MP निशिकांत दुबे-दिनेश शर्मा के बयान से BJP ने किया किनारा, बेशर्म नड्डा अध्यक्ष पद ही नहीं पार्टी भी छोड़ो ;‘सीमाओं को लाँघ रहा है सुप्रीम कोर्ट, धार्मिक युद्ध भड़काने का जिम्मेदार’: नड्डा बोले- ये उनके निजी विचार

भाजपा अध्यक्ष नड्डा में शर्म नाम की चीज है तो पार्टी अध्यक्ष ही नहीं पार्टी से त्याग पत्र दो। निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा ने क्या गलत कहा है? भारत को कांग्रेस मुक्त करने से पहले राज करना कांग्रेस से सीखो। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के चुनाव को रद्द कर 6 साल चुनाव न लड़ने वाले जज साहब कहाँ है? नूपुर शर्मा के केस में तो पल्ला झाड़ लिया, क्यों? बेशर्मों मुस्लिम कट्टरपंथियों को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए बीजेपी को प्रेस कांफ्रेंस कर कटी-फटी वीडियो और original वीडियो दिखानी चाहिए थी और मीडिया को आदेश देना था कि जो मीडिया नहीं आएगी उसे 3 महीने का और लाइव नहीं दिखाने पर 6 महीने के लिए ban कर दिया जाएगा। दूसरे, तेलंगाना में टी राजा सिंह के मुद्दे पर भी बेशर्म बीजेपी ने पल्ला झाड़ लिया। जिसका नुकसान तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम से कम 20 से 25 नुकसान हुआ, इसके जिम्मेदार कोई और नहीं तुम्हारे जैसे दोगले अध्यक्ष जिम्मेदार है। बेशर्म नड्डा जी आंखे खोलकर देखो "सिर तन से जुदा" धमकी के बाद आज भी अपने दम पर आज़ाद घूम रहे है। चुनाव लड़े और जीते भी। तेलंगाना में अगर बीजेपी जिन्दा है तो राजा सिंह और योगी जी के दम पर। नड्डा जैसे अध्यक्ष के दम पर नहीं। 
आखिर बीजेपी को कितना नीचे गिराओगे नड्डा जी? आंखें खोले और देखो social media पर तुम्हारी कितनी थू-थू हो रही है। जज के घर नोटों के बंडल जलते हैं नड्डा जी क्यों चुप हो? क्यों नहीं महामहिम से उस जज के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कहा? या फिर खुलकर बोलो कि बीजेपी मुस्लिम कट्टरपंथियों और judiciary के आगे नतमस्तक है। सनातन को आरोपित करने वालों पर चुप रहते हो फिर कहते फिरते हो हिन्दुत्व।      
 
              
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के सुप्रीम कोर्ट को लेकर दिए गए बयान से पार्टी ने किनारा कर लिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा है कि दोनों के बयान उनके निजी विचार हैं और इनसे पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर न्यायिक दखल का आरोप लगाया था।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा, “भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा का न्यायपालिका एवं देश के चीफ जस्टिस पर दिए गए बयान से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना–देना नहीं है। यह इनका व्यक्तिगत बयान है, लेकिन भाजपा ऐसे बयानों से ना तो कोई इत्तेफाक रखती है और ना ही कभी भी ऐसे बयानों का समर्थन करती है। भाजपा इन बयान को सिरे से खारिज करती है।”

गौरतलब है कि झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने वक्फ कानून और राष्ट्रपति को दिए गए फैसले को लेकर बयान दिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर शीर्ष अदालत को ही कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि कोर्ट कैसे राष्ट्रपति को आदेश दे सकता है।

सांसद निशिकांत दुबे ने ANI को दिए बयान में कहा, “देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है। सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है। अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना ही पड़े तो संसद और विधानसभाएँ बंद कर देनी चाहिए।”

 उन्होंने चीफ जस्टिस संजीव खन्ना पर भी तंज कसा था। उन्होंने कहा था कि चीफ जस्टिस संजीव खन्ना इस देश में गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार हैं। उनके साथ ही इस पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम और वर्तमान में राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने भी कहा था कि संसद को कोई चुनौती नहीं दे सकता, यह बात संविधान में साफ़ लिखी हुई है।

दिनेश शर्मा ने कहा, “लोगों में यह आशंका है कि जब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान लिखा था, तो उसमें विधायिका और न्यायपालिका के अधिकार स्पष्ट रूप से लिखे गए थे… भारत के संविधान के अनुसार, कोई भी लोकसभा और राज्यसभा को निर्देश नहीं दे सकता है और राष्ट्रपति पहले ही इस पर अपनी सहमति दे चुके हैं। कोई भी राष्ट्रपति को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं।”

भाजपा के इन सांसदों के बयान से किनारा करने के बाद भी विपक्ष उस पर हमलावर है। AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने न्यापालिका को धमकी देने का आरोप लगाया है। वहीं AAP ने भी भाजपा सांसदों पर कार्रवाई की माँग की है।

क्यों हो रहा विवाद?

हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल के विधेयकों को रोकने से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए राष्ट्रपति की ‘जेबी वीटो’ से जुड़ी शक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी। अदालत ने राष्ट्रपति से कहा था कि वह राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन माह के भीतर फैसला लें। इस फैसले के कुछ दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून को लेकर कई टिप्पणियाँ की। इसके बाद से ही न्यायपालिका के दखल को लेकर चर्चा चालू हो गई। 

No comments: