सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने अप्रैल 8 को राज्यपाल की शक्तियों को सीमित करने के साथ ही राष्ट्रपति के विवेकाधिकार को भी ख़त्म कर दिया। यह फैसला देश के संविधान पर हमला है। ऐसी शंका भी की शायद सुप्रीम कोर्ट भी Deep state का हिस्सा बना हुआ है, अभी इसकी पुष्टि तो नहीं हो पायी है सिर्फ शंका ही बनी हुई है। भ्रष्ट्राचारियों को जमानत देना, जमानत की कोई सीमा नहीं, केजरीवाल जैसों को जल्दी तारीख देना आदि आदि की वजह से सुप्रीम कोर्ट पर भी शक के बादल मंडरा रहे हैं।
राज्यपाल के लिए किसी विधेयक को स्वीकृति देने के लिए एक और तीन महीने की समय सीमा तय कर दी गई है। तमिलनाडु के गवर्नर आरएन रवि द्वारा 10 विधेयकों को लंबे समय तक दबाए रखने और जब विधेयक दोबारा विधानसभा से पारित होकर आए तो उन्हें विचार के लिए राष्ट्रपति को भेजने को भी गलत करार दिया।
![]() |
लेखक चर्चित YouTuber |
इतना ही नहीं पीठ ने यह भी फैसला सुनाया कि इन विधेयकों पर यदि राष्ट्रपति ने कोई निर्णय लिया होगा तो वह भी शून्य माना जाएगा? यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अनुच्छेद 142 में प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुनाया गया है। पीठ ने गवर्नर को प्रवचन देते हुए कहा कि “राज्यपाल को मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में अपनी भूमिका निष्पक्षता से निभानी चाहिए और राजनीतिक विचारों से निर्देशित नहीं होना चाहिए”। लेकिन ऐसी निष्पक्षता न्यायपालिका में अक्सर दिखाई नहीं देती।
इस फैसले ने संविधान के अनुच्छेद 200 में संशोधन कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के अधिकारों को भी कुचल दिया जबकि राष्ट्रपति Constitutional Head होता है।
अनुच्छेद 200 में राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय नहीं है। लेकिन समय सीमा तय कर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने संविधान के पार्टी मर्यादा का उल्लंघन किया है। संविधान के अनुच्छेद में समय सीमा तय करने का अधिकार संविधान में संशोधन कर सरकार ही कर सकती है जिसके लिए संसद की मंजूरी लेनी अनिवार्य है लेकिन पारदीवाला और महादेवन दोनों ने अपनी हठधर्मी दिखाते हुए संसद, राज्यपालों और राष्ट्रपति तक के अधिकारों में दखल दिया है, (its a dictatorial act of unauthorized intrusion and infringement) जिसका उन्हें अधिकार नहीं था और इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकारों अतिक्रमण किया है।
केवल दो जज बैठकर इस तरह गवर्नर, राष्ट्रपति और संसद के अधिकारों को नहीं कुचल सकते और इसलिए यह मामला कम से कम 5 जजों की संविधान पीठ के पास जाना चाहिए था।
पीठ ने एक ऐसी बात कही कि जिसने सुप्रीम कोर्ट को स्वतः ही नंगा कर दिया। पीठ ने कहा - “राज्यपाल राज्य विधानमंडल में अवरोध उत्पन्न नहीं करने या उस पर नियंत्रण नहीं करने के प्रति सचेत रहना चाहिए। राज्य विधानमंडल के सदस्य लोगों द्वारा चुने गए हैं, इसलिए वे लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए ज्यादा सक्षम हैं”।
मीलॉर्ड आप बहुत श्याणे बनते हुए भूल गए संसद ने NJAC कानून सर्वसम्मति से पारित किया था जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 16 विधानसभाओं से भी अनुमोदन किया गया था - वे 800 सांसद क्या आसमान से टपके थे जो लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए सक्षम नहीं थे। लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 वह कानून ख़ारिज कर दिया।
अब कल का यह फैसला और NJAC पर दिया गया फैसला दोनों संविधान पीठ के सामने रखें चीफ जस्टिस और दोनों फैसलों को वापस लिया जाए। चीफ जस्टिस खन्ना को कल के फैसले पर स्वत ही रोक लगा देनी चाहिए। जो समय सीमा गवर्नर के लिए तय की, सुप्रीम कोर्ट अपने ऊपर भी लगाए कि हर हाल में फैसले एक साल में हो जाने चाहिए चाहे मुकदमा कोई भी हो।
No comments:
Post a Comment