मैंने अपने 21 मार्च के लेख में पहले ही लिखा था कि चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को यशवंत वर्मा को ट्रांसफर करने की बजाय, उससे कामकाज वापस ले लेना चाहिए था। यह काम कल किया गया जिसका एक कारण मुझे यह समझ आता है कि सरकार की तरफ से यह इशारा दिया गया होगा कि कॉलेजियम द्वारा ट्रांसफर की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया जाएगा और तब CJI खन्ना के पास काम वापस लेने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचा।
यह कौन नहीं जानता कि पुलिस और न्यायालय की स्थापना ही भ्रष्टाचार पर हुई है। आज कोई ऐसा public dealing विभाग नहीं जहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला न हो। आम नागरिक से लेकर शीर्ष नेता सभी इन विभागों में फैले भ्रष्टाचार को नहीं जानते?
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लेखक चर्चित YouTuber |
अब बात करते हैं अदालतों की। अदालतों के सालों से एक बात मशहूर है कि "कोर्ट में वही खड़ा रह सकता है जिसके लोहे के जूते और सोने के हाथ हों", वरना लाख मजबूत केस हो हार जाएगा। फिर जज भी दर्ज केस को पढ़ने की कोशिश नहीं करते। एक परिचित को 10 सालों तक झूठे चोरी के केस से झूझना पड़ा था। जबकि शिकायतकर्ता ने अपने सिविल केस में स्वीकार किया कि वह कभी मकान के अंदर नहीं गया और उसका कोई सामान नहीं। तथाकथित आरोपित वकीलों की गैर-हाजिरी में मजिस्ट्रेट को कहता कि केस झूठा है इसने सिविल केस में ऐसे-ऐसे अपना बयान दर्ज किया है जो निर्णय में भी अंकित है। मजिस्ट्रेट ने एक बार भी उस पीड़ित से उस निर्णय को देने के लिए नहीं कहा। क्यों? फिर अपने सिविल केस में मुर्दा व्यक्ति को पार्टी बना दिया जो केस दर्ज होने से लगभग 2 साल पहले ही स्वर्ग सिधार चूका था। जो साबित कर रहा था कि केस झूठा विपक्षी को डराने ब्लैकमेल करने के इरादे से दर्ज किया गया है। क्यों नहीं कोर्ट ने केस को ख़ारिज किया गया?
बड़ी बेशर्मी से यशवंत वर्मा कह रहे हैं कि इस पैसे से उनका या उनके परिवार का कोई लेना देना नहीं है। यह पैसा बंगले के outhouse में था जहां कोई भी आ जा सकता है। किसे बेवकूफ बना रहे हो वर्मा जी, त्यागपत्र देने की बजाय अपने को पाक साफ़ साबित करने में लगे हो। लेकिन मुख्य घर में लगी आग outhouse तक कैसे पहुंच गई और घर में लगी आग से जो नुकसान हुआ उसका कोई ब्यौरा सामने नहीं आया है। वर्मा कह रहे हैं यह उनके खिलाफ कोई साजिश है। ऐसा है तो उन्हें यह भी पता होगा कि साजिश किसने की जिसका नाम उन्हने बताना चाहिए।
वर्मा का इस्तीफ़ा काफी नहीं है, उस पर आपराधिक केस चलना चाहिए।
अखिलेश यादव यशवंत वर्मा की वकालत करते हुए कह रहे हैं कि हो सकता है उन्होंने किसी से यह पैसा उधार लिया हो, तो फिर यह बताया जाए कि किस काम के लिए 50 करोड़ रुपया उधार लिया गया।
एक वकील किसी चैनल पर कह रहे थे कि सेब की पेटी में एक सेब सड़ा हुआ निकलता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि पेटी के सभी सेब सड़े हुए हैं। वो भूल गए कि खरीदने वाले को यदि एक सेब सड़ा हुआ मिलता है तो वह पेटी के सब सेबों की जांच करता है। वो यह भी भूल गए कि एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है और इसलिए पूरी न्यायपालिका के दामन पर न मिटने वाला दाग लग गया है।
एक अन्य वकील अर्णब गोस्वामी के सामने कह रहा था कि जो वीडियो जले नोटों का दिखाया गया है, वह वर्मा के घर का ही है, यह कैसे साबित होता है। उसे इस बात का इल्म नहीं है कि यह वीडियो दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की रिपोर्ट का हिस्सा था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया था।
1999 के सुप्रीम कोर्ट के नियमों में साफ़ लिखा है कि संबंधित आरोपी जज का यदि स्पस्टीकरण संतोषजनक नहीं मिलता तो सुप्रीम कोर्ट के एक जज और दो हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की कमेटी उसकी जांच करती है। अभी वर्मा ने स्पष्टीकरण दिया भी नहीं और चीफ जस्टिस खन्ना ने 3 हाई कोर्ट के जजों की कमेटी बना दी लेकिन उसमें सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं है।
यह आग एक जज के घर में लगी है लेकिन अनेक जजों के दिलों में भी आग लगी हुई होगी जिनके पास ऐसा काला धन है और हर जज सोच में होगा कि कैसे उस पैसे को छुपाया जाए?
चीफ जस्टिस ने दिल्ली पुलिस से पिछले 6 महीने में वर्मा के घर पर तैनात रहे पुलिसकर्मियों और CRPF जवानों की सूची के साथ वर्मा के 6 महीने के कॉल डिटेल्स भी मांगे हैं।
यशवंत वर्मा के सभी फैसलों पर पुनर्विचार होना चाहिए और जिन मामलों में उनकी बेंच में अन्य जजों की भी जांच होनी चाहिए क्योंकि बेंच में अकेला जज पैसा नहीं खा सकता। इसके साथ ऐसे मुकदमों में जो लोग हार गए, उनके खिलाफ खड़े हुए वकीलों को भी जांच के दायरे में लेना चाहिए क्योंकि उनके जरिए ही पैसा जजों को पहुंचाया गया होगा।
आज आप देख सकते हैं हर बात को कोर्ट में ले जाने वाले प्रशांत भूषण, कपिल सिब्बल, सिंघवी, इंद्रा जयसिंह और अन्य वकील आज खामोश हैं। आज न्यायपालिका के सभी जज कटघरे में खड़े हैं, केजरीवाल, लालू यादव, राहुल गांधी और अन्य अपराधियों को जमानत देने के लिए क्या लिया गया, वह भी पता चले?
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