संविधान प्रमुख राष्ट्रपति और राज्यपालों को आदेश देकर जस्टिस परदीवाला और जस्टिस महादेवन ने संविधान की हत्या की है। सबसे बड़े अफ़सोस की बात है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया दोनों खामोश है, बस SCBA का अध्यक्ष कपिल सिब्बल भौंक रहा है कि दोनों जजों का निर्लज्ज फैसला बहुत बढ़िया है। क्या पूरी बार एसोसिएशन के वकील सिब्बल से सहमत है? बार कौंसिल का चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा तो भाजपा के सांसद हैं, राज्यसभा से, उन्हें तो कम से कम आवाज़ उठानी चाहिए।
जस्टिस पारडीवाला का पूरा नाम है जमशेद बुरजोर परदीवाला और ये पारसी है और इनके पिता बुरजोर कावसजी परदीवाला, वलसाड से कांग्रेस के दो बार विधायक रहे हैं। इसका मतलब खून में तो कांग्रेसी DNA ही है और इसलिए पाकिस्तान से प्यार तो होना स्वाभाविक है और तब ही पाकिस्तान के संविधान को आधार बनाकर राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियां काट कर संविधान में संशोधन कर दिया। इसलिए परदीवाला को पाकिस्तान ही भेज देना चाहिए। लेखक
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परदीवाला आने वाले समय में और खतरनाक साबित होंगे मोदी के लिए क्योंकि ये 3 मई 2028 को 2 साल 3 महीने के लिए चीफ जस्टिस बनेंगे और एक कांग्रेसी परिवार से होते हुए ये मोदी के लिए सिरदर्द बन जाएंगे।
पाकिस्तान का गुणगान करते हुए परदीवाला ने निर्लज्जता की सभी सीमाएं पार कर दी जबकि उसे पता नहीं है पाकिस्तान में भीड़तंत्र ने वहां के चीफ जस्टिस को भागने पर मजबूर कर दिया था जैसे बांग्लादेश में भी किया गया था।
केंद्र सरकार उनके फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दायर करने जा रही है। उसका कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि वह याचिका भी परदीवाला और महादेवन ही सुनेंगे वह भी बंद चैम्बर में। वह दोनों क्यों अपने फैसले पर पुनर्विचार करेंगे?
इसलिए इनके फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार को चाहिए कि वह चीफ जस्टिस के सामने अपील दायर करें। लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच के फैसले के खिलाफ अपील दायर हो सकती है, यह मैंने जब गूगल पर सर्च किया तो उसके उत्तर में कहा गया ➖
“Yes, a judgment delivered by a two-judge bench of the Supreme Court can be appealed to the Chief Justice of India (CJI) for consideration by a larger bench, including a Constitution Bench, if the two-judge bench recognizes a "substantial question of law". This allows for reconsideration by a bench with more judges, potentially addressing issues of constitutional interpretation or importance”.
“If a two-judge bench believes a matter involves a substantial question of law, it can refer the case to the CJI for reconsideration by a larger bench”.
यानी संवैधानिक मामले पर दिए गए फैसले पर संविधान पीठ बनाई जा सकती है और जब अपील हो सकती है तो इस फैसले पर रोक भी लगाई जा सकती है, जो लगा भी देनी जानी चाहिए। दो जजों की बेंच ने तो कानून के सवाल पर ध्यान देने के जगह नया कानून ही बना दिया और बड़ी बेंच को भेजना जरूरी न समझ कर खुद से संविधान से ऊपर हो गए।
रिव्यु पिटीशन इसलिए भी दायर नहीं होनी चाहिए क्योंकि उसके ख़ारिज करने के बाद चीफ जस्टिस को कोई अपील नहीं हो सकती और इसलिए अभी ही अपील दायर कर देनी चाहिए। अगर रिव्यु पिटीशन में भी जाती है सरकार तो दोनों जजों को इशारा कर देना चाहिए कि यदि आप फैसला वापस नहीं लेते तो महाभियोग भी लाने के लिए सरकार तैयार है।
अगर रिव्यु पिटीशन ख़ारिज करते हैं तो दोनों के फैसले को केंद्र सरकार को रद्द करते हुए संसद से प्रस्ताव पारित करा देना चाहिए और दोनों के खिलाफ संवैधानिक सीमाओं के बाहर जा कर आदेश देने के आरोप में महाभियोग शुरू कर देना चाहिए।
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