गली नंबर 12-13 मौजपुर-वार्ड नंबर 228 में आती है। यहाँ साल 2020 में 25 फरवरी 2025 को हिंदुओं पर हमले के बाद फायरिंग में 3 हिंदू युवक घायल हो गए थे। इसी गली नंबर 13 में अल-मतीन मस्जिद है, जिसका विस्तार किया जा रहा है।
साल 2020 के दंगों के बाद से हिंदुओं पर जबरदस्त दबाव है। वो अपने घर बेच रहे हैं। मुस्लिमों का कहना है कि वो अच्छे पैसे दे रहे हैं, इसलिए लोग घर बेच रहे हैं, जबकि हकीकत ये है कि लोगों का जीना मुहाल हो चुका है। वो डर के साए में जी रहे हैं, इसलिए पलायन को मजबूर हो रहे हैं। उनके दिलों में 2020 की खौफनाक यादें अब भी ताजा हैं।
ऐसे में ब्रह्मपुरी का यह विवाद सिर्फ मस्जिद निर्माण तक सीमित नहीं है। यह 2020 के दंगों का जख्म, डेमोग्राफी बदलाव का डर और धार्मिक त्योहारों के टकराव का नतीजा है। पुलिस और MCD की कार्रवाई से अभी शांति है, लेकिन लोगों के मन में आशंका बनी हुई है। हिंदू और मुस्लिम दोनों दिल्ली पुलिस की तारीफ कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह शांति टिकाऊ होगी? या फिर होली और रमजान का यह संयोग एक बार फिर ब्रह्मपुरी को 2020 की आग में झोंक देगा? जवाब समय के पास है, लेकिन फिलहाल यहाँ के लोग डर और उम्मीद के बीच जी रहे हैं।
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